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डाट काली मंदिर: सुरंग बनाने के लिए यहां अग्रेजों को भी शीश पड़ा नवाना

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लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 26 Mar 2017 04:26 PM

यूपी-उत्तराखंड की सीमा पर देहरादून-सहारनपुर हाईवे पर मां डाट काली मंदिर स्थित है। डाट काली को शिव पत्नी देवी सती का अंश माना जाता है। जहां-जहां सती के अंश गिरे वहां-वहां उनकी अनुपम शक्ति के दर्शन होते हैं। माता डाट काली सिद्धपीठों में से एक है। 

यहां हर साल विशाल भंडारा लगता है। इसमें न केवल देहरादून, रुड़की, हरिद्वार, बल्कि यूपी के विभिन्न हिस्सों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। भक्त मानते हैं कि मां डाट काली का शेर, जिसके पैर में सोने का कड़ा है आज भी शिवालिक पर्वत श्रेणी में घूमता रहता है। मान्यता है कि किसी भी मंगलवार से 11 दिन तक विश्वास पूर्वक किया गया डाट चालीसा पाठ बड़े-बड़े कष्ट हर लेता है। 

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डाट काली मंदिर: सुरंग बनाने के लिए यहां अग्रेजों को भी शीश पड़ा नवाना

डाट काली मंदिर की इतनी मान्यता है कि पूरे इलाके में खरीदे जाने वाले ज्यादातर नए वाहन पूजा के लिए सबसे पहले डाट काली लाए जाते हैं। अंग्रेजों को दून घाटी में प्रवेश करने के लिए इस मंदिर के समीप सुरंग बनानी पड़ी। 

लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी जब सुरंग का काम पूरा नहीं हुआ तो अंग्रेजों को भी डाट काली के दरबार में शीश नवाना पड़ा था। गोरखा सेनापति बलभद्र थापा ने यहीं पर भद्रकाली मंदिर की स्थापना की थी। महंत रमन गोस्वामी इस मंदिर की व्यवस्था संभालते हैं।

यहां मां को शक्कर पागकर खोए का लगता है विशेष भोग

 

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