जानें दिवाली पर तांत्रिक क्यों देते हैं लक्ष्मी के वाहन उल्लू की बलि
तांत्रिकों के लिए दिवाली की रात, अमावस्या या चौदस की रात को तंत्र क्रिया करने का विशेष महत्व होता है। विशेषकर सर्वपितृ अमावस्या, दीपावली की रात जैसे मौकों पर श्मशान साधना की जाती है। दरअसल अमावस्या...
तांत्रिकों के लिए दिवाली की रात, अमावस्या या चौदस की रात को तंत्र क्रिया करने का विशेष महत्व होता है। विशेषकर सर्वपितृ अमावस्या, दीपावली की रात जैसे मौकों पर श्मशान साधना की जाती है। दरअसल अमावस्या की आधी रात को महानिशा यानी महाकाली की पूजा की जाती है। तांत्रिकों के लिए यह तारीख काफी मायने रखती है।
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दिवाली की रात होती है पूजा: तांत्रिकों की मानें तो दिवाली की रात मां लक्ष्मी का पूजन करने के बाद आधी रात को महानिशा की पूजा करने का अतिउत्तम समय होता है। तीन चार घंटे चलने वाली इस पूजा में तांत्रिक विशेष साधना करते हैं। कहा जाता है तांत्रिक इस दिन मां लक्ष्मी का वाहन कहे जाने वाले उल्लू की बलि भी देते हैं।
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क्यों दी जाती है उल्लू की बलि: दिवाली का रात तांत्रिक साधना के लिए उल्लू का इस्तेमाल करते हैं। तांत्रिकों की मानें तो एक उल्लू से कई परेशानियों से निजात मिलती है। काला जादू करने वालों के अनुसार अगर आप बीमार हैं या आपको संतान नहीं होती या मनचाहा प्यार चाहिए हो या फिर आपका व्यवसाय नहीं चल रहा हो इन सभी समस्याओं में उल्लू ही निजात दिलाता है। तांत्रिकों अनुसार उल्लू के माध्यम से प्रेतबाधा का भी इलाज होता है। तांत्रिक साधना के लिए उल्लू को सुनसान जगह या फिर श्मशान ले जाते हैं।
उल्लू एक ऐसा पक्षी है जिनकी बहुत कम संख्या है ये लगभग विलुप्त होने की कगार पर हैं। तांत्रिकों द्वारा दिवाली की रात उल्लुओं की बलि देना एक अंधविश्वास है। हर साल अंधविश्वास के चलते कई उल्लुओं की बलि दे दी जाती है। अगर आपको कहीं भी ऐसी हरकतों की सूचना मिले तो अपने क्षेत्र के पुलिस थाने में शिकायत करें।