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चंपारण सत्याग्रह शताब्दी: CM नीतीश ने कहा- देश को दिशा दें गांधीवादी

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लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 11 Apr 2017 07:56 AM

पटना में गांधी के विचारों पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय विमर्श के साथ चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह का आगाज सोमवार को हुआ। इस मौके पर गांधीवादियों ने कहा कि देश संक्रमण काल से गुजर रहा है। जब-जब देश में ऐसा दौर आया है, बिहार ने दिशा दिखायी है। आह्वान किया कि बिहार एक बार फिर आगे आये। सभी ने एक सुर से कहा कि बिहार पहला राज्य है, जिसने गांधी के चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने को इस व्यापक रूप में याद किया है। वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विचारकों से अपील की कि वे देश को चलाने का एजेंडा तय करें। 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि आज देश-दुनिया में टकराव और असहिष्णुता का माहौल है। एकतरफा संवाद चल रहा है। कुतर्क गढ़े जा रहे हैं। ऐसे में जरूरी हो गया है कि गांधीवादी देश को दिशा दें। आप बताएं कि देश को किस दिशा में जाना चाहिए। आज के संदर्भ में क्या एजेंडा होना चाहिए। इसी मकसद से यह राष्ट्रीय विमर्श आयोजित कर देश के बड़े-बड़े विचारकों को आमंत्रित किया गया है। सिर्फ प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करें।

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सीएम ने कहा कि दो दिवसीय विमर्श में जो नतीजे निकलेंगे, उस पर किताब प्रकाशित होगी। नतीजों को जन-जन तक पहुंचाएंगे। इसके बाद लोग ही तय करेंगे कि उन्हें कौन सा एजेंडा पसंद है। उन्होंने कहा कि आज भौतिकवाद लोगों के दिमाग पर हावी हो गया है। इससे छुटकारे का भी मार्ग विमर्श से प्रशस्त होगा। गांधी जी की लोग बहुत इज्जत करते हैं। पर, उनके विचारों पर अमल नहीं करते। उनके विचारों को हम घर-घर पहुंचाएंगे।

दिल का कचरा साफ होगा तो देश स्वच्छ बनेगा
कचरा सिर्फ सड़क पर नहीं होता है। दिल का कचरा साफ करना जरूरी है। तभी देश स्वच्छ बनेगा। आज कानून का पालन करने वालों से ज्यादा प्रतिष्ठा कानून तोड़ने वालों की है। यह दुखद स्थिति है। कोर्ट के फैसले को दरकिनार करने के लिए सरकार भी चोर रास्ता निकाल रही है। ऐसे में हमें नये सिरे से सोचने की जरूरत है। तभी गांधी के सपनों का देश हम बना पाएंगे। 
-न्यायमूर्ति चंद्रशेखर

देश आज जिस चौराहे पर खड़ा है, ऐसे में विमर्श जरूरी है। आज देश में सहमति और विमर्श को भुलाया जा रहा है। प्राकृतिक संसाधन जबरदस्ती छीने जा रहे हैं। लोगों का हक छीना जा रहा है।  
-मेधा पाटकर, राष्ट्रीय समन्वयक, एनएपीएम, नई दिल्ली

बिहार ने देश को असली गांधी दिया
देश को बिहार ने ही असली गांधी दिया। गांधी का चंपारण सत्याग्रह सिर्फ किसानों को तकलीफ से बाहर निकालने के लिए नहीं था। बल्कि यह आजादी की लड़ाई की शुरुआत थी। यहीं से आजादी की लड़ाई और व्यापक हुई और देश भर में फैली। आगे की लड़ाई भी हमें गांधी के रास्ते पर लड़नी चाहिए। 2019 को ध्यान में रख कर अभी से इसकी तैयारी होनी चाहिए।     
-न्यायमूर्ति राजेंद्र सच्चर

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देश में लोगों की छीनी जा रही आजादी : गांधी

