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जानिए कौन हैं मां शैलपुत्री, क्यों उन्हीं का होता है पहला व्रत

  शनिवार सुबह मां शैलपुत्री की पूजा के साथ ही शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो जाएगी. मां शैलपुत्री हिमालय की बेटी हैं इसी के चलते उनका नाम शैलपुत्री रखा गया. मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ है और

लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 01 Oct 2016 10:27 AM

 

शनिवार सुबह मां शैलपुत्री की पूजा के साथ ही शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो जाएगी. मां शैलपुत्री हिमालय की बेटी हैं इसी के चलते उनका नाम शैलपुत्री रखा गया. मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ है और इसलिए उन्हें  देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। आप शायद न जानते हों लेकिन लेकिन मां शैलपुत्री ही देवी सती भी हैं. देवी के दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। शैलपुत्री देवी दुर्गा का प्रथम रूप हैं और पहले नवरात्र पर इसीलिए उनकी पूजा की जाती है. शारदीय नवरात्र आरम्भ होने पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के साथ ही मां दुर्गा की पूजा शुरू की जाती है।

वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ । 
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री का महत्त्व और शक्तियां अनन्त हैं। नवरात्र पूजन में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस दिन उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योगसाधना का आरम्भ होता है। इस स्वरूप का आज के दिन पूजन किया जाता है। आवाहन, स्थापन और विसर्जन ये तीनों आज प्रात:काल ही होंगे। किसी एकान्त स्थान पर मृत्तिका से वेदी बनाकर उसमें जौ गेंहू बोये जाते हैं। उस पर कलश स्थापित किया जाता है। कलश पर मूर्ति की स्थापना होती है। मूर्ति किसी भी धातु या मिट्टी की हो सकती है। कलश के पीछे स्वास्तिक और उसके युग्म पार्श्व में त्रिशूल बनायें। शैलपुत्री के पूजन करने से 'मूलाधार चक्र' जाग्रत होता है। जिससे अनेक प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं।

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जानिए कौन हैं मां शैलपुत्री, क्यों उन्हीं का होता है पहला व्रत

 

क्या है मां शैलपुत्री की कहानी

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार मां शैलपुत्री ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुईं थी। तब इन्हीं का नाम 'सती' था। इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। बताया जाता है कि एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सभी देवताओं को यज्ञ भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया लेकिन भगवान शंकर को उन्होंने इस यज्ञ में बुलाने से परहेज किया।

सती ने जब सुना कि उनके पिता एक विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहां जाने की लिए मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकर जी को बतायी। उन्होंने कहा प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं, अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है उनके यज्ञ भाग भी उन्हें समर्पित किये हैं, किन्तु हमें नहीं बुलाया है। ऐसी परिस्थिति में तुम्हारा वहां जाना श्रेयस्कर नहीं होगा। शंकर जी के इस उपदेश से सती को बोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, माता और बहनों से मिलने की व्यग्रता और उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकर ने उन्हें वहां जाने की आज्ञा दे दी। 

सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बात नहीं कर रहा है। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास का भाव था। परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को संताप हुआ। उन्होंने यह भी देखा कि वहां चतुर्दिक भगवान शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव भरा था। दक्ष ने उनके पति शंकर जी के प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से भर उठा। उन्हें लगा भगवान शंकर की बात न मान यहां आकर मैंने बहुत बड़ी ग़लती की है। वह अपने पति का अपमान सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। 

वज्रपात के समान उस दारुण दु:खद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध होकर अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णत: विध्वंस करा दिया। सती ने अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वह शैलपुत्री के नाम से विख्यात हुईं। पार्वती, हेमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हेमवती स्वरूप से देवताओं का गर्वभंजन किया था।

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