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सदियों बाद फिर शुरू हुआ नालंदा विश्‍वविद्यालय

प्राचीन नालंदा महाविहार 821 साल बाद सोमवार को पुनर्जीवित हो उठा। नवनिर्मित नालंदा अन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में दो विषयों के सत्रारंभ के साथ ही न सिर्फ बिहार व भारत बल्कि पूरे विश्व का सपना साकार...

सदियों बाद फिर शुरू हुआ नालंदा विश्‍वविद्यालय
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 01 Sep 2014 09:53 PM
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प्राचीन नालंदा महाविहार 821 साल बाद सोमवार को पुनर्जीवित हो उठा। नवनिर्मित नालंदा अन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में दो विषयों के सत्रारंभ के साथ ही न सिर्फ बिहार व भारत बल्कि पूरे विश्व का सपना साकार हो गया। हालांकि इस विश्वविद्यालय का औपचारिक उद्घाटन 14 सितंबर को होना है। उस दिन केन्द्रीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज समेत राष्ट्रीय व अन्तरराष्र्टीय के शिक्षाविदें के भाग लेने की संभावना है।

नवस्थापित नालंदा विश्वविद्यालय में सोमवार को ठीक साढ़े ग्यारह बज रहे थे। स्थान, प्रथम बौद्ध संगिति स्थल सप्तपर्णी गुहा के सामने बने अंतरराष्ट्रीय कंवेन्शन सेंटर का तीस सीटों वाला सीटर कांफ्रेंस हॉल। यहां बैठे थे नालंदा अन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के नामांकित दोनों विषयों के कुल 15 में से आठ छात्र।

साथ में थे चयनित दस में सात अध्यापक। इनका नेतृत्व कर रही थीं कुलपति डॉ. गोपा सभरवाल और डीन डॉ. अंजना शर्मा। सभी के चेहरों पर कुछ अजीब-सी चमक, शांति और सुकून। मानों सबकी ख्वाहिशें पूरी हो गई। 

डीन डॉ. शर्मा अपने संबोधन में कहती हैं-हम आपस में एक-दूसरे को कई दिनों से जान रहे हैं, लेकिन सत्र के पहले दिन की शुरुआत हम क्यों न परिचय से करें। और, उनके ठीक विपरीत दिशा की कुर्सी पर बैठी कोलकाता की छात्रा साना स्लाह अपना परिचय देती है। वह पर्यावरण विज्ञान की छात्रा हैं।

उसकी दायीं ओर बैठी पटना की लूबना खान जो इतिहास की छात्रा है, उनके बाद जापान का अतिरनोकामोरा और कर्नाटक के डैनियल जो कि पर्यावरण विज्ञान के छात्र हैं और अन्य ने अंग्रेजी भाषा में अपना परिचय दिया।

परिचय के बाद सभी छात्र व अध्यापक मीडियाकर्मियों से रूबरू हुए। करीब 40 मिनट बाद फिर उसी हॉल में लौटे छात्र व अध्यापक। सबसे पहले गंभीर चर्चा की गयी शुरू किये जा रहे दोनों विषयों इतिहास व पर्यावरण विज्ञान के सिलेबस पर। करीब दो घंटे तक चली क्लास में 16 देशों के विद्वानों की मदद से बनाये गये दोनों विषयों के वैश्विक सिलेबस की गंभीरता और औचित्य पर चर्चा की गयी।

मंगलवार से दोनों विषयों के छात्रों की अलग-अलग क्लास लगेगी। रोजाना चार से पांच कक्षाएं चलेंगी। कुलपति डॉ. सभरवाल ने कहा कि आज का दिन न सिर्फ मेरे, छात्र व विवि से जुड़े लोगों, बल्कि पूरे भारत और विश्व के लिए अद्भुत क्षण है। सवा आठ शताब्दी बाद फिर से नालंदा पुनर्जीवित हो उठा।

डीन डॉ. अंजना शर्मा ने दुहराया कि यह विश्वविद्यालय सामान्य शैक्षणिक संस्थान नहीं, बल्कि शोध का उच्चतम केन्द्र बनेगा। कहा-कई झंझावतों को ङोलते हुए हमने अपने लक्ष्य की पहली कड़ी पार कर ली है। कई बाधाएं आईं। रुकावटें पैदा की गयीं। आरोप दर आरोप लगाये गये, लेकिन एक के बाद एक सभी आरोप बेबुनियाद साबित होते गये। हम अपनी मंजिल की ओर बढ़ते गये। परिणाम सबके सामने है। यह विश्व की पहली यूनिवर्सिटी है, जिसे 16 देशों ने प्रत्यक्ष तो अन्य कई देश अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग कर रहे हैं।

हमें तो मंजिल मिल गयी
खुशी के मारे लाल हुईं डीन डॉ. शर्मा ने कहा कि जीत का दूसरा नाम नालंदा है। नालंदा नाम से ही द्वेष समाप्त हो जाता है। हम यूनिवर्सिटी के माध्यम से इसे सार्थक करेंगे। जो भी छात्र यहां से पढ़कर बाहर निकलेंगे, अपने क्षेत्र में अद्वितीय ज्ञान के साथ ही विश्व को शांति की राह पर ले जाने की सोच वाले होंगे। उन्होंने कहा हमें तो मंजिल मिल गयी।

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