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Hindi NewsMOVIE REVIEW: ऐसी है धौनी की बायोपिक 'M.S.Dhoni: द अनटोल्ड स्टोरी'

MOVIE REVIEW: ऐसी है धौनी की बायोपिक 'M.S.Dhoni: द अनटोल्ड स्टोरी'

रेटिंग 3 स्टार कलाकार:  सुशांत सिंह राजपूत, अनुपम खेर, भूमिका चावला, किआरा अडवाणी, दिशा पटानी, हैरी टंगड़ी, श्रेयस तलपड़े, राजेश शर्मा, ब्रिजेन्द्र काला, कुमुद मिश्रा, निर्देशक: नीरज...

MOVIE REVIEW: ऐसी है धौनी की बायोपिक 'M.S.Dhoni: द अनटोल्ड स्टोरी'
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 30 Sep 2016 05:45 PM
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रेटिंग 3 स्टार
कलाकार:  सुशांत सिंह राजपूत, अनुपम खेर, भूमिका चावला, किआरा अडवाणी, दिशा पटानी, हैरी टंगड़ी, श्रेयस तलपड़े, राजेश शर्मा, ब्रिजेन्द्र काला, कुमुद मिश्रा,
निर्देशक: नीरज पांडे
निर्माता: अरुण पांडे, फॉक्स स्टार स्टूडियो
कहानी-पटकथा: नीरज पांडे, दिलिप झा
संवाद: नीरज पांडे
संगीत: अमाल मलिक, रोचक कोहली
गीत : मनोज मुंतशिर

महेन्द्र सिंह धौनी की जिंदगी को बड़े परदे पर देखने के अलावा इस फिल्म के प्रति उत्सुकता की दो और वजह समझ में आती हैं। पहली है इस फिल्म के मुख्य अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत और दूसरी वजह है इस फिल्म के निर्देशक नीरज पांडे, जो अपनी एक अलग शैली के लिए जाने जाते हैं। सुशांत को लेकर बस एक यही बात थी कि वह धौनी के रूप में कैसे लगेंगे। बाकी अभिनय तो वह ठीक-ठाक कर ही लेते हैं। और रही बात नीरज की, तो उत्सुकता इस बात को लेकर थी कि अक्षय कुमार के साथ थ्रिलर फिल्में बनाने वाला ये इंसान देश के सबसे चर्चित व्यक्तियों में से एक धौनी की जिंदगी पर 3 घंटे लंबी फिल्में आखिर दिखाना क्या चाहता है? क्या धौनी की जिंदगी में वाकई कुछ ऐसा है, जिसके लिए 3 घंटे की फिल्म देखी जाए? क्या वाकई भारतीय क्रिकेट के इस सबसे सफल कप्तान की जिंदगी में प्रेरणादायक बातों का ऐसा डोज है, जिसे देख लोग उछल उठेंगे। लेकिन फिल्म देखने के बाद न केवल उत्सुकताएं शांत हुईं, बल्कि ऐसा भी लगा कि फिल्म में कुछ और भी होना चाहिए था। वो कुछ और क्या है, आइये बताते हैं।

फिल्म की कहानी रांची में महेन्द्र सिंह धौनी (सुशांत सिंह राजपूत) के जन्म से शुरू होती है। उसके पिता पान सिंह (अनुपम खेर) सरकारी मुलाजिम है और एक पंप ऑपरेटर के पद पर काम करते हैं। थोड़ा बड़ा होने पर महेन्द्र, माही बन गया। उसे बचपन में फुटबॉल खेलने का शौक था, लेकिन एक दिन जब उसके स्कूल के क्रिकेट कोच बैनर्जी (राजेश शर्मा) की नजर उस पर पड़ती है तो सब बदल जाता है। बैनर्जी उसे विकेट कीपिंग की ट्रेनिंग देता है, लेकिन माही को बैटिंग पसंद है। जल्द ही माही एक बैट्समैन के रूप में छा जाता है और उसे आगे भी खेलने के कई मौके मिलते हैं।