पूर्व राज्यपाल और महात्मा गांधी के प्रपौत्र गोपालकृष्ण गांधी ने कहा है कि देश में लोगों की आजादी छीनी जा रही है। जुल्म-जबरदस्ती से जमीन अधिग्रहण किया जा रहा है। आधार कार्ड की अनिवार्यता खतरनाक है। यह हिला देने वाला है। लोगों को सचेत होना होगा।

नवनिर्मित ज्ञान भवन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन दर्शन पर आयोजित राष्ट्रीय विमर्श में शामिल होने पटना आए पूर्व राज्यपाल ने  कहा कि अध्यादेश आपातकाल की स्थिति में आता है। अभी ऐसी क्या इमरजेंसी आ गई जो तीन-तीन अध्यादेश लाकर जमीन अधिग्रहण कानून को पास कराया जा रहा है। ऐसा तो अंग्रेजी राज में भी नहीं हुआ। आज लोगों में भय है। जमीन लेने के पहले लोगों की इच्छा या ग्राम सभा से पूछने की जरूरत नहीं समझी जा रही है। सोशल इम्पैक्ट एसेसमेंट की आवश्यकता महसूस नहीं की जा रही है। जमीन कैसे व किस तरीके से लिया जाए, यह महत्वपूर्ण है। 

उन्होंने कहा कि आधार कार्ड को अनिवार्य किया जाना एक तरह से लोगों की आजादी छीनना है। बच्चों को खाना देने के पहले मिड डे मिल में और सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद मनरेगा में आधार कार्ड मांगा जा रहा है।

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चंपारण ने बनाया गांधी को महात्मा
चंपारण सत्याग्रह भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास का मील का पत्थर है। अंग्रेजी राज के अन्याय के खिलाफ अपने र्अंहसक संघर्ष का बिगुल मोहनदास करमचंद गांधी ने यहीं से फूंका था। यही वह धरती है जिसने गांधी को महात्मा बनाया। गांधी जी की र्अंहसा का दायरा बहुत बड़ा है। वह किसी के प्रति कठोर वचन का प्रयोग भी हिंसा मानते थे। मौजूदा दौर र्में ंहसा और संहार के नए-नए स्वरूप सामने आ रहे हैं। ऐसे में गांधी की प्रासंगिकता बढ़ गई है। ये बातें सोमवार को चंपारण सत्याग्रह शताब्दी पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय विमर्श के पहले दिन चले मंथन में उभर कर आई। विमर्श में देश भर के प्रख्यात गांधीवादी विचारक समेत कई विद्वान वक्ता शामिल हुए। यहां गांधी मैदान के पास नवनिर्मित भव्य ज्ञान भवन में एक साथ तीन तकनीकी सत्र चले। इसमें अलग-अलग विषयों पर कुल 16 वक्ताओं ने विचार रखे। इन सत्रों के विषय-‘भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में चम्पारण सत्याग्रह की भूमिका’, ‘महात्मा गांधी और र्अंहसा पर उनका दर्शन’ और ‘गांधी और उनका शिक्षा दर्शन’ थे। 

नव उपनिवेशवाद के सृजन का बिहार प्रतिकार करे : राही  

ज्ञान भवन के पीर मोहम्मद मुनीस कक्ष में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में चम्पारण सत्याग्रह की भूमिका पर राष्ट्रीय विमर्श में कुल छह वक्ताओं ने अपने विचार रखे। 

नई दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान के पूर्व प्रमुख रामचन्द्र राही ने कहा कि नस्लवादी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष की सैद्धांतिक जमीन गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में ही तैयार कर ली थी, उसे सरजमीं पर चम्पारण सत्याग्रह के जरिए उन्होंने उतारा। चम्पारण में लोगों से मिलने के बाद उन्होंने जाना कि असली लड़ाई वहां से शुरू होती है, जहां से अपने अंदर के डर से मुक्ति मिलती है। उन्होंने असत्य से लड़ने के लिए सत्य और हिंसा से मुकाबले के लिए र्अंहसा को हथियार बनाया। उन्होंने कहा कि आजादी का मतलब मुट्ठीभर कारपोरेट की चलती नहीं और न ही चंद लोगों की सत्ता होती है। गांधी ने साम्राज्य के खिलाफ जो जीत हासिल की, वही साम्राज्यवाद अब फिर देश पर हावी हो गया है। जो काम कभी अंग्रेज करते थे,वही काम अब वे लोग कर रहे हैं। यह पूर्ण आजादी नहीं है। 

