दिवाली पर ये विशेष पूजा बदल देगी किस्मत, कभी नहीं होगी पैसों की कमी
दिवाली पर मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए एक विशेष पूजा की जाती है। ये विशेष पूजा रात को लक्ष्मी गणेश पूजन के बाद की जाती है। कहा जाता है कि इस पूजा को करने से दरिद्रता का नाश होता है और परिव
दिवाली पर मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए एक विशेष पूजा की जाती है। ये विशेष पूजा रात को लक्ष्मी गणेश पूजन के बाद की जाती है। कहा जाता है कि इस पूजा को करने से दरिद्रता का नाश होता है और परिवार में कभी भी पैसों का कमी नहीं होती। इस पूजा को करने वाले के सभी काम आसानी से बिना किसी रुकावट के पूरे होते हैं। आइए जानें इस पूजा के बारे में:
दिवाली पर ये विशेष पूजा बदल देगी किस्मत, कभी नहीं होगी पैसों की कमी
दीपावली के पावन पर्व पर धनदा यक्षिणी के माध्यम से आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। यंत्रशास्त्र, शक्ति पुराण और श्री महालक्ष्मी उपास्य प्राचीन धर्मग्रंथों में इसका उल्लेख विस्तारपूर्वक किया गया है। वास्तव में यक्षिणी श्री महालक्ष्मी के ही अधीन हैं। शास्त्रों में 108 यक्षिणी के नाम निहित हैं, जिसमें धनदा यक्षिणी सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। यह जीवन में वैभव, उल्लास, उमंग, जोश, यौवन, धन, सम्मान, प्रतिष्ठा, कीर्ति, श्रेष्ठता प्रदान करने में सक्षम हैं। आर्थिक समस्याओं के समाधान और अज्ञात धन की प्राप्ति के लिए दीपावली पर धनदा यक्षिणी एक श्रेष्ठ साधना है। अज्ञात धन यानी वह धन, जिसके आगमन के किसी निश्चित स्रोत के विषय में कोई ज्ञान न हो कि धन किस स्रोत से प्राप्त होगा। इस प्रकार का धन साधना से प्राप्त होगा। इसके साथ यह आवश्यक है कि यह साधना पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करें।
दिवाली पर ये विशेष पूजा बदल देगी किस्मत, कभी नहीं होगी पैसों की कमी
'धनदा यक्षिणी' की साधना दीपावली के दिन श्री गणेश, लक्ष्मी, कुबेर आदि का पूजन संपन्न करने के बाद रात्रि दस बजे के बाद प्रारम्भ की जाती है। इसके लिए पीला आसन, पीली धोती, पीला दुपट्टा धारण करें। इस साधना में कोई सिला हुआ वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए। आसन ग्रहण कर किसी भी तेल का दीपक और सुगंधित धूपबत्ती प्रज्जवलित कर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठें। किसी ताम्र, रजत, स्वर्ण पात्र अथवा कमल पुष्प के पत्ते पर हल्दी, सिंदूर और चमेली के तेल का मिश्रण कर स्याही तैयार करें और अनार की कलम से धनदा यक्षिणी यंत्र बनाएं। यंत्र तैयार करते समय 'ऊं महालक्ष्मियायै नम:' मंत्र का मानसिक जाप करते रहें। एक थाली में सिंदूर से अपने दाहिने हाथ की अनामिका उंगली से 'श्री' लिख कर थाली को पीले पुष्पों से भर कर चौकी पर पीला वस्त्र बिछा कर रखें। इसके बाद यंत्र को दोनों हाथों में लेकर 'ऊं भू: भुव: स्व: श्री धनदा यक्षिणी इहागच्छ इहतिष्ठ श्री धनदा यक्षिणी मावाहयामि स्थापयामि नम:' मंत्र का उच्चारण कर थाली के फूलों के ऊपर स्थापित करें। यंत्र का पूजन गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, ताम्बूल आदि अर्पित कर करें।
इसके बाद श्रद्धा, विश्वास और एकाग्रतापूर्वक 'ऊं श्रीं धनदायै यक्षिणी हुं श्री ऊं' मंत्र का 21 माला जाप करें। जप प्रक्रिया समाप्त कर अग्नि में गाय के घी में हल्दी का मिश्रण कर इसी मंत्र के अंत में स्वाहा जोड़ कर 108 आहुतियां दें। इसके बाद प्रतिदिन माला का जाप 21 दिन तक कर अनुष्ठान पूर्ण कर लें। अर्पित सामग्री सहित यंत्र को किसी नदी या नहर में पीले वस्त्र में लपेट कर अर्पित करें।
दिवाली पर ये विशेष पूजा बदल देगी किस्मत, कभी नहीं होगी पैसों की कमी