Shocking! मधुबनी में 4700 लोगों में 600 बच्चों को है HIV
चेहरे पर मुस्कान लिए भगवतिया (काल्पिक नाम) जब केयर और काउंसिलिंग सेंटर में आयी तो ललन बाबू कह उठे अब आंखों से गंगा नहीं बहाती है। पूरे दिन रोती नहीं है यह भगवतिया। यह सुन भगवतिया के चेहरे पर और बड़ी...
चेहरे पर मुस्कान लिए भगवतिया (काल्पिक नाम) जब केयर और काउंसिलिंग सेंटर में आयी तो ललन बाबू कह उठे अब आंखों से गंगा नहीं बहाती है। पूरे दिन रोती नहीं है यह भगवतिया। यह सुन भगवतिया के चेहरे पर और बड़ी हंसी पसर गई। जब उसे यह मालूम हुआ था कि कुछ माह पहले ही वह एचआईवी पॉजिटिव हो चुकी है तो रोने के सिवा उसके पास दूसरा कोई विक्लप नहीं दिखता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है।
मधुबनी में 150 से अधिक ऐसे जिंदादिल एचआईवी पॉजिटिव लोग हैं, जिन्होंने रोने का रास्ता नहीं चुना। ऐसे मरीजों के साथ हो रहे सामाजिक भेदभाव का डटकर सामना किया और जिंदगी से प्यार किया। नतीजा है ये लोग तंदुरुस्त हालत में एचआईवी पॉजिटिव के साथ 15-17 साल से जी रहे हैं। ये लोग दूसरे पीड़ित परिजनों के लिये प्रेरणा बन रहे हैं।
नैको के तहत चलने वाले केयर एंड काउंसिलिंग सेंटर में इन बुलंद इरादे वाले लोगों को लेकर दूसरे मरीजों से मिलवाया जाता है। वे अपने अनुभव के बारे में बताकर डरे और हार मान चुके मरीजों में जिंदगी के प्रति विश्वास बढ़ाते हैं। इसका लाभ मिल रहा है।
बच्चों की संख्या भी बढ़ी
मधुबनी में अभी लगभग 4700 एचआईवी पॉजिटिव चिन्हित हैं। इनमें 600 से अधिक बच्चे हैं। करीब 3000 दवा ले रहे हैं। जबकि बाकी प्री एआरटी स्टेज में हैं। यानि चिन्हित तो हैं लेकिन वे अभी दवा लेने की स्थिति में नहीं पहुंचे हैं। हर तीन माह पर होने वाले सर्वे में संख्या बढ़ जाती है, लेकिल बढ़ रही जागरूकता के कारण पहले के मुकाबले वृद्धि दर धीमी है।
अब तक करीब 350 लोगों की मौत भी हो चुकी गई।
`परवरिश' ने थामी बच्चों की सांस की डोर
परवरिश योजना के तहत एचआईवी पॉजिटिव बच्चों को हर माह 1000 रुपये दिये जाते हैं। इसकी मदद से पीड़ित बच्चों को जरूरी खाना दिया जाता है। अभी करीब 575 बच्चों के अकाउंट में पैसा दिया जा रहा है।
भेदभाव सबसे बड़ी बाधा
केयर एंड काउंसिलिंग सेंटर के जिला समन्वयक विभव विकास एक उदाहरण देते हुये कहते हैं कि इस बीमारी में सबसे बड़ी चुनौती भेदभाव है। एक महिला ने इस माह सेंटर पर शिकायत की कि पति की मौत के बाद से सास ससुर उसे प्रताड़ित करते हैं।
न इस मामले को सुलझाने में सेंटर वाले इस लिए हिचक रहे हैं, कि पीड़िता अपने ससुराल वालों के सामने खुद के बीमार होने का खुलासा करने की सहमति नहीं दे रही है। उसे लगता है कि इसके बाद उसे और प्रताड़ित किया जायेगा। इसी भेदभाव के कारण वह चुपचाप प्रताड़ना सह रही है। विभव कहते हैं जागरूकता बढ़ी है। सही कॉउंसलिंग से मदद मिल रही है।