अंग्रेजों की फूट डालो राज करो की तर्ज पर देश के लोगों के बीच मतभेद खड़े किए जा रहे हैं। छल की राजनीति हो रही है। असहिष्णुता बढ़ी है। विरोध की आवाज दबाई जा रही है। प्रचार, विज्ञापन और नायकत्व खड़ाकर जनता को भ्रमित किया जा रहा है। इस पृष्ठभूमि में चम्पारण सत्याग्रह को याद करें तो बिहार की धरती देश को नई दिशा दे सकती है। नव उपनिवेशवाद के सृजन का बिहार प्रतिकार करे। मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए शराबबंदी जैसे सामाजिक आधार तैयार करने होंगे। 

चम्पारण के लोगों के दुख दर्द से काफी प्रभावित हुए गांधी : बिन्दू पुरी  
जेएनयू की सेंटर आफ फिलॉसफी, स्कूल ऑफ सोशल साइंस की चेयरपर्सन प्रो. बिन्दू पुरी ने अपने व्याख्यान में कहा कि चम्पारण ने ही गांधी को महात्मा बनाया। वह पांच-छह माह चम्पारण के गांवों में रहे। वहां के लोगों के दुख दर्द को देखा। अंग्रेजों की शासन व्यवस्था और नीलहों का जुल्म देखा। इससे वह काफी प्रभावित हुए। इन सबसे उनके विचारों में कई बदलाव किए, जिससे वह महात्मा बने। 

विषय : भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में चंपारण सत्याग्रह की भूमिका
सामाजिक व आर्थिक लड़ाई युवाओं को लड़ना है : ब्रजकिशोर 

गांधी संग्रहालय मोतिहारी के प्रमुख और बिहार सरकार के पूर्व मंत्री ब्रजकिशोर्र ंसह ने कहा कि 10 अप्रैल देश का सबसे बड़ा पर्व है। सौ साल पहले आज के ही दिन महात्मा गांधी यहां आए थे। गांधी ने चम्पारण सत्याग्रह के जरिए देश की आजादी की राजनीतिक लड़ाई जीती। अभी सामाजिक और आर्थिक लड़ाई आप युवाओं को लड़ना है। किस्सागोई के अंदाज में गांधी के चम्पारण में लड़ी गई लड़ाई का जिक्र करते हुए वयोवृद्ध गांधीवादी विचारक ने कहा कि सवाल नेतृत्व और उस पर विश्वास का है। गांधी पर पूरे देश की जनता ने भरोसा किया। 

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एक झोला लेकर आए थे और इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया   
पत्रकार अरविंद मोहन ने कहा कि महात्मा गांधी बिहार से एक झोला लेकर आए थे और कुछ माह में एक छोटी सी जगह चम्पारण के जरिए पूरे देश में इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया। उनके झोला में भी बस कुछ कागज और खजूर थे। साथ में भी कस्तूरबा गांधी के अलावा कोई नहीं था। तीसरे दर्जे से यात्रा करते थे और बहुत सादगी से रहते थे। एक बार फिर देश में विकल्प की लड़ाई चम्पारण से शुरू करने की जरूरत है। इसके लिए उसे जानना बहुत जरूरी है। पटना के वकील फणीस सिंह ने कहा कि फिर से देश को धर्म के नाम पर बांटने की कोशिश हो रही है। एक समय गांधी इसके खिलाफ लड़े, अब आप युवाओं को लड़ना है। उन्होंने कहा कि गांधी का दक्षिण अफ्रीका में बहुत सम्मान है। 

