भगवद्गीता देती है योग का संदेश, मिलता है मोक्ष का द्वार
गीता इस जगत के सभी जीवों को जन्म और मरण से परे रहने वाली एक आत्मा के रूप में देखती है। आत्मा जब नश्वर शरीर में निवास करती है, तब जीवन के संघर्ष और पीड़ाओं का अनुभव करने को विवश हो जाती है। हमारे...
गीता इस जगत के सभी जीवों को जन्म और मरण से परे रहने वाली एक आत्मा के रूप में देखती है। आत्मा जब नश्वर शरीर में निवास करती है, तब जीवन के संघर्ष और पीड़ाओं का अनुभव करने को विवश हो जाती है। हमारे भौतिक जगत की हर चीज के निर्माण में आठ तत्व सन्निहित हैं। उसमें से पांच व्यक्त हैं, तो तीन अव्यक्त। पदार्थ की ऊर्जा उसके गुण, उसकी भावनात्मक रचना और उसकी सत्य बोध की क्षमता बनाती है। काल के प्रभाव से यह ऊर्जा निरंतर परिवर्तन का कारण बनती है। चाहे कोई शरीर हो, विचार हो, भावना हो, धारणा हो या कर्म हो। वह सब, जो इस भौतिक जगत में अस्तित्व में आता है, रहता है, क्षीण होता है और अंतत: विलीन हो जाता है। भौतिक ऊर्जा और काल मिल कर सदैव इसी तरह सक्रिय होते हैं।
इस जगत में सभी जीवित प्राणियों पर कर्म का सिद्धांत भी लागू होता है। निस्संदेह मानव शरीर अन्य की तुलना में प्रकृति का आनंद उठाने में अधिक स्वतंत्र और सक्षम है। यद्यपि इस स्वतंत्रता में प्रकृति के संतुलन का सम्मान और उसे बनाए रखने का दायित्व भी निहित है। जब-जब इस दायित्व का निर्वाह करने में चूक होती है, इस धरती के सभी प्राणियों और स्वयं इस धरा को उसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है। भौतिक जगत में इसकी विविध रचनाओं के प्रति मानव की भावनाओं के अनुसार ही उसे सुख या दुख मिलते हैं। निर्धारक बनता है उसका कर्म। काल, कर्म और प्रकृति के प्रभाव में संपूर्ण चराचर जगत उस एक सत्ता के नियंत्रण में रहकर काम करता है। वह सत्ता, जो सर्वशक्तिमान है, देवाधीश है, वह श्रीकृष्ण हैं। इसीलिए गीता में श्रीकृष्ण ही श्रीकृष्ण हैं। गीता में ईश्वर हैं, जीव है, प्रकृति है, काल है और कर्म है।
जीव को प्रकृति, काल और कर्म सीमा में बांध देते हैं, लेकिन गीता उसे एक और राह दिखाती है, जो इन सीमाओं से मुक्त है। श्रीकृष्ण मनुष्य को योग का मार्ग अपनाकर अपनी परम, आध्यात्मिक और आनंदकारी शरण में आने का मार्ग दिखाते हैं। गीता के अनुसार मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष होना चाहिए। पुनर्जन्म का भागी बनने का अर्थ है, मानव जीवन के रूप में मोक्ष पाने के अवसर को गंवा देना। भगवद्गीता का संदेश है योग, विशेषरूप से भक्ति योग। श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में योग के सिद्धांत बताए हैं। उनका पालन करके आत्मा धीरे-धीरे भौतिकता के मोहपाश से मुक्त होने लगती है, और श्रीकृष्ण में विलीन हो जाने में समर्थ हो जाती है। सुख-दुख के चक्र वाला यह जगत जीव के लिए एक यात्रा की तरह है, जिसमें भक्ति योग के मार्ग पर जाने से जीव को मोक्ष का द्वार मिलता है। भगवद्गीता इस संसार में छिपे मोक्ष तक ले जाने वाले मार्ग को सामने लाती है। यह संपूर्ण मानवता के लिए एक अमूल्य उपहार है।