उत्तराखंड में बिजली परियोजनाएं गंगा के लिए खतरा
सेंटल इलेक्ट्रिीसिटी अथॉरिटी (सीईए) और उत्तराखंड सरकार द्वारा गंगा पर प्रस्तावित यदि 70 बिजली परियोजनाओं का निर्माण हुआ तो गैर मानसून सीजन में गंगा एक नाले में तब्दील हो जाएगी। कई खंडों में नदी पूरी...
सेंटल इलेक्ट्रिीसिटी अथॉरिटी (सीईए) और उत्तराखंड सरकार द्वारा गंगा पर प्रस्तावित यदि 70 बिजली परियोजनाओं का निर्माण हुआ तो गैर मानसून सीजन में गंगा एक नाले में तब्दील हो जाएगी। कई खंडों में नदी पूरी तरह से सूख जाएगी। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के अध्ययन में यह बात सामने आई है।
सीएसई के अनुसार उत्तराखंड में नौ हजार मेगावाट की 70 छोटी बड़ी-परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। हालांकि अभी इन्हें पर्यावरण मंत्रालय की हरी झंडी नहीं मिली है लेकिन यदि इनका क्रियान्वयन होता है तो यह गंगा के लिए बेहद घातक साबित होंगी। इन परियोजनाओं से भागीरथी का प्रवाह 80 फीसदी, अलकनंदा का 65 फीसदी तथा अन्य छोटी सहायक नदियों का प्रवाह 90 फीसदी तक बाधित हो जाएगा।
सीएसई के अनुसार सभी प्रस्तावित योजनाएं नदी के प्रवाह पर आधारित हैं। जिनके बारे में यह कहा जा रहा है कि बड़े बांधों की तुलना में इस प्रकार की परियोजनाएं सुरक्षित हैं। दरअसल, इन परियोजनाओं में नदी से नहर के जरिये पानी उस स्थान पर ले जाया जाता है जहां बिजली पैदा की जानी है। बाद में दूसरी नहर से पानी को वापस नदी में छोड़ा जाता है। लेकिन इन दो स्थानों के बीच वाले स्थान में नदियों के सूखने का खतरा पैदा हो सकता है क्योंकि जो परियोजनाएं तैयार की गई हैं उसमें गंगा में 10 फीसदी के प्राकृतिक प्रवाह को ही पर्याप्त माना गया है।
सीएसई के अनुसार यदि गंगा में पानी का दस फीसदी ही प्रवाह होगा और उस दौरान भी बिजली परियोजनाओं के लिए पानी जाता रहा तो फिर कई स्थानों पर नदी बचेगी ही नहीं। सीएसई का सुझव है कि गैर मानसून सीजन खासकर गर्मियों एवं सर्दियों में भी न्यूनतम 30 फीसदी प्राकृतिक प्रवाह होना चाहिए। लेकिन उत्तराखंड के तमाम परियोजनाएं सिर्फ दस फीसदी के प्राकृतिक प्रवाह के आधार पर बनाई गई हैं। इसलिए यह गंभीर खतरा है।
पानी को साफ नहीं कर पाएगी नदी
गंगा में पानी जितना कम होगा उसकी अस्तित्व के लिए खतरा उतना ही ज्यादा। एक तरफ पानी कम होता है तो दूसरी तरफ अपशिष्ट पहले की भांति नदी में डाला जाता है। पानी की कमी से नदी का प्राकृतिक प्रवाह खत्म हो जाता है तथा अपने पानी को साफ करने की उसकी खुद की क्षमता खत्म हो जाती है।
उप्र में सबसे ज्यादा प्रदूषित होती है गंगा
-उत्तराखंड में गंगा 450 किमी क्षेत्र में बहती है। राज्य के 14 नाले गंगा में खुलते हैं। जिनके जरिये 440 एमएलडी (दस लाख लीटर प्रतिदिन) कचरा गंगा में पहुंचता है।
-उप्र में गंगा एक हजार किमी क्षेत्र में बहती है। 43 नाले गंगा में मिलते हैं जिनसे 3270 एमएलडी कचरा नदी में गिरता है।
-बिहार में गंगा 405 किमी में बहती है। 25 नालों से 580 एमएलडी कचरा नदी में गिरता है।
-पश्चिम बंगाल में 520 किमी गंगा बहती है तथा 54 नालों से 1780 एमएलडी कचरा नदी में पहुंचता है।
सीवेज ट्रीटमेंट क्षमता कम
सीपीसीबी के अनुसार गंगा के किनारे बसे 50 शहरों से प्रतिदिन 2723 एमएलडी सीवेज पैदा होता है। जबकि ट्रीटमेंट की क्षमता 1208 एमएलडी की है। लेकिन मौजूदा ट्रीटमेंट क्षमता भी सही ढंग से कार्य नहीं कर रही है। गंगा के किनारे बसे शहरों में 64 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं जिनमें से 51 अपनी क्षमता के 60 फीसदी से भी कम चल रहे थे।