गांधी के विचारों के साथ जीने का संकल्प लें युवा

गांधी के आश्रम में उनके साथ समय बिता चुके न्यायमूर्ति चंद्रशेखर धर्माधिकारी ने कहा कि गांधी को भगवान नहीं बनाएं। उन्हें इंसान रहने दें और उस इंसान के साथ जीने का संकल्प लें।  राष्ट्रीय विमर्श में युवाओं को उन्होंने संकल्प भी दिलाया। 

उन्होंने कहा कि सत्याग्रह करने वाले की पहली शर्त है कि वह सत्य के रास्ते पर चलने वाला हो। आज सत्याग्रह कम और दुराग्रह अधिक होता है। गांधी जी जो कहते थो वह कबूल करते थे। सत्य को कभी नहीं छोड़ा। उन्होंने कभी कोई पद नहीं लिया। गांधी की छोटी-छोटी बातों को अपनाने की जरूरत है। इसी से परिवर्तन आएगा। उन्होंने तीन ‘झ’ दिया। ‘झ’ से झंडा जो स्वाभिमान का प्रतीक है। ‘झ’ से झाड़ू जो अंत्योदय से सर्वोदय की बात है। ‘झ’ से झोली जो समाज सेवा का प्रतीक है। कहा कि राम की कमाई व हराम की कमाई में हमे अंतर समझना होगा। ईमानदारी व सच्चाई का मार्ग कभी नहीं छोड़ें। समाजवाद की व्याख्या है- सभी तरह के शोषण से मुक्ति। इस व्याख्या को संविधान में शामिल करने का प्रस्ताव लोकसभा से तो पास हुआ, पर राज्यसभा से नहीं हो सका। इससे बड़ी दुखद बात क्या होगी। सेक्यूलर शब्द की व्याख्या भी संविधान में शामिल नहीं किया जा सका, जो कहता था कि सभी धर्म का समान आदर है। 

आज विकास बेचा जा रहा : प्रेरणा देसाई
गांधीवादी विचारक प्रेरणा देसाई ने कहा कि आज देश की आधी संपत्ति चंद लोगों के पास है। यह विकास सही में देश का विकास नहीं है। आज विकास को बेचा जा रहा है। उन्होंने गांधी ने र्अंहसा के सिद्धांत को अपनाया था। र्अंहसा का सिद्धांत यही कहता है कि न मैं किसी से डरूंगा व न किसी को डराऊंगा। हम अर्थशास्त्र के विद्यार्थी हैं, पर हमने पहले गांधी को समझा। हमने पाया कि उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं। आज का जो अर्थ तंत्र है वह लालच और डर के नाम पर चलने वाला है। यह टिकाऊ नहीं है।  

आत्मशक्ति जरूरी 
गांधी वादी विचारक डॉ. एसएन सुब्बाराव ने कहा कि गांधी के पास एक ही शक्ति थी जो अंग्रेजों की तमाम संसाधनों पर भारी पड़ी। वह थी आत्मशक्ति। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति के अंदर एक गांधी होता है। जरूरत है उसको जगाने की। उन्होंने गीत भी सुनाई ‘हर देश में तू-हर भेष में तू, तेरे नाम अनेक, पर तू एक ही है।’  
चंपारण सत्याग्रह शताब्दी स्मृति समारोह का शानदार आगाज,  पूरा मुजफ्फरपुर जंक्शन परिसर गांधी प्रेमियों से पटा

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सौ साल बाद फिर मुजफ्फरपुर पहुंचे ‘गांधी’

चेहरे पर अजीब शांति और आँखों में असीम चंचलता। औरों के लिए कुछ कर गुजरने जिजीविषा। ट्रेन के अंदर धोती-कुर्ता और पाग में शांतचित्त बैठे एक इंसान की बस एक झलक पाने की ललक सबमें। ट्रेन से जैसे ही प्लेटफॉर्म एक पर उतरे, लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। कोई देखना चाहता था तो कोई छू कर महसूस करना चाहता था। व्यक्तिव का यही जादू उन्हें मोहनदास से महात्मा बना गया होगा।

