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दिल्ली के दूषित जलाशय कम खर्च में साफ होंगे

दिल्ली सरकार ने सीवर के कारण दूषित हो चुके जलाशयों को कम खर्च में साफ करने की कवायद शुरू कर दी है। दिल्ली जलबोर्ड जलाशयों को साफ करने के लिए नई तकनीक कंस्ट्रक्टिड एंड फ्लोटिंग वेटलैंड का इस्तेमाल कर...

दिल्ली के दूषित जलाशय कम खर्च में साफ होंगे
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 10 Mar 2017 11:31 PM
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दिल्ली सरकार ने सीवर के कारण दूषित हो चुके जलाशयों को कम खर्च में साफ करने की कवायद शुरू कर दी है। दिल्ली जलबोर्ड जलाशयों को साफ करने के लिए नई तकनीक कंस्ट्रक्टिड एंड फ्लोटिंग वेटलैंड का इस्तेमाल कर रहा है।

सीवर की वजह से दूषित हो चुके 83 जलाशयों को इस तकनीक से साफ किया जाएगा। इसकी शुरुआत पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चार जलाशयों से कर दी गई है। इनमें मित्राउकलां स्थित दो तालाबों के अलावा कैर और आयानगर स्थित दो तालाब शामिल हैं।

कम खर्च पर बेहतर परिणाम मिलेगा

जलबोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस तकनीक के प्रयोग से जलाशयों को साफ करने के लिए महंगे सीवर ट्रीटमेंट प्लांट(एसटीपी) नहीं लगाने होंगे। इसमें एसटीपी की तुलना में दस गुना कम खर्च होता है। पायलट प्रोजेक्ट के समानांतर भलस्वा से सुर घाट तक 8 किलोमीटर लंबे नाले को भी नई तकनीक से साफ किया जाएगा। इसमें मशीनों का इस्तेमाल नहीं होता है।

क्या है यह तकनीक

कंस्ट्रक्टिड एंड फ्लोटिंग वेटलैंड तकनीक में सीवर के बहाव क्षेत्र में रीड बेड (एक तरह का घास का बागान) विकसित किया जाता है। इसमें जलक्षेत्र के आसपास नमी वाले इलाके में उगने वाली जूट, कांस और बांस जैसी घास को लगाया जाता है। इसमें रीड नामक घास को सबसे ज्यादा उपयोगी माना जाता है। राजधानी स्थित पूसा और अन्य संस्थानों में रीड बेडÜकी मदद से सीवर ट्रीटमेंट तकनीक को पहले से ही इस्तेमाल में लाया जा रहा है। जलशोधन मामलों के जानकार संजय शर्मा के मुताबिक, सीवर के बहाव क्षेत्र में विकसित किया गया रीड बेड घास के बागान की तरह दिखता है। मगर असल में यह दूषित पानी पर तैरता रहता है। इस वजह से इसे फ्लोटिंग वेटलैंड कहते हैं।

कैसे होती है पानी की सफाई

जलक्षेत्रों के किनारे पाई जाने वाली कांस, जूट, बांस, क्वायर और रीड सहित अन्य प्रकार की घास पोषक तत्वों (न्यूट्रेंट) के रूप में सीवर का इस्तेमाल करती है। रीड बेड का क्षेत्र और इसके पौधों की मात्रा सीवर के बहाव क्षेत्र पर निर्भर करती है। ये पौधे सीवर और अन्य अपशिष्ट का भक्षण कर पानी को साफ करने करने का काम करते हैं। अपशिष्ट से मुक्त रीड बेड के नीचे बचे हुए पानी को जलाशय के आसपास पार्क आदि विकसित करके सिंचाई के काम में लाया जाता है। रीड बेड से मिलने वाली जूट, कांस और अन्य प्रकार की घास को बेच कर जलबोर्ड जलाशयों के आसपास विकसित किए गए पार्कों का रखरखाव करेगा। इसमें सिर्फ पानी के पंपिंग सेट, रीड बेड और पार्क बनाने पर ही खर्च होता है। यह खर्च एसटीपी से दस गुना तक कम होता है। जलबोर्ड की योजना भविष्य में इस तकनीक को नजफगढ़ और शाहदरा जैसे बड़े नालों में भी इस्तेमाल करने की है।

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