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लालू बोले, इस चुनाव में हारे तो बर्बाद हो जाएंगे

राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद दावे के साथ कहते हैं कि हम चुनाव जीत चुके हैं। बिहार में भारी बहुमत से महागठबंधन की सरकार बनेगी। इस चुनाव में जो हारेगा, वह बर्बाद हो जाएगा। भाजपा हारे या हम...

लालू बोले, इस चुनाव में हारे तो बर्बाद हो जाएंगे
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 14 Oct 2015 10:47 AM
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राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद दावे के साथ कहते हैं कि हम चुनाव जीत चुके हैं। बिहार में भारी बहुमत से महागठबंधन की सरकार बनेगी। इस चुनाव में जो हारेगा, वह बर्बाद हो जाएगा। भाजपा हारे या हम हारें। शाम को 10 सर्कुलर रोड स्थित आवास पर लालू प्रसाद से हमारी बातचीत हुई। आत्मविश्वास से लबरेज लालू प्रसाद कहते हैं कि भाजपा का असली चेहरा सामने आ गया है।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण को लेकर चुनाव के ठीक पहले जो बातें कही हैं, वह उनके गुरु गोलवलकर ने 1966 में कही थीं। बंच आफ थॉट्स का हवाला देते हुए वह कहते हैं कि इस किताब में वो बातें छपी हुई हैं। गोलवलकर ने कहा था कि सिर्फ जाति के आधार पर आरक्षण अलगाव बढ़ाता है। इसलिए जातिगत आरक्षण खत्म कर आर्थिक आधार पर इसकी व्यवस्था करनी चाहिए। नरेंद्र मोदी उनके एजेंडे से अलग नहीं जा सकते हैं। फिर सवालिया लहजे में कहा कि अगर मोहन भागवत की बात से भाजपा इत्तेफाक नहीं रखती है तो मोदी खामोश क्यों हैं? भागवत को हटाने की पहल क्यों नहीं करते? उन्हें दंडित करते तो हम समझते। जाहिर है, ये आएसएस प्रमुख की बातों से बाहर नहीं जा सकते हैं।
इस चुनाव को लेकर आपका आकलन क्या है?
मोहन भागवत से मैला ढ़ोने को क्यों नहीं कहते

बंच आफ थॉट्स में लिखा कि भारत के संविधान में कुछ भी भारतीय नहीं है। इधर- उधर से जोड़कर बिना मतलब का दस्तावेज बना दिया। यह अंबेडकर का अपमान नहीं तो और क्या है? मोदीजी की किताब भी आ गई। इसमें मोदीजी ने लिखा है कि दलित अपनी इच्छा से मैला ढ़ोते हैं, इससे उन्हें आध्यात्मिक शांति मिलती है। अगर मैला ढ़ोने से आध्यात्मिक शांति मिलती है तो मोहन भागवत से मैला ढ़ोने को क्यों नहीं कहते हैं? रही बात कमंडल की तो आप ही बताइये क्या हम हिंदू नहीं हैं? छठ, दिवाली, नवरात्र या अन्य पर्व- त्योहार नहीं मनाते हैं? वे तो न राम के हुए और न रहीम के हैं और न इन्हें पूजा से मतलब है। भगवान महान होता है। इनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। भाजपा को सिर्फ सत्ता पर कब्जा से मतलब है। जनता इसका जवाब देगी।
बीफ पर आपके बयान से विवाद पैदा हुआ। भाजपा को आपने एक मुद्दा दे दिया?
बीफ पर भाजपा वाले फालतू बोल रहे हैं। मुझसे दादरी पर पूछा गया था। यह मुद्दा बिहार का नहीं है। बीफ का मतलब गोमांस नहीं होता है। जानवरों का मांस होता है। बिहार में गोवध पर पहले से प्रतिबंध है। हम गोपालक हैं। गाय की पूजा करते हैं। भाजपा के लोग कुत्ता पालते हैं। यह मुद्दा बिहार का नहीं है। भाजपा धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण कराने की साजिश रच रही है। इसीलिए इस मुद्दे को बिहार चुनाव में बाहर से लाकर थोप रही है। दादरी पर प्रधानमंत्री ने चुप्पी साध ली। उन्हें राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने नसीहत दी है। धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव संविधान की भावना के प्रतिकूल है।
फिर आपने ये क्यों कहा कि मेरे मुंह में शैतान बैठ गया था?
कब कहा, आपसे कहा था क्या? मैं तो उस शैतान को ढूंढ़ रहा हूं, जिसने मेरे मुंह में शैतान डालकर प्रचारित किया। कब ऐसी बात हुई थी। भाजपा और उसके समर्थकों की आदत है कि वह बात गढ़कर किसी के मुंह में डाल देते हैं और फिर हल्ला करने लगता है। मुख्य मुद्दा ये सब नहीं है। असली मुद्दा है, नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में देश को ठगा। युवाओं, बेरोजगारों, किसानों, गरीबों सबको झांसा देकर वोट ले लिया और चुनाव बाद ठेंगा दिखा दिया। वे काम करते और सच्चाई पर रहते तो ये दुर्दशा नहीं होती।
भाजपा आपके शासनकाल को जंगलराज कहती है। क्या कहेंगे आप?
जब मैंने बिहार की सत्ता संभाली थी, उस समय समाज में बहुत बेचैनी थी। ऊंच- नीच की खाई से लोगों में उबाल था। मैंने गरीबों को जुबान दी। सामाजिक परिवर्तन का काम किया। ये उन्हें पसंद नहीं है। इसलिए जंगलराज कहते हैं। गुजरात में क्या हुआ, किसे पता नहीं है। बिहार में सुधा डेयरी  किसके समय में लगी। आज यह बिहार की नाज है। भाजपा तो जबसे केन्द्र की सरकार में आई है, रेलवे का भट्ठा बैठ गया। हजार से अधिक स्टील कारखाने बंद हो गए। दाल, प्याज, सब्जी सबके भाव आसमान छू रहे हैं। गरीबों के इंदिरा आवास में कटौती कर दी, मनरेगा बंद कर दिया। यही भाजपा का विकास मॉडल है। वह साम्प्रदायिकता से सत्ता हासिल करता चाहते हैं। बिहार की जनता बेवकूफ नहीं है। 
भाजपा कहती है, महागठबंधन में फूट है, इसलिए अलग- अलग प्रचार कर रहे हैं। आप क्या कहेंगे?
हम तीनों दल एकजुट हैं। अलग- अलग सभाएं करने का फैसला हमारी रणनीति का हिस्सा है। ऐसा इसलिए कर रहे हैं, ताकि अधिक से अधिक लोगों के बीच हम पहुंच सकें। फूट तो एनडीए में है। इसीलिए उम्मीदवारों की घोषणा में भी उन्हें काफी समय लगा। उनके आपस में विरोधभासी बयान भी आ रहे हैं।
   

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