सोमवार शाम छह बजे पूरा मुजफ्फरपुर जंक्शन परिसर खचाखच भरा हुआ था। स्वागत में बैंड बाजे बज रहे थे । महात्मा गांधी जिंदाबाद के गगनभेदी नारे गूंज रहे थे। हालांकि सौ साल पहले इस वक्त मोहनदास, महात्मा या बापू नहीं हुए थे। मगर भावनाओं का इतिहास से क्या लेना-देना। सौ साल बाद भी गांधी की प्रासंगिकता कैसे उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है , इसका अंदाजा इस अपार भीड़ से लगाया जा सकता है। यह गांधी महज प्रतीक भर है, जानने के बावजूद लोग बस जी भरकर देख लेना चाहते थे।

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प्लेटफार्म से निकलते ही बग्घी खड़ी थी। वहां भी लोगों का काफिला। फूल भेंट करना,माला पहनाना,उनके लिए किसी सौभाग्य से कम नहीं था। बग्घी पर गांधी को बैठाया गया। साथ में आचार्य जेबी कृपलानी और पंडित राज कुमार शुक्ल। और हुजूम शहर की ओर चल दिया। चौक-चौराहों पर फूल-माला लिए लोग स्वागत करने को तैयार। बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की भी बड़ी तादाद थी। स्टेशन परिसर से निकलने के बाद काफिला सबसे पहले मोतीझील फ्लाई ओवर पर पहुंचा। अन्य लोगों के साथ ही एएनएम कॉलेज की छात्राओं ने जोरदार स्वागत किया। उसके बाद कल्याणी चौक, नव युवक समिति, टावर चौक, प्रधान डाक घर,डीएम आवास, जूरनछपरा, माड़ीपुर चौक, चक्कर चौक, लेनिन चौक,छाता चौक होते हुए एलएस कॉलेज पहुंचे। चंपारण सत्याग्रह शताब्दी स्मृति समारोह का मुजफ्फरपुर में शानदार आगाज हुआ।  

भव्य स्वागत
-शहर भ्रमण के लिए बग्घी पर सहयोगियों के साथ सवार हुए  
-महात्मा गांधी जिंदाबाद के गूंज रहे थे गगनभेदी नारे
 
6.30 बजे स्टेशन परिसर में थी खचाखच भीड़
शताब्दी समारोह पर कांग्रेस आज निकालेगी प्रभातफेरी  
प्रदेश कांग्रेस चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह के मौके पर मंगलवार की सुबह प्रभातफेरी निकालेगी। प्रभातफेरी का नेतृत्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व शिक्षा मंत्री डॉ. अशोक चौधरी करेंगे। प्रभातफेरी सुबह छह बजे विधानसभा के मुख्यद्वार के सामने स्थित शहीद स्मारक से शुरू होकर गांधी मैदान स्थित गांधी मूर्ति तक जाएगी। इस समारोह में प्रदेश कांग्रेस के सांसद, विधायक, पदाधिकारी व कार्यकर्ता शामिल होंगे। यह जानकारी प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता एचके वर्मा ने दी। 

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प्राचार्य ने गांधी को क्वार्टर में रहने की नहीं दी थी अनुमति  
गांधीजी के बिहार आगमन पर उनके तेवर से अंग्रेज वाकिफ थे। तभी तो मुजफ्फरपुर एलएस कॉलेज के प्राचार्य जोसेफ ने गांधीजी को कॉलेज क्वार्टर में ठहरने की अनुमति नहीं दी थी। 

10 अप्रैल 1917 को पटना उतरने के बाद गांधीजी कुछ देर के लिए राजेंद्र प्रसाद और मजहरुल हक के यहां रुके। उसके बाद उसी दिन यानी 10 अप्रैल की रात को ही मुजफ्फरपुर पहुंच गए थे। वहां वे एलएस कॉलेज के शिक्षक और कृपलानीजी के मित्र एनआर मलकानी के क्वार्टर में ठहरे थे। 

