गया था डा. कलाम का स्वागत करने, मिली डांट
राष्ट्र रत्न डा. कलाम से जुड़ी यादें साझा करते हुए सौरभकांत बताते हैं कि वे हुलसकर गए तो थे उनका स्वागत करने पर सामने पड़ते ही हम छात्रों को डांट खानी पड़ी। डा. कलाम ने क्लास छोड़कर स्वागत पर गहरी...
राष्ट्र रत्न डा. कलाम से जुड़ी यादें साझा करते हुए सौरभकांत बताते हैं कि वे हुलसकर गए तो थे उनका स्वागत करने पर सामने पड़ते ही हम छात्रों को डांट खानी पड़ी। डा. कलाम ने क्लास छोड़कर स्वागत पर गहरी नाराजगी जाहिर की। आगे से ऐसा न करने की नसीहत भी दी। इंडियन आयल में मार्केटिंग मैनेजर और जहानाबाद जिले के धोबड़ी गांव निवासी सौरभकांत बताते हैं कि वर्ष 2001 में मैं बीआईटी सिंदरी का छात्र था।
बीआईटी कैंपस में डा. कलाम हम छात्रों को संबोधित करने आए थे। संयोगवश उनके स्वागत के लिए बनी कमेटी का मैं भी सदस्य था। तब वे ट्रेन से धनबाद स्टेशन उतरे। हाथ में गुलदस्ता लिए हमलोग प्लेटफार्म पर खड़े थे। ज्योंहि वे ट्रेन से नीचे उतरे और छात्रों के ग्रुप को देखा, उनके चेहरे पर अफसोस और नाराजगी के भाव झलक आए। गुलदस्ता तो ले लिया। उसके बाद उन्होंने ऐसा न करने की सलाह दी।
उस दौरान डा. कलाम ने कहा कि चाहे कितना भी महत्वपूर्ण व्यक्ति क्यों न हो, उसके लिए कभी क्लास बंक नहीं करो। हमारे साथ झारखंड के मंत्री समरेश सिंह भी थे। कार से डा. कलाम सिंदरी की ओर बढ़े। बीच में झरिया के कोयला खदानों से उठती आग की लपटें देख उन्होंने थोड़ी देर के लिए गाड़ी रुकवाई।
उन्होंने पूछा, क्या इस आग को बुझाने के कोई उपाय नहीं हैं? मंत्री समरेश सिंह से उन्होंने पूरे इलाके के खदानों की जानकारी ली। तत्काल उन्होंने कहा भी लौटने पर इसका उपाय खोजने का प्रयास किया जाएगा। सेमिनार में सैकड़ों छात्र मौजूद थे। लेकिन क्या मजाल कि उनके भाषण के दौरान कहीं से फुसफुसाहट की भी आवाज सुनाई पड़े।
एकेडमिक सेमिनार के बावजूद उनके भाषण का मुख्य सार यह था कि झारखंड का विकास कैसे हो। आदिवासियों को किस प्रकार विकास की मुख्य धारा में जोड़ा जाए। डा.कलाम का प्रोब्लम सोल्विंग एटीच्यूड मुझे आज भी हौसला देता है।