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मोदी मैजिकः सेंसेक्स तीन साल में हुआ 29 हजार के पार

तीन साल पहले आज ही के दिन भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद का कैंडिडेट घोषित किया था। इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था ने काफी तेज रफ्तार पकड़ी है। शेयर मार्केट भी इन तीन सालों में 29 हजार...

मोदी मैजिकः सेंसेक्स तीन साल में हुआ 29 हजार के पार
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 13 Sep 2016 04:11 PM
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तीन साल पहले आज ही के दिन भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद का कैंडिडेट घोषित किया था। इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था ने काफी तेज रफ्तार पकड़ी है। शेयर मार्केट भी इन तीन सालों में 29 हजार के पार के चला गया है। मोदी लहर के चलते देश भर में भाजपा नीत एनडीए गठबंधन को सबसे ज्यादा लोकसभा की सींटे मिली जो अपने आप में एक रिकॉर्ड बना था। 27 मई 2014 को मोदी ने पीएम बने थे। उससे पहले से ही मार्केट और इकोनॉमी का रुख काफी कुछ बदल गया था।

मोदी के अलावा रघुराम राजन ने भी सुधारी थी मार्केट की चाल

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघराम राजन ने सुस्त पड़ी इकोनॉमी में रफ्तार लाने के लिए काफी कड़े कदम उठाने शुरू कर दिए थे। सबसे पहला काम राजन ने रुपये की चाल को बढ़ने से रोका। रुपया तब 60 के स्तर से पार चला गया था और धीरे-धीरे गिरता जा रहा था। 60 से रुपया 65-70 के बीच आ गया था। इसके चलते इंपोर्ट महंगा हो गया था और पेट्रोल-डीजल में भी आग लगी हुई थी। 2013 में राजन ने कई कदम उठाए, जिनसे रुपये में गिरावट रुकी। इंटरेस्ट रेट को भी राजन ने शुरूआत में बढ़ाया जिससे महंगाई का स्तर काफी कम हुआ था। इससे मोदी के पीएम बनने से पहले मार्केट और इकोनॉमी में काफी ग्रोथ देखने को मिल गई थी।

मोदी राज में मार्केट ने देखा काफी उतार-चढ़ाव

2013 में मार्केट ठंडा पड़ा हुआ था, उस समय सेंसेक्स 20,000 और निफ्टी 5,800 से नीचे संघर्ष कर रहे थे। 2014 में लोकसभा चुनाव होने थे और यह तय होने वाला था अर्थशास्त्री और तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह की जगह कौन उनके पद पर बैठेगा। ऐसा नहीं है कि मोदी राज में मार्केट ने केवल ग्रोथ देखी हो और निवेशकों को मालामाल कर दिया हो। 2015 में एक बार समय ऐसा भी आया जब इकोनॉमी में चल रही सुस्त रफ्तार और सरकार के द्वारा दिए गए सुझावों को आरबीआई द्वारा नहीं मानने से मार्केट क्रैश भी हो गया था। इसका असर इस साल जनवरी की शुरूआत तक दिखा।

बढ़ते एनपीए से गड़बड़ाई सरकारी बैंकों की बैलेंस शीट

2015 में एनपीए के चलते सरकारी बैंकों को काफी नुकसान उठाना पड़ा। सरकार द्वारा 25 हजार करोड़ रुपये की मदद से भी इन बैंकों को कोई मदद नहीं मिली। वित्त वर्ष 2015-16 में सरकारी बैंकों की बैलेंस शीट लाल घेरे में बंद हुई। हालांकि पिछले 6 माह में बैंकों की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी एनपीए से निपटने के लिए काफी काम किया जाना जरूरी है।

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