कृपलानीजी भी उसी में रहते थे, वे वहां के पूर्व शिक्षक थे। जेबी कृपलानी 11 अप्रैल 1917 को नैतिकता के नाते जोसेफ को गांधीजी के कॉलेज क्वार्टर में रहने की जानकारी देने और अनुमति मांगने गए। कृपलानी ने प्राचार्य से कहा कि सर, मोहन दास करमचंद गांधी एनआर मलकानी के क्वार्टर में ठहरे हैं। क्या आपको कोई आपत्ति है? इस पर प्राचार्य का कहना था कि ‘गांधी! गांधी इज साउथ अफ्रीकन नोटराइअटी’(गांधी! गांधी दक्षिण अफ्रीका का कुख्यात है।)

प्राचार्य ने इस तरह का रिएक्शन देकर अनुमति देने से मना कर दिया। तब कृपलानीजी ने प्राचार्य को कहा था, नो सर, मोहन दास को महारानी विक्टोरिया ने ‘केसर-ए-हिन्द’ अवार्ड दिया है। बावजूद अंग्रेज प्राचार्य नहीं माने। अंतत: मुजफ्फपुर के ही नामी वकील गया प्रसाद सिंह के घर में गांधीजी को ठहराया गया। गांधीजी यहां 11 से 14 अप्रैल तक रहे। फिर, अगले दिन मोतिहारी रवाना हो गए। 

10 अप्रैल 1917
-जेबी कृपलानी गांधीजी को एनआर मलकारी के क्वार्टर में ले गए थे 
-नैतिकता के नाते कॉलेज के प्राचार्य से उनके रहने की  मांगी थी अनुमति

आंदोलन की खबरें भारत में भी छपती थी
दक्षिण अफ्रिका में अंग्रेजी जुल्मों से कराह रहे वहां के मूलनिवासियों को गांधीजी ने सत्याग्रह का प्रयोग कर अंग्रेजों को झुकने को मजबूर कर दिया था। इसलिए गांधीजी चेहरे से तो नहीं, लेकिन अपने  सत्याग्रह के प्रयोग से अंग्रेजों को नाकों दम कर देने की खबरों से भारत में रहनेवाले लोग परिचित थे। इसलिए प्राचार्य जोसेफ ने गांधीजी को क्वार्टर में रहने की अनुमति नहीं दी। 

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सत्याग्रह के समय ही पड़ी थी बिहार विद्यापीठ की नींव  
चंपारण सत्याग्रह के अलावा बिहार विद्यापीठ, बिहारवासियों को गांधीजी की महत्वपूर्ण देन है। बिहार में विद्यापीठ की नींव सत्याग्रह के दौरान ही रखी गई थी। जब गांधीजी को महसूस हुआ कि भारतीय संस्कृति और आवश्यकताओं के आधार पर शिक्षा देने के लिए विद्यापीठ की जरूरत है। राजधानी में बिहार विद्यापीठ की स्थापना 1921 में महात्मा गांधी ने की थी। इसके लिए महात्मा गांधी ने झरिया के गुजराती व्यवसायी से चंदा लिया और दो महिलाओं ने अपना सारा गहना दे दिया था। वहां से चंदा का 66 हजार रुपये लेकर पटना आये थे। तब 6 फरवरी 1921 को स्वतंत्रता सेनानी ब्रजकिशोर प्रसाद , मौलाना मजहरुल हक, प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद और महात्मा गांधी ने मिलकर बिहार विद्यापीठ की स्थापना की। बिहार विद्यापीठ की स्थापना के बाद चम्पारण सत्याग्रह के पहले ही बिहार विद्यापीठ की नींव पड़ गई थी। बिहार विद्यापीठ बनाने के लिए साल 1916 में ब्रजकिशोर प्रसाद ने विधान परिषद में आवाज उठायी थी। 

10 अप्रैल 1917 को चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत हुई थी। चंपारण सत्याग्रह के इन्हीं तीनों स्वतंत्रता सेनानी ने मिलकर बिहार विद्यापीठ की स्थापना की थी। बिहार विद्यापीठ के अध्यक्ष विजय प्रकाश ने बताया कि महात्मा गांधी ने बिहार विद्यापीठ को राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किया था। यहीं से बुनियादी विद्यालय की शुरुआत की गई थी। 

