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80 वर्षों बाद दिन में दिखा भूकंप का खौफ

23 अगस्त 1833 को भारत-नेपाल सीमा पर पहली बार आया था भूकंप महज एक पखबारा के बाद मंगलवार को सिरियल भूकंप के झटके को लेकर लोग सदमें में हैं और मौके पर जिंदगी बचाने के जद्दोजहद मे इधर उधर भागते नजर आ...

80 वर्षों बाद दिन में दिखा भूकंप का खौफ
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 16 May 2015 10:53 AM
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23 अगस्त 1833 को भारत-नेपाल सीमा पर पहली बार आया था भूकंप
महज एक पखबारा के बाद मंगलवार को सिरियल भूकंप के झटके को लेकर लोग सदमें में हैं और मौके पर जिंदगी बचाने के जद्दोजहद मे इधर उधर भागते नजर आ रहे थे। वैसे तो तबाही का मंजर से लोग कांप रहे है मगर राहत की बात यह कि यह भूकंप पी वेभ का है जिसने संरचनाओं पर थोरी नरमी बरत रखी है। 

देश में भूकंप से तबसे बड़ी तबाही 15 जनवरी 1934 को हुई थी और उसकी तीब्रता 8.1 था। उसके बाद विगत 25 अपैल 15 को आयी दूसरा सवसे बड़ा भूकंप का झटका था इसकी तीव्रता 7.5 से ज्यादा कहा गया। इसके मंगलवार को आई भूकंप की तीव्रता भी सात से ज्यादा बताया गया है। इस भूकंप से लोगों ने अपनी आखों से तबाही का उतना बड़ा मंजर नहीं देखा मगर खौफ का आकलन नहीं किया जा सकता है। विगत 25 अप्रैल को जब भूकंप आया था तब दोपहर के करीब 11.40 बजा था और ठीक उसके एक दिन बाद रविवार को 12.40 के करीब। मंगलवार को भूकंप का समय भी 12.35 बजे के करीब था। कमोवेश यही समय था जब 15 जनवरी 1934 को बिहार मे भूकंप की सबसे बड़ी तबाही आयी थी जिसमें करीब 30 हजार लोग मारे गए थे। इस भूकंप की तुलना हालांकि पूर्व के कई भूकंपों से की गयी थी मगर तब मापी के लिए रिक्टर स्कैल नहीं हुआ करते थे। रिक्टर स्कैल पर 1934 की भूकंप को 8.1 मापा गया था। मापी के अनुसार अलास्का मे 1969 में भूकंप 9.25 और चिली मे 1960 में हुए भूकंप को 9.5 मापा गया था। बेबसाइट के अनुसार 15 जनवरी 1934 को भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र मे भूकंप आया था जो नेपाल के काठमांडू से बिहार के मुंगेर और कलकत्ता से चंपारण तक 650 किलो मीटर के रेडियस मे फैला था। इसमें करीब 30 हजार लोगों की मौत हुई थी। इस भूकंप की तुलना 1857 में हुए आसाम और 1905 मे हुए पंजाब के भूकंप से की गयी थी।

वैसे सबसे पहले 04 जून 1764 को बिहार-बंगाल के सीमा क्षेत्र मे भूकंप आया था। उसके बाद 23 अगस्त 1833 में भारत-नेपाल सीमा पर, 23 मई 1866 को बिहार-नेपाल सीमा क्षेत्र में, 30 सितम्बर 1868 को दक्षिण बिहार में, 07 अक्तूबर 1920 को बिहार-उत्तरप्रदेश सीमा क्षेत्र में भूकंप आया था। इन भूकंपों को मापने के लिए कोई ठोस यंत्र नहीं था।

इसके बाद 15 जनवरी 1934 को भारत-नेपाल सीमाक्षेत्र में भूकंप आया था जो रिक्टर स्कैल पर 8.1 था। 11 जनवरी 1962 को भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र में भूकंप आया था जिसकी मापी रिक्टर स्कैल पर 06 था। 21 अगस्त 1988 को बिहार-नेपाल सीमाक्षेत्र मे भूकंप आया था जिसका मापी रिक्टर स्कैल पर 6.8 था। 18 सितम्बर 2011 में भारत-नेपाल सीमा के सिक्किम क्षेत्र मे भूकंप आया था जो रिक्टर स्कैल पर 5.8 था। पांच मार्च 2012 को नई दिल्ली में 5.2, 13 मार्च 2012 को नई दिल्ली में 3.6 , 14 अप्रैल 2012 को रत्नागिरी महाराष्ट्रा में 4.6, 14 अप्रैल 2012 को रत्नागिरी महाराष्ट्रा में 4.1, 25 अप्रैल 2012 को अंडमान निकोवार द्वीपसमुह में तीन वार क्रमश. 6.2,5.5 और 5.3, 30 अप्रैल 2012 को अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में 5.2, 02 मई 2012 को नई दिल्ली में 3.5,17 मई 2012 को नई दिल्ली में 3.5,10 अप्रेल 2013 को नई दिल्ली में 3.4,16 अप्रेल 2013 को डिब्रुगढ़ आसाम में 4.6, 01 मई 2013 को जम्मु काश्मीर में 5.8, 03 अक्तूबर 2013 को गैंगटोक सिक्किम में 5.2,12 नवंम्बर 2013 को नई दिल्ली मे क्रमश: 3.1,3.3,2.5 और 2.8, चार दिसम्बर 2013 को पश्चिम बंगाल के उत्तरीभाग में 4.7,05 दिसम्बर 2013 को जम्मू कश्मीर में 4.7 दर्ज किया गया था।