माही की प्रतिभा को देवल जी (कुमुद मिश्रा) जैसे लोगों का सहारा भी मिलता है, जो उसकी प्रतिभा को बचपन से देखते आ रहे हैं। लेकिन एक बार जब माही को दिलिप ट्रॉफी के लिए अगरतला जाना होता है तो देवल जी भी कुछ खास नहीं कर पाते। माही इस मौके से चूक जाता है, लेकिन टूटता नहीं। ऐसे मौके पर उसे बांधने का काम उसकी बहन जयंती (भूमिका चावला) करती है, जो बचपन से उसके खेल की वकालत करती आई है। उसके दोस्त भी उसका खूब साथ देते हैं। खासतौर से परम और संतोष। माही के आगे बढ़ने के कई मौके मिलते हैं, लेकिन कहीं न कहीं कसर हमेशा बाकी रह जाती है। इसी बीच जब रेलवे में टिकट कलेक्टर की जॉब का ऑफर आता है तो वह मना नहीं कर पाता। आखिर उसके बाबूजी का भी तो एक यही सपना है कि माही बस किसी तरह से सरकारी नौकरी में लग जाए।

खड़गपुर रेलवे स्टेशन पर टीसी लगने के बाद माही की जिंदगी जैसे ठहर जाती है। दो-तीन सालों में वह नौकरी और क्रिकेट के बीच तालमेल नहीं बैठा पाता और निराश हो जाता है। फिर एक दिन वो इस स्टेशन से निजात पाने के लिए यहीं के एक प्लेटफॉर्म से एक ट्रेन पकड़ता है और वापस रांची आ जाता है। यहां से उसकी जिंदगी का एक नया सफर शुरू होता है। माही पर बीसीसीआई की एक टैलेंट सर्च टीम की नजर पड़ती है और उसे भारत-बांग्लादेश दौरे के लिए चुन लिया जाता है।

शुरुआती कुछ झटकों के बाद इस दौरे से माही को एक नई पहचान मिलती है और एक हमसफर भी। माही की मुलाकात प्रियंका (दिशा पटानी) से होती है, जो क्रिकेट की दीवानी है। दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगते हैं, लेकिन ये सफर कुछ दूरी पर खत्म हो जाता है। बांग्लादेश दौरे के बाद माही पीछे मुड़ कर नहीं देखता। पाकिस्तान दौरे के बाद उसे टी-20 वर्ल्ड कप की जिम्मेदारी मिलती है और फिर...

इससे आगे क्या बताया जाए। टी-20 वर्ल्ड कप जीतने के बाद धौनी की जिंदगी में क्या-क्या हुआ हम सब जानते हैं। शायद यही वजह है कि इस 3 घंटे लंबी फिल्म के सबसे दिलचस्प पहलू इंटरवल से पहले ही हैं। सिलसिलेवार शुरू करते हैं। सबसे पहली बात तो ये कि धौनी के किरदार में सुशांत के दस में से आठ नंबर पक्के। दो नंबर क्यों काटे, ये दर्शक फिल्म देखने के बाद समझेंगे। हालांकि फिल्म देखते हुए ये बिल्कुल नहीं लगता कि ये कोई और इंसान है। सुशांत ने इस किरदार को बेहद विश्वसनीय ढंग से निभाया है, इसलिए उनसे कोई शिकायत नहीं। साथी किरदारों में राजेश शर्मा और कुमुद मिश्रा जैसे कलाकारों ने अच्छा काम किया है और अहसास दिलाया है कि जीवन में आपके साथ के लोग किन वजहों से अहम होते हैं।

