फोटो गैलरी

Hindi Newsबिहार विधानसभा चुनाव: अखाड़े में बुजुर्गों का ही ढोल बजाएंगे युवा!

बिहार विधानसभा चुनाव: अखाड़े में बुजुर्गों का ही ढोल बजाएंगे युवा!

पिछले विधानसभा चुनाव में जदयू के टिकट पर सर्वाधिक 35 युवा चेहरे चुनाव जीत कर सदन में पहुंचे। दूसरे नंबर पर भाजपा के 22 व तीसरे नंबर पर राजद के पांच युवा उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहे। 40 वर्ष या...

बिहार विधानसभा चुनाव: अखाड़े में बुजुर्गों का ही ढोल बजाएंगे युवा!
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 27 May 2015 10:28 AM
ऐप पर पढ़ें

पिछले विधानसभा चुनाव में जदयू के टिकट पर सर्वाधिक 35 युवा चेहरे चुनाव जीत कर सदन में पहुंचे। दूसरे नंबर पर भाजपा के 22 व तीसरे नंबर पर राजद के पांच युवा उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहे। 40 वर्ष या उससे कम उम्र के कुल 67 युवा चेहरे बिहार विधानसभा में पहुंचे। बावजूद इसके युवाओं को तरजीह मिलेगी इसकी संभावना कम ही है। इस बार बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है। लेकिन तमाम कवायदों के बीच युवाओं की चिंता किसी दल में नजर नहीं आ रही है। चुनाव की चर्चा राजनीतिक दलों में पुराने चेहरों से शुरू होकर वहीं खत्म हो जाती है। आयात-निर्यात के शतरंजी खेल में भी भरोसा के केन्द्र पुराने चेहरे ही होते हैं।
 
चुनाव के पहले अपनी पार्टी के युवा संगठन को मजबूत करने में जुटे नेता हर बार कहते हैं कि अगले चुनाव में युवकों को आधी सीटें देगें। युवा वर्ग संघर्ष करता है और फिर पार्टी को मजबूत बनाने में जी जान से जुट जाता है। लेकिन राजनीतिक दल की प्राथमिकता अभी तक युवा नहीं बन पाए हैं। ऐसे में युवाओं को इस बार भी कहीं बुजुर्गों का ही डंका न पीटना पड़े।

राजनीतिक दल अपने-अपने घोषणा पत्र भी जारी करेंगे। इन घोषणा पत्रों में युवाओं को तरजीह देने के बादे तो जरूर किए जाएंगे, लेकिन यह वादा उस छोटी सी पुस्तक में सिमट कर रह जाएगा। राजनीतिक दल युवा होने की परिभाषा भी अपनी सुविधा के हिसाब से गढ़ लेते हैं। पैतालिस और पचास की ऊम्र वाले पप्पू यादव हों या उनके हमऊम्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मंगल पांडेय जैसे तमाम नेता राजनीतिक  दलों की भाषा में युवा कहलाते हैं।

नेता पैदा करने का कारखाना दो ढाई दशकों से बंद: आज बिहार के राजनीतिक क्षितिज पर विराजे ज्यादातर नेता छात्र संघ की पैदावार हैं। इनमें लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, सुशील कुमार मोदी, रामविलास पासवान, अश्विनी कुमार चौबे, नंदकिशोर यादव, देवेन्द्र प्रसाद यादव, मंगनी लाल मंडल समेत दो दर्जन से अधिक नेता या तो छात्र संघ की या छात्र आंदोलन की उपज हैं। बिहार की राजनीति को इन नेताओं ने केवल सशक्त नेतृत्व दिया बल्कि वैचारिक और कार्यशौली की विविधता भी दी। इस कारण लंबे समय से बिहार में नेतृत्व संकट की स्थिति नहीं बनी। लेकिन छात्र संघ के चुनाव पर करीब ढाई दशक पहले रोक लगा दिए जाने के कारण आज युवा वर्ग में कोई आजमाया नेता नजर नहीं आता है। दरअसल छात्र संघ के चुनाव से कालेजों और विश्वविद्यालयों में एक तरह की वाद-विवाद, मुद्दों पर बहस और नेतृत्व की ट्रेनिंग के साथ उसकी परख भी हो जाती थी। शिक्षित नौजवानों की राजनीतिक और नेतृत्व क्षमता की प्रतिभा सामने आती थी। फिर इनमें राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले युवा उधर का रूख भी करते थे। राजनीति में युवा चेहरों के अकाल का यह भी बड़ा कारण है।

युवाओं का प्रदेश बिहार
बिहार को युवाओं का प्रदेश कहा जाता है। 60 फीसदी से अधिक आबादी युवाओं की है। 2010 के चुनाव में युवा वोटरों का औसत 51 फीसदी से अधिक था। लेकिन विधान सभा में उनकी हिस्सेदारी 25.57 ही रही। इस वर्ष युवा वोटरों के औसत में और वृद्धि होने के आसार हैं। लेकिन राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों की सूची में शायद ही युवाओं का औसत इस अनुपात में जगह बना पाए।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें