विदेश नीति के सूत्र - गर्मजोशी और स्पष्टता
पहली बार पूर्ण बहुमत लेकर केंद्र की सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के संसद के संयुक्त सत्र को दिए भाषण में ही साफ कर दिया था कि उसकी विदेश नीति पहले की सरकारों से कुछ अलग...
पहली बार पूर्ण बहुमत लेकर केंद्र की सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के संसद के संयुक्त सत्र को दिए भाषण में ही साफ कर दिया था कि उसकी विदेश नीति पहले की सरकारों से कुछ अलग होगी। पिछले सौ दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस धारणा को पुष्ट किया है। मोदी सरकार की विदेश नीति के जो तीन प्रमुख बदलाव दिखते हैं, वह - दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों के साथ गर्मजोशी और नजदीकी संबंध, अपनी शर्तों पर पाकिस्तान के साथ संबंध सुधार की कोशिशें जारी रखना और चीन, जापान, अमेरिका जैसी बड़ी ताकतों के साथ बहुस्तरीय रिश्ते। विदेश के मोर्चे पर मोदी सरकार की अब तक की गतिविधियों से यही संकेत मिलते हैं।
तीन माह पहले अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों व मॉरीशस के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित कर मोदी ने यह जताने की कोशिश की थी कि भारत तब तक ताकतवर नहीं हो सकता, जब तक उसके अपने पड़ोसी व अपेक्षाकृत छोटे देशों से अच्छे संबंध न हों। अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए उन्होंने भूटान को चुना। पिछले माह उन्होंने दूसरे मित्र देश नेपाल की यात्रा की। पिछले 17 वर्षों में नेपाल की यात्रा करने वाले मोदी पहले प्रधानमंत्री थे। नवंबर में संभवत: वह म्यांमार की यात्रा पर जाएं।
दक्षिण एशिया के देशों के संदर्भ में भारत की विदेश नीति अब तक ज्यादातर पाकिस्तान केंद्रित मानी जाती थी। मोदी ने इसे बदलने की कोशिश की है। पाक से वार्ता को लेकर नई लाइन खींचते हुए सरकार ने उसे कड़ा संदेश दिया है। वह या तो अलगाववादी संगठनों से बात कर ले या भारत से। ऐसा पहली बार हुआ है। यह नीति कितनी कारगर होगी यह अभी देखने की बात है, लेकिन मोदी सरकार की कोशिश ऐसा करके अलगाववादियों को अलग-थलग करने और पाक को यह संदेश देने के लिए है कि वह कश्मीर को भारत से अलग कर नहीं देख सकते।
विदेश के मोर्चे पर मोदी सरकार का दूसरा कड़ा फैसला विश्व व्यापार संगठन के व्यापार सुगमता करार पर असहमति से संबंधित है। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी को प्रधानमंत्री ने काफी साफ शब्दों में कहा कि भारत इस संबंध में विकसित देशों के दबाव को स्वीकार नहीं करेगा। अब सबकी नजरें इसी माह वाशिंगटन में प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की प्रस्तावित बैठक पर हैं।
चीन और जापान के साथ संबंधों को लेकर मोदी सरकार अब तक विश्वसनीय संतुलन बनाए रखने में कामयाब रही है। जापान यात्रा की तारीखों को लेकर शुरुआती झिझक के बाद प्रधानमंत्री ने अपने पुराने मित्र जापानी प्रधानमंत्री शिंजो अबे को प्रभावित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। साथ ही ब्रिक्स बैंक का मुख्यालय चीन के शंघाई में रखने के प्रति सहमति जताकर यह स्पष्ट किया है कि चीन से क्षेत्रीय व अंतरराष्ट्रीय मसलों पर सहयोग के लिए वह तैयार हैं।