जैविक खाद बनाना सीखेंगे आईवीआरआई के वैज्ञानिक कर्मचारी, पैसा भी कमाएंगे
अपने-अपने क्षेत्रों में माहिर आईवीआरआई के वैज्ञानिक और कर्मचारी अब जैविक खाद बनाना भी सीखेंगे। घर से निकलने वाले जैविक कूड़े और कचरे से वे आईवीआरआई की ओर से विकसित तकनीकों की मदद से जैविक खाद तैयार...
अपने-अपने क्षेत्रों में माहिर आईवीआरआई के वैज्ञानिक और कर्मचारी अब जैविक खाद बनाना भी सीखेंगे। घर से निकलने वाले जैविक कूड़े और कचरे से वे आईवीआरआई की ओर से विकसित तकनीकों की मदद से जैविक खाद तैयार करेंगे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के स्वच्छ भारत अभियान के जैविक खाद की तकनीक विकसित करने वाले प्रधान वैज्ञानिक डा. रणवीर सिंह को कमान सौंपी गई है।
आईसीएआर का स्वच्छ पखवाड़ा आईवीआरआई में 16 से 31 मई तक कराया जा रहा है। इस कड़ी में जैविक खाद फार्म पर जैविक कूड़ा बनाने वाली जयगोपाल और मैकेनिकल मशीन तकनीक के बारे में बताया गया। इसमें सर्विस सेक्शन, फार्म, पावर, मानव चिकित्सालय, राजभाषा, संचार केन्द्र, पुस्तकालय, पशुधन उत्पाद प्रबन्धन तथा सफाई एवं बागवानी अनुभाग के सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने भाग लिया। प्रधान वैज्ञानिक ने तकनीकों का प्रदर्शन कर बताया कि जैविक खाद को बहुत आसानी से बनाया जा सकता है। कूड़े-कचरे, सब्जियों के छिलके की मदद से खाद तैयार कर सकते हैं। इसमें न तो बिजली की ज्यादा जरुरत है और न ही बहुत अधिक पैसे की। जैविक खाद बनाने में 10 प्रतिशत गोबर एवं 90 प्रतिशत पत्तों का प्रयोग किया जाता है। इस दौरान वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी डा. पंकज कुमार, डा. अनुपम गोयल मौजूद थे।
स्वदेशी केंचुओं की खाद सबसे शानदार
प्रधान वैज्ञानिक डा. रणवीर सिंह ने बताया कि विदेशी केंचुओं से जैविक खाद बनाई जाती थी पर विदेशी केंचुए भारतीय की अत्यधिक गर्मी में वह मर जाते थे। स्वदेशी केंचुए 46 डिग्री तापमान तक भी जीवित रह कर मिटटी के स्वास्थ्य को और अधिक उपजाऊ बनाते हैं। इस दौरान आईवीआरआई की जयगोपाल वर्मी कल्चर तकनीक और सात दिन में खाद तैयार करने वाली मैकेनिकल मशीन से खाद बनाने की पूरी प्रक्रिया बताई गई।