ठहरते थे बापू
बिहार विद्यापीठ की स्थापना के बाद काशी विद्यापीठ और गुजरात विद्यापीठ की स्थापना हुई। विद्यापीठ के सदस्य संजीव श्रीवास्तव ने बताया कि आज ये दोनों विद्यापीठ शिक्षा के मंदिर के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन बिहार विद्यापीठ सरकारी उदासीनता का शिकार हो गया है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बिहार विद्यापीठ में रुकते थे। यहीं से महेन्द्रू से नाव पर चढ़कर चंपारण या अन्य क्षेत्र में जाते थे। विद्यापीठ के संग्रहालय में बापू और राजेन्द्र बाबू से जुड़ी कई स्मृतियां सुरक्षित हैं।

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चबूतरे पर बैठ देते थे डिग्री
बिहार विद्यापीठ में आज भी वह चबूतरा है। जिस पर बैठकर बापू बिहार विद्यापीठ से शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों को डिग्री बांटते थे। चबूतरे के बगल में चारों स्वत्रंतता सेनानी मिलकर झंडोत्तोलन करते थे। आज भी वह स्तंभ वैसे ही खड़ा है। बापू द्वारा बनाया गया बुनियादी विद्यालय है, लेकिन जर्जर हालत में। बिहार विद्यापीठ के 30 प्रतिशत भूभाग में अतिक्रमण है। बापू जिस कमरे में रुकते थे। वह स्थान जीर्णशीर्ण हो चुका है।
 
...जब शुक्ल जी शव वाहन पर चढ़े और गांधी जी हाथी पर  
थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं। इतिहास के पन्नों को पलटते हैं। राजकुमार शुक्ल की डायरी को देखते हैं। क्योंकि डायरी के इन पन्नों में पूरा इतिहास छिपा है। साथ में कुछ ऐसी रोचक बातें छिपी हैं, जो हमें गुदगुदाती हैं, सोचने को विवश करती हैं और देशभक्ति का पाठ भी पढ़ाती हैं। 

गांधीजी को चंपारण लाने से पहले कैसे शुक्लजी को शव वाहन पर चढ़ना पड़ा, कैसे कृपलानी जी रात के अंधरे में पेड़ पर चढ़े और कैसे गांधी जी हाथी पर, यह जानना रोचक होगा। 

चंदा इकट्ठा कर चल दिए गांधी को लाने : चंदे का पैसा मतलब समाज का पैसा। और इस पैसे का कैसे इज्जत करना चाहिए, इसे राजकुमार शुक्ल ने बखूबी दिखाया। जब गांधीजी ने तीसरी बार टेलीग्राम भेजा कि मैं 7 अप्रैल 1917 को कोलकाता आ रहा हूं, भूपेन बाबू के घर ठहरूंगा, तब शुक्लजी कोलकाता की तैयारी करने लगे। वे बेतिया से मुजफ्फरपुर पहुंचे। 

वकील गया प्रसाद और रामनवमी प्रसाद से मिले। चंदा इकट्ठा किए और चल दिए गांधीजी को लाने। लेकिन शुक्ल जी को लगा ये पैसे कम पड़ जाएंगे। वे एक-एक पैसे बचाने के लिए सोचने लगे। इसी बीच एक साह जी दिखाई दिए जो अपनी मां का शव लेकर सिमरिया घाट जा रहे थे। शुक्लजी शव वाहन पर चढ़ गए। सिमरिया घाट तक गए और पैसा बच गया। फिर स्टीमर से मोकामा घाट और मोकामा से टिकट कटाए और टिकट कटाने के बाद अपनी डायरी में टिकट नंबर तक लिखे ताकि बाद में हिसाब दिया जा सके। फिर कोलकाता के लिए चल दिए।  

