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राजनीति का नशा फिल्मों पर भी चढ़ा

इलेक्शन (चुनाव) सर्कस की तरह होता है। यहां पर जोकर सिर्फ टाइमपास के लिए होता है। टिकट खरीदी जाती है शेर देखने के लिए। यह डायलॉग (संवाद) हिंदी फिल्म भूतनाथ रिटर्न्स की है। कहने के लिए यह बच्चों पर...

राजनीति का नशा फिल्मों पर भी चढ़ा
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 29 May 2015 12:01 PM
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इलेक्शन (चुनाव) सर्कस की तरह होता है। यहां पर जोकर सिर्फ टाइमपास के लिए होता है। टिकट खरीदी जाती है शेर देखने के लिए। यह डायलॉग (संवाद) हिंदी फिल्म भूतनाथ रिटर्न्स की है। कहने के लिए यह बच्चों पर आधारित फिल्म थी, लेकिन इसमें राजनेता, राजनीति, चुनाव और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधा वार करने वाले कई दृश्य व डायलॉग थे।

हिंदी फिल्मों के इतिहास को देखें तो जैसे-जैसे देश की राजनीति व चुनावी व्यवस्था बदली, वैसे-वैसे हिंदी फिल्मों की कथा-पटकथा व डायलॉग भी बदले। शासन व सरकार पर परोक्ष प्रहार करते डायलॉग अब सीधे वार करते हैं। राजनीति से दूर रहने वाले फिल्मी डायलॉग अब बीते दिनों की बात हो गई। इन दिनों एक तेल के विज्ञापन में स्थापित नेता एक युवा को उसका पोस्टर फाड़ते हुए ललकारता दिख रहा है कि इलेक्शन लड़ेगा, करना क्या चाहता है तो उसके सामने खड़ा युवा शांति से जवाब देता है कि कचरा साफ करना चाहते हैं। फिल्मों या विज्ञापनों के माध्यम से भ्रष्ट राजनीति पर तीखे प्रहार हो रहे हैं। मसलन, फिल्म राजनीति में एक डायलॉग है कि पावर पैदा करें हम और बटन दे दें उनके हाथ में। फिल्मों में राजनीति का प्रभाव इस कदर है कि प्रेम कहानियों पर बनी फिल्मों में भी नेता व नेतागिरी हावी दिखती है। मसलन, हेट स्टोरी-दो में कमजोर के इरादे और नेता के वादे, टूटने के लिए ही होते हैं और चोर-चोर मौसेरे भाई-नेता-नेता चचेरे भाई जैसे डायलॉग हैं। 

कई डायलॉग लोगों की जुबां पर छा गए: रिश्तों को तार-तार कर राजनीति के पायदान चढ़ने वालों पर फिल्म इंकलाब में डायलॉग लिखे गए- सियासत की दुनिया में मां, बाप, भाई, बहन, बेटी, दामाद कोई कुछ नहीं होता। नेताओं की गिरफ्तारी पर व्यंग्य कसे गए-नेता जब तक गिरफ्तार नहीं होता, उसे नाम नहीं मिलता, हमदर्दी नहीं मिलती।

बिना शोर-शराबा के काम करने वाले नेताओं के लिए हाल ही में आई फिल्म गुलाब गैंग में एक डॉयलाग थे-पॉलिटिक्स में हर काम प्रेम व शांति से किया जाता है।

राजनीति पर बनी कई फिल्में हिट हुईं
राजनीति पर केंद्रित दो फिल्में आंधी व किस्सा कुर्सी का सबसे विवादास्पद रही। दोनों फिल्मों को बैन किया गया, प्रिंट जलाए गए। हालाकि बाद में किस्सा कुर्सी का नए प्रिंट के साथ रिलीज हुई थी। वैसे राजनीति को छूती हुई बॉलीवुड की पहली फिल्म लीडर बनी। इसमें शासन-प्रशासन पर वार किया गया। फिल्म में एक मशहूर डायलॉग थे- चारों तरफ देखते हैं तो हर बात में खोट और मिलावट, नल का पानी पीजिए तो उसमें दवा का मिलावट, सांस लीजिए तो हवा में मिलों के धुएं की मिलावट, अगर खाना खाइए तो रोटी के आटे में मिट्टी की मिलावट है। राजनीति पर केंद्रित फिल्म आज का एमएलए-रामअवतार चर्चित रही। इसके डायलॉग जब राजनीति पेशा बन जाती है, व्यापार बन जाती है, तो कुर्सी देश से बड़ी हो जाती है, काफी चर्चा में रहा। इसी तरह फिल्म नायक के डॉयलाग भी खूब चर्चित रहे।

राजनीति के भ्रष्टाचार पर और तीखे चोट हुए
राजनीति के लिए फिल्म सरकार और सरकार राज भी चर्चित है। जिसके पास पावर है, उसका रांग भी राईट हो जाता है, कोई भी फैसला चुनाव से होना चाहिए, दबाव से नहीं, जान लेना जुर्म है पर सही समय पर जान लेना- राजनीति जैसे डॉयलॉग चर्चित हैं। राजनीति पर आधारित फिल्म बनाने में प्रकाश झा का नाम सबसे ऊपर है। उन्होंने तो एक फिल्म का नाम ही राजनीति रखा। फिल्म के डायलॉग में राजनीति में मुर्दे कभी गाड़े नहीं जाते, उन्हें जिंदा रखा जाता है ताकि टाईम आने पर वो बोले से इसे समझा जा सकता है। फिल्म हल्ला बोल में कमीशनखोरी में कम से कम 100 करोड़ कमाएगा और नेतागिरी की परंपरा निभाएगा जैसे डॉयलॉग से घोटालेबाज नेताओं पर वार किया गया। जय हो में अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता आया तो मर्दानी में विपक्षी दल को मसलने के लिए बताया गया तो पुलिसगिरि में नायक यह कहते हुए नजर आया कि कोई एमपी मेरी एमपीथ्री नहीं बजा सकता।

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