पूरी दुनिया में बढ़ेगा मोदी का रुतबा
आठ माह पहले जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे, तब उनकी विदेश नीति को लेकर कई तरह की आशंकाएं थीं। लेकिन बेहद कम वक्त में प्रधानमंत्री ने अमेरिका, रूस, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़ी आर्थिक...
आठ माह पहले जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे, तब उनकी विदेश नीति को लेकर कई तरह की आशंकाएं थीं। लेकिन बेहद कम वक्त में प्रधानमंत्री ने अमेरिका, रूस, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़ी आर्थिक महाशक्तियों को भारत का लोहा मनवाया है और यह साबित किया है कि दुनिया भारत की अनदेखी नहीं कर सकती।
यह याद करना होगा कि गुजरात में दंगों के बाद विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक व सैन्य ताकत अमेरिका ने उन्हें वीजा नहीं दिया था। मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी तीन बार चीन की यात्रा कर चुके थे। इसलिए मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अमेरिका के साथ भारत के रिश्तों को लेकर आशंकाएं स्वाभाविक थीं। लेकिन चार माह पहले मोदी की अमेरिका यात्रा और अब बराक ओबामा की तीन दिन की भारत यात्रा के बाद जिस तरह का माहौल बना है उसमें इस तरह की अटकलों के लिए जगह नहीं बची है। पर बराक ओबामा के साथ मित्रता कायम करते हुए मोदी ने चीन को छोड़ा नहीं। पिछले वर्ष सितंबर में प्रधानमंत्री के तौर पर अमेरिका की अपनी पहली यात्रा से ठीक पहले उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भारत में स्वागत किया।
कूटनीतिज्ञ मान रहे हैं कि भारत के हितों को ध्यान में रखते हुए मोदी दूसरे देशों के साथ रिश्तों की भूमिका तय कर रहे हैं। अमेरिका के साथ मित्रता करने का मतलब चीन के साथ झगडम करना नहीं है। दोनों ही भारत से बड़ी ताकत हैं। भारत दोनों को ही नाराज नहीं कर सकता। लेकिन अमेरिका के सामने चीन कार्ड और चीन के सामने अमेरिकी कार्ड रख कर अपना कुछ फायदा जरूर कर सकता है। इस तरह की नीति के अपने फायदे और नुकसान हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने दुनिया के प्रमुख राष्ट्रों के सामने जिस तरह से अपने आप को पेश किया है उससे भारत के प्रति विश्वास और उम्मीद का माहौल बना है।
इन आठ माह में मोदी चीन, जापान, रूस, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया के अलावा सार्क देशों के प्रमुखों से मिल चुके हैं। कूटनीति और दूसरे देशों के साथ संबंधों की पेचीदगियों में न पडम्ते हुए वह लोकसभा चुनावों में उन्हें मिले बहुमत की ताकत को सामने रख रहे हैं। वह भरोसा दिला रहे हैं कि वह जो कह रहे हैं उसे पूरा करने की सामथ्र्य रखते हैं। अमेरिका के साथ परमाणु करार पर सहमति इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। इस करार पर सहमति की बारीकियां अभी सार्वजनिक होना बाकी हैं। मतलब सहमति को अभी कागज में उतारने का काम हो रहा है।
5 उम्मीदें
1. मेक इन इंडिया के तहत भारत में आकर निर्माण करने की नीति के तहत अमेरिका ने भारत को एक दर्जन से ज्यादा प्रस्ताव दिए हैं।
2. दोनों देश कार्बन उत्सर्जन कटौती के इस साल पेरिस कन्वेंशन और हाइड्रोफ्लोरोकार्बन के मांट्रियल प्रोटोकॉल पर सहमति बनाएंगे।