ऐसा ही अहसास माही के मित्र बने कलाकारों को देख होता है। खासतौर से संतोष और परम के किरदार। संतोष ने ही माही को हैलीकॉप्टर शॉट लगाना सिखाया था, जिसे असल में थप्पड़ शॉट कहा जाता है। इस शॉट को सिखाने की कीमत केवल एक समोसा थी। और परम, उसने तो माही की स्पॉन्जरशिप के लिए उस समय रांची से जालंधर तक जूते घिसे थे, जब वह स्टेट लेवल ही खेल रहा था।

दरअसल ये माही ही नहीं उसके आसपास के लोगों की भी कहानी है, जो दिखाती है कि अपनों का साथ कितना जरूरी है। नीरज पांडे में इस तरह की तमाम बातों को बहुत अच्छे ढंग से और बेहद विश्वसनीय ढंग से पेश किया है। यही वजह है कि कई जगह आंखे नम भी पड़ जाती हैं। खासतौर से प्रियंका वाले प्रसंग, कोलकाता हवाई अड्डे वाला सीन, 2011 वर्ल्ड कप फाइनल वाले सीन, माही की सफलता पर उसके दोस्त चंटू का मिठाई बांटने वाला सीन, बैनर्जी का इमोशनल सीन आदि।

अब बात नीरज के निर्देशन की। अपनी चिर-परिचित शैली से परे जा कर भी उन्होंने कोई गलती नहीं की है, लेकिन उनका ये 3 घंटे की फिल्म बनाने वाला फैसला काफी हद तक गलत लगता है। दरअसल इंटरवले पहले ही फिल्म ही बहुत सारी बातें कही गई हैं। कह सकते हैं कि माही की जिंदगी के सबसे अहम पहलू इसी हिस्से में हैं। बाद की फिल्म में टीम में चयन और उसकी निजी जिंदगी है, जिसके बारे में कुछ नया नहीं है। सब जानते हैं कि धौनी और साक्षी की मुलाकात कैसे हुई, इसलिए इस प्रसंग को बहुत ज्यादा नहीं खींचा जाना चाहिए था।

शायद दिलचस्पी क्रिकेट और उसे जुड़ी कॉन्ट्रोवर्सी को देखने में हो सकती थी, जिससे साफ तौर पर नीरज बचा ले गए हैं। उन्होंने युवराज सिंह (हैरी टंगड़ी) वाले प्रसंग को तो असानी से पचाने लायक अंदाज में बयां कर दिया, लेकिन धौनी के कप्तान बनने के बाद किस तरह से गांगुली, द्रविड़ और सचिन को लेकर बोर्ड ने फैसले लिए, इससे नीरज कन्नी काट गए। एक बात और कि फिल्म को 2011 तक ही सीमित रखा गया है। बाद के वर्षों में धौनी की जिंदगी में और बड़ी घटनाएं हुई हैं। खासतौर से टी-20 को लेकर कई तरह के विवाद भी सामने आए। अगर नीरज ने खुद को सेफ जोन में रख कर ये फिल्म बनाई है तो ठीक है। वर्ना इसमें कहने के लिए और भी बहुत कुछ हो सकता था। अगर ऐसा होता तो ये 3 घंटे वाली फिल्म खिंची हुई नहीं लगती।

बावजूद इसके कैप्टन कूल की जिंदगी के कई अनछुए पहलुओं पर रोशनी डालती ये फिल्म आकर्षित करती है। ये फिल्म जोश दिलती है, सीख भी देती है, कई जगह उबाल पैदा करती है, रुलाती है, हंसाती है और अपने सबसे प्यार खिलाड़ी के प्रति सम्मान भी जगाती है। इसलिए न केवल धौनी के फैन्स के लिए, बल्कि अन्यों के लिए भी यह एक देखने योग्य फिल्म है। आखिर ये जानना चाहिये कि जब धौनी का भारतीय क्रिकेट टीम में सेलेक्शन हुआ तो वह क्या कर रहे थे और अपने दोस्तों संग वह किस अंदाज में मजाक में करते थे।

देखें फिल्म का ट्रेलर:

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