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बिहार : स्वतंत्रता सेनानी रह चुके 95 साल के इकबाल बरसी का निधन

पीरो के गांधी से विभूषित राम एकबाल बरसी के सोमवार की सुबह निधन से भोजपुर में शोक की लहर दौड़ गई। तत्कालीन पीरो विधानसभा के पूर्व विधायक राम एकबाल वरसी कई दिनों से बीमार चल रहे थे। इस दौरान उनसे मिलने...

बिहार : स्वतंत्रता सेनानी रह चुके 95 साल के इकबाल बरसी का निधन
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 10 Oct 2016 05:30 PM
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पीरो के गांधी से विभूषित राम एकबाल बरसी के सोमवार की सुबह निधन से भोजपुर में शोक की लहर दौड़ गई। तत्कालीन पीरो विधानसभा के पूर्व विधायक राम एकबाल वरसी कई दिनों से बीमार चल रहे थे। इस दौरान उनसे मिलने सीएम नीतीश कुमार और लालू प्रसाद समेत कई दिग्गज पहुंचे हुए थे।

सोमवार की सुबह पटना के आईजीआईएमएस में उन्होंने अंतिम सांस ली। भोजपुर जिले के तरारी प्रखण्ड के वरसी गांव में राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। उनके पुत्र शिव जी उन्हें मुखाग्नि देंगे। इस समारोह में सीएम के भी शामिल होने कि संभावना है। हालांकि आधिकारिक तौर पर अभी तक कोई सूचना नहीं आई है। तरारी प्रखंड के वरसी गांव में 1926 में जन्मे राम एकबाल सिंह ने नाम के साथ गांव का भी उपनाम जोड़ दिया और तब से वे राम एकबाल बरसी के रूम में चर्चित हो गए।

1969 में पीरो विधानसभा से सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर विधायक बने और 1976 में नीतीश कुमार के साथ जेल गए। इस क्रम में वे जयप्रकाश नारायण से भी मिले। अक्खड़ विचारधारा वाले वरसी ने समाजवादी आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। पेशन ठुकराने और डालमिया फैक्ट्री में मुंशी की नौकरी को लात मार कर 1942 के आंदोलन में कूद पड़े। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन में भी काफी सक्रिय रहे। पूर्व विधायक वरसी के इन्ही गुणों की वजह से राम मनोहर लोहिया ने उन्हें  पीरो के गांधी नाम से विभूषित किया  था। तब से लेकर अभी तक वे पीरो के गांधी के रुप में ही जाने जाते हैं।पीरो अनुमंडल के तरारी प्रखंड अंतर्गत वरसी गांव के रहने वाले राम एकबाल सिंह हाल के दिनों में रोहतास जिले के  डिहरी के मथुरापुर कॉलोनी में रहते थे।

पीरो का गांधी बनने के बाद उनमें गजब का जज्बा भर गया था। इस नाम को सार्थक करने के लिए उन्होंने अपने को जन सेवा के लिए पूरी तरह समर्पित कर दिया। गरीबों व समाज के  अंतिम पायदान पर खड़े लोगों को  उनका वास्तविक हक दिलाना ही उनके जीवन का लक्ष्य हो गया था। वे विधायक रहते जिस तरह मुखर होकर गरीबों की आवाज उठाते रहे  उसी तरह जीवन के अंतिम समय में भी  अपनी मुहिम को मद्धिम नहीं पड़ने दिया।

उनका मानना था कि जब तक समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों को उनका हक नहीं मिलता तब तक लोकतंत्र का सपना साकार नहीं हो सकेगा। वरसी और उनके परिजन अभावों के बीच जीते रहे पर अपने पथ से विचलित नहीं हुए। पेंशन के पैसे ठुकराने वाले स्वतंत्रता सेनानी वरसी कहा करतेथे कि इन पैसों को गरीबों के बीच खर्च किया जाना चाहिए। वे डॉ राम मनोहर लोहिया को अपना आदर्श मानते हुए उनके पदचिन्हों का आजीवन अनुशरण करते रहे।

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