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कृपलानी जी चढ़ गए पेड़ पर  
आचार्य जेबी कृपलानी मुजफ्फरपुर के जेबीबी कॉलेज में शिक्षक थे। जब उन्हें रात नौ बजे टेलीग्राम मिला कि गांधी जी स्टेशन पर आ रहे हैं, तो वे तेजी से तैयारी करने लगे। हॉस्टल में रहनेवाले छात्रों को बुलाकर गांधीजी के बारे में बताए। फिर फूल तोड़वा कर माला बनवाए। लेकिन उन्हें लगा कि भारतीय रीति-रिवाज के अनुसार नारियल से भी गांधीजी का स्वागत होना चाहिए। लेकिन रात होने के कारण दुकानें बंद थी। कृपलानी जी थोड़ा परेशान हुए। जब छात्रों से पूछे तो छात्रों ने बताया कि कैंपस के नारियल पेड़ पर नारियल है। लेकिन अब तोड़ेगा कौन। छात्रों को तो चढ़ने के लिए बोलेंगे नहीं। लिहाजा प्रोफेसर कृपलानी खुद अंधेरे में पेड़ पर चढ़ गए और नारियल तोड़ लिए। फिर पूरी तैयारी के साथ छात्रों को लेकर गांधी जी की अगवानी के लिए मुजफ्फरपुर स्टेशन पर पहुंचे। मगर संयोग देखिए कि वे चेहरे से गांधीजी को पहचानते तक नहीं थे, लेकिन गांधीजी के प्रति मन में जो श्रद्धा थी, वह देखने लायक थी। 

बग्घी में चढ़े कृपलानी व गांधीजी 
मुजफ्फरपुर स्टेशन पर आचार्य जेबी कृपलानी गांधी जी से मिले। अब उन्हें कॉलेज कैंपस में ले जाने के लिए सोचने लगे। इसी बीच एक सेठ जी की बग्घी दिखाई दी। कृपलानी जी सेठ जी के पास पहुंचे और आग्रह किए कि कुछ देर के लिए अपनी बग्घी हमलोगों को दे दीजिए ताकि गांधीजी को ले जा सके। सेठ जी मान गए। तब तक कृपलानी के साथ आए छात्रों ने बग्घी के घोड़े को खोल दिया और खुद खींचने के तैयार हो गए। गांधी जी यह देखकर रुक गए और बोले मैं नहीं जाऊंगा। तब फिर घोड़े को लगा दिया गया। जब गांधी जी और कृपलानी जी बंद बग्घी में बैठ गए, तब छात्रों ने धीरे से घोड़े को खोल दिया और खुद खींचकर चलने लगे। बग्घी की चाल से कृपलानी जी को यह पता चल गया लेकिन वे चुप रहे। छात्र बग्घी खींचकर एलएस कॉलेज कैंपस लाए। जब गांधी जी उतरे तो छात्रों को देखकर दुखी हो गए।  

जसौलीपट्टी गए थे
गांधी जी 16 अप्रैल को मोतिहारी से जसौलीपट्टी के लिए चले। वहां वे लोकरार्ज ंसह से मिलने जा रहे थे, जिनकी लड़ाई नीलहों से चल रही थी। लोकराज सिंह गांधीजी से पहले मिले थे और आग्रह किए थे कि आप हमारे घर जरूर आइएगा। इसीलिए गांधी जा रहे थे। लेकिन मोतिहारी से जसौलीपट्टी जाने के लिए सीधे कोई साधन नहीं था। इसलिए लोगों के आग्रह पर वे हाथी पर चढ़े। 

दारोगा ने थमा दी नोटिस
एक स्थानीय जमींदार के हाथी से वे चंद्रहिया पहुंचे ही थे कि अयोध्या प्रसाद तिवारी नामक दारोगा पीछे से साइकिल पर आया और नोटिस थमा दी जिसमें लिखा गया था कि आपके जसौलीपट्टी जाने से व्यवस्था भंग हो सकती है। आप तत्काल मोतिहारी छोड़ दें। आप लौट जाइए और कलक्टर से जाकर मिलिए। 
 

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