बंगाल की दुर्गा पूजा है इसलिए खास, जानिए ये रोचक तथ्य
दुर्गा पूजा का नाम आते ही सबसे पहले दिलों-दिमाग में बंगाल का ख्याल आता है। वैसे तो दुर्गा पूजा भारत के हर शहर हर जिले में सेलेब्रेट होती है, लेकिन बंगाल की दुर्गा पूजा की बात ही कुछ और...
दुर्गा पूजा का नाम आते ही सबसे पहले दिलों-दिमाग में बंगाल का ख्याल आता है। वैसे तो दुर्गा पूजा भारत के हर शहर हर जिले में सेलेब्रेट होती है, लेकिन बंगाल की दुर्गा पूजा की बात ही कुछ और है। जी हां, दशहरा, नवरात्रि और दुर्गा पूजा त्योहार तो एक ही है, लेकिन अलग-अलग राज्यों में दुर्गा मां के इस त्योहार को अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है।
आज हम बात करेंगे बंगाल की दुर्गा पूजा की। बंगालियों का सर्वश्रेष्ठ त्योहार है दुर्गा पूजा। पूरे साल वे इसी का इंतजार करते हैं। दुर्गा पूजा के ये 9 दिन उनके लिए बहुत ही खास होते हैं। दशहरा यानी विजया दशमी इसे हम कैसे भूल सकते हैं। ये तो अपने आप में एक खास दिन है। बंगाल की पूजा की बात ही कुछ और है। अगर किसी को इस त्योहार का लुत्फ उठाना है तो वो बंगाल के कोलकाता जाकर इस त्योहार के मजे ले सकते हैं। इन दिनों महानगरी कोलकाता दुल्हन की तरह तैयार होती है। देश विदेश से लोग पूजा के समय कोलकाता आते हैं।
नवरात्रि से जुड़ी खबरों के लिए यहां क्लिक करें
क्या आपको पता है बंगाल में दुर्गा पूजा का कुछ खास महत्व है। आईए हम आपको आज बंगाल की दुर्गा पूजा की कुछ खास बातों से रू-ब-रू कराते हैं। जो इस त्योहार को यहां सबसे अलग बनाती है।
कोलकाता का असली रूप दुर्गा पूजा के समय ही दिखाई देता है। कोलकाता को सिटी ऑफ ज्वॉय कहा जाता है। असल माइने में ये शहर त्योहारों का, आनंद का शहर है। दुर्गा पूजा के दौरान हर कोई जात-पात भूलकर, उम्र की सीमा को पार कर बस पंडालों में इस पूजा का लुत्फ उठाते नजर आते हैं। इन दिनों बड़े, बुढ़े ,युवा और महिलाएं हर कोई पंडालों की सैर करते नजर आते हैं, सारे काम-काज भूल कर वे बस मां की आराधना में जुट जाते हैं।
दरअसल, बंगाल में पूजा का मतलब केवल पूजा, आराधना या मां को याद करना ही नहीं है, बल्कि पूरे साल के सारे दुख-दर्द और गम भूलाकर मस्ती करने का वक्त है। इस त्योहार में परिवार के सभी लोग एक साथ मां का आप्पायन करते हैं। उनका आदर-सम्मान करके घर में ही उनकी स्थापना भी करते हैं।
दुल्हन की तरह सजता है ये शहर
कोलकाता के हर कोने में, उत्तरी कोलकाता से दक्षिण तक। नाकतला से बेहाला तक, बागबाजार, श्यामबाजार, कोलकाता की हर गली में एक पंडाल जरूर होता है। कई लोग अपने घर में ही मां की स्थापना करते हैं और 9 दिन तक घर में उनकी पूजा होती है।
चोक्खू दान
एक - दो महीने पहले से ही कोलकाता में पूजा की तैयारिय़ां शुरू हो जाती है। कई खास तरीकों से पूजा पंडाल बनाए जाते हैं। प्रथमा के दिन मां को रंग चढ़ता है और ऐसे ही हर दिन खास होता है। ये सिलसिला नवमी तक चलता रहता है। लेकिन नवरात्रि शुरू होने से एक हफ्ते पहले दुर्गा मां की प्रतिमा तैयार हो जाती है, लेकिन उनकी आंखें रह जाती हैं। महालया के दिन देवी की आंखें तैयार की जाती हैं। इसे चोक्खू दान कहते हैं। आंखें दान। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन देवी धरती पर आती है।
पंडालों की धूम