उल्लेखनीय है कि विगत एक वर्ष के दौरान देश में आठ बार भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। इसके अंतर्गत 21 मार्च 2014 को अंडमान निकोवार द्वीसमुह में तीन बार क्रमश: 6.7,5.3,5.2, 21 अगस्त 2014 को कांग्रा हिमाचल प्रदेश में 5.5, 22 जुलाई 2014 को तूफानगंज पश्चिमी बंगाल में 4.2, 22 जुलाई 2014 को दिनहटा पश्चिमी बंगाल में 4, 25 नवम्बर 2014 को उत्तरी बिहार और नेपाल में 4.4, 18 दिसम्बर 2014 को उत्तरी बिहार और नेपाल मे 4.2-5.0 तक रिक्टर स्केल पर दर्ज किया गया था। इस संबंध मे आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ राकेश कुमार की माने तो 1934 के भूकंप के बाद यह दुसरा मौका था जब लोगो ने दोपहर के समय तबाही का मंजर देखा। सामान्यत: शाम और सवेरे के समय भूकंप की तवाही देखी गयी है। राकेश ने बताया कि वत्तर्मान भूकंप पी वैभ का था।

उन्होंने कहा कि पी यानि प्राइमरी वैभ की गति 1.6 किलो मीटर से 08 किलो मीटर प्रति सैकेंड होता है। जबकि एस यानि सेकेंडरी वैभ जिसकी गति तो धीमी होती है मगर वह बेहद खतरनाक होता है जो संरचनाओ को ध्वंस्त करने मे माहिर होता है। उन्होने कहा कि भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र में 1934 के बाद 18 सितम्बर 11 को  भारत-नेपाल सीमा के सिक्किम क्षेत्र मे भूकंप आया था जो एस वैभ का था।

क्या है भूकंप से बचाव
आपदा प्रबंधक विशेषज्ञ राकेश कुमार की माने तो भूकंप का केन्द्र बिन्दू जमीन के सतह से 300-700 किलो मीटर नीचे है तो कम प्रभावी होता है। वही 60 से 300 किलो मीटर के बीच होने से यह प्रभावकारी होता है तथा 60 से कम होने पर विनाशकारी हो जाता है। उन्होंने कहा कि भूकंप से नही बल्कि संरचनाओ के ध्वंस्त होने से लोग मरते हैं। ऐसे मे मकान निर्माण में भूकंप अवरोधी तकनीकी का इस्तेमाल होना जरूरी है। पुराने मकानों का रैट्रोफिटींग कराकर भूकंप अवरोधी बनाएं। भूकंप के समय कंक्रीट बिल्डिग से निकलकर सुरक्षित स्थानों पर जाना चाहिए। तथा अपने घरों के इर्द गिर्द भी सूरक्षित स्थानो की तालाश करना चाहिए। घर मे एक आपातकालीन बैग रखना चाहिए जिसमें जरूरी कपड़े, सुखे भोजन, जरूरी दवाएं, टार्च, रस्सी सहित अन्य सामिग्रियों को रखें। इसके अलावा खासकर स्कूलों मे समय समय पर मॉकड्रील करवाएं ताकि बच्चो मे पूर्व तैयारी व बचाव की योजना विकसित हो। राकेश ने कहा कि एक बच्चे का मतलब एक परिवार का सुरक्षित होना है।

आखिर क्या होता है भूकंप
भारतीय सिविल सर्विसेज में सफलता हासिल कर चुके भूगोल के छात्र रहे कुमार विवेक की माने तो भारतीय प्लेट यूरेशियम प्लेट की ओर निरंतर बढ़ रहा होता है और टकराहट से जो उर्जा पैदा होती है वही भूकंप कहलाता है। उन्होंने यह भी बताया कि हिमालय का जो फूट हिल (नीचे का पोर्सन)है, वह ईरान से लेकर अरूणाचल प्रदेश तक फैला हुआ है। यही वजह है कि पाकिस्तान, ब्लूचिस्तान, उत्तराखंड, नेपाल आदि जगहो पर भूकंप ज्योदे आते हैं। विवेक ने कहा कि पृथ्वी का नीचे का सतह लिक्विड फार्म में है जिस पर प्लेट तैर रहा होता है। इस प्लेट को चट्टान का भी एक बड़ा रूप मे देखा जाता है। भूकंप को रोका  नहीं जा सकता।

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