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जीवन में लोगों को माफ करना सीखें और आगे बढ़े

सॉरी सुनना सबको अच्छा लगता है। एक ऐसा बिंदु, जहां से चीजें फिर से सही दिशा में बढ़ने लगती हैं। सॉरी सुनते ही क्रोध व बदले की भावना से सुलग रहा मन शांत हो जाता है। वैसे ही जैसे पानी की कुछ छींट पाते ही...

जीवन में लोगों को माफ करना सीखें और आगे बढ़े
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 14 Mar 2017 08:03 PM
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सॉरी सुनना सबको अच्छा लगता है। एक ऐसा बिंदु, जहां से चीजें फिर से सही दिशा में बढ़ने लगती हैं। सॉरी सुनते ही क्रोध व बदले की भावना से सुलग रहा मन शांत हो जाता है। वैसे ही जैसे पानी की कुछ छींट पाते ही उबला हुआ दूध। पर तब क्या करें, जब दूसरा गलती मानने को ही तैयार न हो? होता यह है कि आप सॉरी सुनने का इंतजार करते रह जाते हैं और सामने वाला ठेस पहुंचाकर आगे बढ़ जाता है। कई बार जानते हुए तो कई बार अनजाने में ही। 

क्यों माफ करना ही बेहतर है 
मनोविज्ञान कहता है कि हर व्यक्ति अहं और विवेक के साथ पैदा होता है। हमारा अहं किसी को भी यूं ही माफ करने से रोकता है। वह खुद को कमजोर व हीन मानने लगता है। दिक्कत यह भी है कि विवेक को साथ लिए बिना केवल अहं के भरोसे चलना दूसरे के अहं को भी बढ़ा देता है। इस तरह गलतियों का चक्र बढ़ता जाता है। इस्लामी विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन खां कहते हैं, बदले की भावना समस्या को जटिल बना देती है, जबकि विवेक समस्याओं को पैदा होने से रोकता है।’

माफ कर देने का एक अर्थ यह भी है कि आप किसी व्यक्ति या घटना को अपनी नियति बनने का हक नहीं देते। इसका आशय यह नहीं कि आप उन्हें पसंद करें या उनके साथ रहें। यह बस इतना है कि आप उन्हें शत्रु नहीं मानते, उनका बुरा नहीं चाहते। भारतीय दर्शन कहता है कि हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही कर्म आत्मा के साथ चिपक जाते हैं। कर्मों की यह चिपक जितनी हल्की होती है, आत्मा उतनी ही तेजी से अपने स्वभाव की ओर बढ़ती है।  इस संबंध में जैन दर्शन संवर और निर्जरा दो शब्दों पर जोर देता है। निर्जरा यानी बंधे हुए कर्मों को हल्का करना और संवर यानी नए कर्मों को आने से रोकना। बिना माफी की अपेक्षा किए दूसरों को माफ करना वही संवर है।                          

माफ करें और आगे बढ़ें 
- दूसरों को माफ न करना, यानी अपना नुकसान करना। मन के एक कोने को उस घटना या व्यक्ति से बांधे रखना। 
- माफ करना यानी दूसरे के पक्ष को समझना। यह जानना कि कहीं कुछ गलती आपकी भी तो नहीं। दया व करुणा अपनाएं। शुरुआत में मुश्किल होगी, पर धीरे-धीरे आप मजबूत बनेंगे। कितनी ही बार आपको दुख देने वाले स्वयं जीवन से दुखी और कई गलतफहमियों के शिकार होते हैं। जरूरत पड़ने पर उनकी मदद करने से भी पीछे न हटें।
- अपनी जिंदगी को ढंग से जीना ही  कई बार सामने वाले के लिए सबसे अच्छा सबक होता है। 

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