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बेगुनाह होने के बावजूद दी गई सुखदेव को फांसी

अंग्रेज़ों ने भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की फांसी को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था और वो हर कीमत पर इन तीनों क्रांतिकारियों को ठिकाने लगाना चाहते थे।     लाहौर षडयंत्र...

बेगुनाह होने के बावजूद दी गई सुखदेव को फांसी
एजेंसीMon, 22 Mar 2010 04:31 PM
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अंग्रेज़ों ने भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की फांसी को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था और वो हर कीमत पर इन तीनों क्रांतिकारियों को ठिकाने लगाना चाहते थे।
   
लाहौर षडयंत्र 'सांडर्स हत्याकांड' में जहां पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया गया। वहीं अंग्रेज़ों ने सुखदेव के मामले में तो सभी हदें पार कर दीं और उन्हें बिना जुर्म के ही फांसी पर लटका दिया।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चमन लाल का कहना है कि सांडर्स हत्याकांड में सुखदेव शामिल नहीं थे। लेकिन फिर भी अंग्रेज़ों ने उन्हें फांसी पर लटका दिया।
   
उनका कहना है कि राजगुरू, सुखदेव और भगत सिंह की लोकप्रियता तथा क्रांतिकारी गतिविधियों से अंग्रेज़ी शासन इस क़दर हिला हुआ था कि वह इन्हें हर कीमत पर फांसी पर लटकाना चाहता था।
उन्होंने कहा कि सांडर्स हत्याकांड में पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया गया और सुखदेव को इस मामले में बिना जुर्म के ही सज़ा दे दी गई।
   
15 मई 1907 को पंजाब के लायलपुर (अब पाकिस्तान का फैसलाबाद) में जन्मे सुखदेव भी भगत सिंह की तरह बचपन से ही आज़ादी का सपना पाले हुए थे। ये दोनों लाहौर नेशनल कॉलेज के छात्र थे। दोनों एक ही सन में लायलपुर में पैदा हुए और एक ही साथ शहीद हो गए।

चमन लाल ने बताया कि दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी। चंद्रशेखर आज़ाद के नेतत्व में पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल के विरोध में असेंबली में बम फेंकने के लिए जब हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की पहली बैठक हुई तो उसमें सुखदेव शामिल नहीं थे।
   
बैठक में भगत ने कहा कि बम वह फेंकेंगे। लेकिन आज़ाद ने उन्हें इजाज़त नहीं दी और कहा कि संगठन को उनकी बहुत ज़रूरत है। दूसरी बैठक में जब सुखदेव शामिल हुए तो उन्होंने भगत सिंह को ताना दिया, 'शायद तुम्हारे भीतर ज़िंदगी जीने की ललक जाग उठी है और इसीलिए बम फेंकने नहीं जाना चाहते। इस पर भगत ने आज़ाद से कहा कि बम वह ही फेंकेंगे और अपनी गिरफ्तारी भी देंगे।

चमन लाल ने बताया कि अगले दिन जब सुखदेव बैठक में आए तो उनकी आंखें सूजी हुईं थीं। वह भगत को ताना मारने की वजह से सारी रात सो नहीं पाए थे। उन्हें अहसास हो गया था कि गिरफ्तारी के बाद भगत सिंह की फांसी निश्चित है।
   
इस पर भगत सिंह ने सुखदेव को सांत्वना दी और कहा कि देश को कुर्बानी की ज़रूरत है। सुखदेव ने अपने द्वारा कही गई बातों के लिए माफी मांगी और भगत सिंह इस पर मुस्करा गए। दोनों के परिवार लायलपुर में पास-पास ही रहा करते थे।

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