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...तो इसलिए दो दिन मनाई जाती है कृष्ण जन्माष्टमी

भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन के मौके पर दुनियाभर में मनाई जाने वाली कृष्ण जन्माष्टमी इस बार 5 सितंबर को मनाई जानी है। जन्माष्टमी के मौके पर पूजा मुहूर्त रात में 11 बजकर 56 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट तक...

...तो इसलिए दो दिन मनाई जाती है कृष्ण जन्माष्टमी
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 02 Sep 2015 05:57 PM
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भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन के मौके पर दुनियाभर में मनाई जाने वाली कृष्ण जन्माष्टमी इस बार 5 सितंबर को मनाई जानी है। जन्माष्टमी के मौके पर पूजा मुहूर्त रात में 11 बजकर 56 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट तक रहेगा।

इस तरह से पूजा की अवधि 46 मिनट की होगी। यह भगवान श्री कृष्ण का 5242वां जन्मोत्सव होगा। जन्माष्टमी के दिन अगर आप व्रत रखते हैं तो उसका पारण आप अगले दिन यानी कि 6 सितंबर को सुबह 6 बजकर 5 मिनट के बाद कभी भी कर सकते हैं। दही हांडी भी 6 सितंबर को होगी।

अष्टमी तिथि की शुरुआत- 5 सितंबर 2015 को 3 बजकर 55 मिनट
अष्टमी तिथि समाप्त- 6 सितंबर 2015 को 3 बजकर 09 मिनट


इसलिए दो अलग-अलग दिन मनाई जाती है कृष्ण जन्माष्टमी
अधिकतर कृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिनों पर हो जाती है। जब-जब ऐसा होता है, तब पहले दिन वाली जन्माष्टमी स्मार्त संप्रदाय के लोगों के लिए और दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव संप्रदाय के लोगों के लिए होती है।

अक्सर उत्तर भारत में श्रद्धालु स्मार्त और वैष्णव जन्माष्टमी का भेद नहीं करते और दोनों संप्रदाय की जन्माष्टमी एक ही दिन मनाते हैं। यह सर्वसम्मति इस्कॉन संस्थान की वजह से है। ´कृष्ण चेतना के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय´ संस्था, जिसे इस्कॉन के नाम से जाना जाता है, वैष्णव परंपराओं और सिद्धांतों के आधार पर निर्माणित की गई है। इसलिए इस्कॉन के ज्यादातर अनुयायी वैष्णव संप्रदाय के लोग होते हैं।

इस्कॉन संस्था सर्वाधिक व्यावसायिक और वैश्विक धार्मिक संस्थानों में से एक है जो इस्कॉन संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए अच्छा-खासा धन और संसाधन खर्च करती है। इसलिए इस्कॉन के व्यावसायिक प्रभाव की वजह से अधिकतर श्रद्धालु इस्कॉन द्वारा चुनी गई जन्माष्टमी को मनाते हैं। जो श्रद्धालु वैष्णव धर्म के अनुयायी नहीं हैं वो इस बात से अंजान हैं कि इस्कॉन की परम्पराएं अलग होती हैं और जन्माष्टमी उत्सव मनाने का सबसे उपयुक्त दिन इस्कॉन से अलग भी हो सकता है।

स्मार्त अनुयायी, जो स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय के अंतर को जानते हैं, वे जन्माष्टमी व्रत के लिए इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन का अनुगमन नहीं करते हैं। दुर्भाग्यवश ब्रज क्षेत्र, मथुरा और वृन्दावन में, इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन का सर्वसम्मति से अनुसरण किया जाता है। श्रद्धालु जो दूसरों को देखकर जन्माष्टमी के दिन का अनुसरण करते हैं वो इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन को ही उपयुक्त मानते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी को कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, रोहिणी अष्टमी, श्रीकृष्ण जयन्ती और श्री जयन्ती के नाम से भी जाना जाता है।

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