3. दोनों देश द्विपक्षीय निवेश समझौते पर बातचीत आगे बढ़ाएंगे ताकि भविष्य में मुक्त व्यापार समझौते को लागू किया जा सके।
4. बौद्धिक संपदा अधिकार पर भारत ने अमेरिका को भरोसा दिया है ताकि अमेरिकी कंपनियों की आशंकाएं खत्म हों।
5. एशिया-प्रशांत में हाथ मिलाते हुए भारत, अमेरिका व जापान विदेश मंत्री स्तरीय त्रिपक्षीय वार्ता शुरू करने की संभावनाएं तलाशेंगे।
5 चिंताएं
1. जलवायु परिवर्तन पर चीन और अमेरिका ने समझौता किया है, वैसा ही दबाव भारत पर पड़ रहा है। लेकिन भारत आर्थिक विकास की जरूरतों की अनदेखी नहीं करेगा।
2. हथियारों की खरीद और साझा विकास के लिए अमेरिका किस हद तक भारत को तकनीक और विशेषज्ञता देगा। इस मामले में रूस हमारा भरोसेमंद साथी रहा है। भारत को दोनों देशों के बीच संतुलन कायम करना होगा।
3. अमेरिकी कंपनी जीई-हिताची और तोशीबा-वेस्टिंगहाउस के परमाणु रिएक्टरों की लागत 25 से 30 करोड़ के बीच है। जबकि घरेलू तकनीक से बने रिएक्टरों पर प्रति मेगावाट करीब 7 करोड़ रुपये का खर्च आता है।
4. बौद्धिक संपदा अधिकारों पर भारत कितनी नरमी दिखा पाएगा, यह भी देखना होगा। भारत दवाओं और अन्य मूलभूत आवश्यकताओं को नजरअंदाज नहीं कर सकता।
5. अमेरिका ने भारत के नियामक और कर व्यवस्था में निरंतरता-सरलता की बात उठाई है। मोदी को जीएसटी, प्रत्यक्ष कर संहिता जैसे मसलों पर राज्यों को साथ लाना होगा।
10 उपलब्धियां
1 परमाणु करार: दोनों देशों ने नाभिकीय दुर्घटना की स्थिति में मुआवजे के लिए 1500 करोड़ रुपये का बीमा पूल बनाने का फैसला किया और अमेरिका ने उसके रिएक्टरों की निगरानी की शर्त वापस ले ली।
2 स्वच्छ ऊर्जा: अमेरिका ने स्वच्छ ऊर्जा के लिए भारत में दो अरब डॉलर का ऋण का ऐलान किया। भारत को सौर ऊर्जा, बायो फ्यूल के क्षेत्र में शोध के लिए तकनीकी मदद देगा।
3 ऋण सुविधाएं: अमेरिकी निर्यात-आयात बैंक एक अरब डॉलर के अमेरिकी उत्पादों के निर्यात में भारत की मदद करेगा। भारत के लघु और मझोले उद्योगों को एक अरब डॉलर का ऋण देगा।
4 सुरक्षा परिषद: ओबामा ने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी स्दस्यता का वादा दोहराया और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में प्रवेश के लिए भारत की मदद के भी संकेत दिए हैं।
5 हॉटलाइन पर वार्ता: भारत के प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच संपर्क के लिए हॉटलाइन स्थापित की जाएगी।
6 रक्षा सहयोग: दोनों देशों ने रक्षा सहयोग समझौते को दस साल बढ़ाया है। आतंकवाद के क्षेत्र में सूचनाएं साझा करने पर भी हाथ मिलाया है।
7 साझा उत्पादन: दोनों विमान वाहक पोत और जेट इंजन की तकनीक साझा करने और इनके विकास की संभावनाओं का पता लगाने पर सहमत।
8 स्मार्ट सिटी: विशाखापटनम, इलाहाबाद और अजमेर को स्मार्ट सिटी में तब्दील किया जाएगा। इन शहरों में सुविधाएं के लिए अमेरिका मदद करेगा।
9 व्यापार लक्ष्य: ओबामा और मोदी ने द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर से 2020 तक 500 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य तय किया है।
10 कामगारों पर करार: दोनों देश चाहते हैं, उन कामगारों को लाभ हो जो लघु अवधि के लिए भारत या अमेरिका काम करने जाते हैं।
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