कोलकाता में दुर्गा पूजा की सबसे खास बात है कि यहां लोग प्रतिमा दर्शन के लिए पंडालों में रात भर लाइन लगाते हैं। वे दिन में निकलते हैं और रोजाना देर रात तक पंडालों के दर्शन करते हैं। दरअसल, पंडालों की खास बात होती है कि लाखों रुपए खर्च करके पंडाल तैयार होते हैं। इसके लिए महीनों की तैयारी होती है। पंडालों को इतनी खूबसूरती से सजाया जाता है, जिसे देखकर आपकी आंखें चौंक जाती हैं। सबसे बड़ी बात है कि पंडालों में मुकाबला तक होता है। किसका पंडाल ज्यादा आकर्षक है, किसमें ज्यादा भीड़ होती है, इसके हिसाब से प्राइज भी दी जाती है।
कुछ खास पंडाल
कोलाकाता के कुछ खास पंडाल हैं जो हमेशा एक सामाजिक संदेश के साथ, जागरूकता फैलाने के मकसद से पंडाल बनाते हैं। पंडालों का सजावट और लाइट देखने लायक होती है। जैसे बेहाला, साउथ कोलाकाता, उत्तरी कोलकाता, मोहम्मद अली पार्क, चेतला, बागबाजार आदि।
कोला बौ
आपने देखा होगा कि मां की प्रतिमा के सामने एक केले के पेर को साड़ी पहनाकर खड़ा किया जाता है। दरअसल, सातवें दिन सुबह-सुबह एक छोटे से केले के पेर को कोला बौ के रूप में पूजा जाता है। उसे साड़ी पहनाकर तैयार किया जाता है और उसकी भी पूजा होती है।
कोलकाता फूड, स्ट्रीट रोल
जरूरी नहीं है कि आप हर दिन बड़े रेस्तरां में खाना खाने जाएं, लेकिन कोलाकाता का स्ट्रीट फूड बहुत रोचक है। पंडालों के बाहर लंबी कतारों में खाने की कई चीजों के स्टॉल आदि लगते हैं। आप बस हाथ में एक वेज रोल लेकर आप पूजा का लुत्फ उठा सकते हैं। सभी अपने परिवार के साथ बाहर ही खाना खाते हैं। रेस्तरां में लंबी लाइन लगती है। महिलाओं को घर में खाना बनाने से छुट्टी मिल जाती है। वे कुछ दिन अपने किचन से बाहर होती हैं और परिवार के साथ बाहर खाना खाती हैं।
कुमारी पूजा
बंगाल में ये खास है, कुमारी पूजा का प्रचलन बहुत ज्यादा है। घरों में गलियों में लोग कुमारियों की पूजा करते हैं। नवरात्रि के 9 दिन कुमारी पूजा होती है। कुमारी कन्याओं को दुर्गा मां की तरह पूजा जाता है। दरअसल, स्वामी विवेकानंद ने बेलूर मठ में इसका प्रचलन शुरू किया था।
अष्टमी की पुष्पांजलि
अष्टमी बहुत खास होती है। इस दिन महिलाएं लाल साड़ी पहनकर, लड़के धोती पहनकर पंडालों में पहुंच जाते हैं और पंडित मशाई उनके हाथों में फूल और पलाश फूल देकर आरती करते हैं और पुष्पाजंलि देते हैं। दरअसल, देवी मां का मंत्र उच्चारण करते हैं।
ढाक ढोल की ध्वनी
सबसे खास बात होती है कि 9 दिन तक आपके अपने घर में मां के पंडालों के बाहर ढाक ढोल की आवाजें सुनाई देती है। धूप-धूना से आरती होती है और तरह तरह के फूल से पंडालों को सजाया जाता है।
विजया दशमी, सिदूर खेला
बंगाल में पूजा के दौरान दशमी के दिन का ये दृश्य देखने के लिए लोग दूर दूर से अलग-अलग शहरों से आते हैं। विजया दशमी के दिन मां के पंडाल में बहुत भीड़ होती है। मां को विदा देने का जो दर्द दिल में होता है उसके साथ-साथ सभी मां को उमंग और उत्साह के साथ अलविदा कहते हैं। शादी-शुदा औरतें लाल साड़ी पहनकर माथे में सिंदूर लगाकर पंडालों में पहुंचती है और मां को उलू ध्वनी के साथ विदा देती हैं। एक दूसरे को गुलाला लगाती हैं और सिंदूर खेला खेलती हैं। बड़ों का अाशीर्वाद लेती हैं और नम आंखों से मां के अगले साल का इंतजार करती हैं।