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अकादमिक गोष्ठी में राजनीतिक संबोधन, खुद को संघी साबित करने की होड़

भागलपुर विश्वविद्यालय के पीजी राजनीतिशास्त्र द्वारा एकात्म मानव दर्शन पर बुधवार को आयोजित अकादमिक गोष्ठी राजनीतिक गोष्ठी में तब्दील होकर रह गई। बड़े-बड़े वक्ता जुटे तो थे एकात्म मानव दर्शन पर चर्चा...

अकादमिक गोष्ठी में राजनीतिक संबोधन, खुद को संघी साबित करने की होड़
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 26 Apr 2017 08:12 PM
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भागलपुर विश्वविद्यालय के पीजी राजनीतिशास्त्र द्वारा एकात्म मानव दर्शन पर बुधवार को आयोजित अकादमिक गोष्ठी राजनीतिक गोष्ठी में तब्दील होकर रह गई। बड़े-बड़े वक्ता जुटे तो थे एकात्म मानव दर्शन पर चर्चा करने, लेकिन ज्यादातर का संबोधन कांग्रेस, भाजपा, आरएसएस, नेहरू, गांधी, जिन्ना पर ही केन्द्रित रहा।

घोटाले और भ्रष्टाचार के साथ-साथ दिल्ली दिल्ली नगर निगम चुनाव के परिणाम तक पर चर्चा हुई और यह अकादमिक गोष्ठी किसी खास विचारधारा के प्रचार-प्रसार का माध्यम जैसी बनती दिखी। यहां तक कि कई प्रोफेसरों में खुद को संघी साबित करने की होड़ लगी रही और वे विषय से हटकर राजनीतिक भाषण देते रहे। हालांकि, संघ के विचारक स्वांत रंजन का भाषण बहुत ही संतुलित और सारगर्भित था, जिसे लोगों ने बड़े ध्यान सें सुना।

बीएचयू के प्रो. केके मिश्र ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म दर्शन की जरूरत तभी महसूस होने लगी थी, जब एक वर्ग विशेष ने 1965 में देशभर में यह नारा दिया था कि भारत तेरे टुकड़े होंगे...। जिन्होंने जिन्ना के आगे घुटने टेके, उनकी तुलना दीनदयाल उपाध्याय से कैसे की जा सकती है? उन्होंने नेहरू को भुलाया जा चुका और गांधी जी को पीछे भेजा जा चुका बताया।

कहा, अब देश आरएसएस की विचारधारा से पलने लगेगा। उन्होंने दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजों पर चर्चा करते हुए कहा कि हार के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि ईवीएम ही खराब थी। यह कहकर वह संविधान पर उंगली उठा रहे हैं। इसी बीच कुलपति प्रो. नलिनी कांत झा ने उन्हें इशारा कर भाषण खत्म करने को भी कहा।

आईसीएसएसआर के राष्ट्रीय आचार्य अशोक मोदक ने अपने संबोधन में भ्रष्टाचार, घपले, घोटाले की चर्चा करते हुए कहा कि अगर इससे कांग्रेस को हानि होती है तो यह मत समझिए कि आरएसएस को हानि नहीं होगी। उन्होंने पूरा राजनीतिक भाषण दिया।

वहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. राजवीर शर्मा ने देश के विश्वविद्यालयों में दी जा रही शिक्षा पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि अब हमारे विश्वविद्यालयों में नागरिकता की शिक्षा नहीं दी जाती है। अगर दी जाए तो अगले दिन समाचार पत्रों में खबर आएगी कि विश्वविद्यालय में शिक्षा को छोड़ सबकुछ होता है। इसलिए विश्वविद्यालय शिक्षा के साथ सबकुछ करे।

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