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महाशिवरात्रि: यूपी के इन मंदिरों में पूरी होती है हर मनोकामना

शिवरात्रि इस बार 24 फरवरी को मनाई जा रही है। इसके लिए मंदिरों में तैयारियां शुरू हो चुकी है। शिवरात्रि से पहले हम आपको उत्तरप्रदेश के कुछ प्रमुख मंदिरों के बारे में बताने जा रहे है जहां पूजा करन

लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 22 Feb 2017 12:31 PM

शिवरात्रि इस बार 24 फरवरी को मनाई जा रही है। इसके लिए मंदिरों में तैयारियां शुरू हो चुकी है। शिवरात्रि से पहले हम आपको उत्तरप्रदेश के कुछ प्रमुख मंदिरों के बारे में बताने जा रहे है जहां पूजा करने से भगवान शिव की विशेष कृपा आपके ऊपर बनी रहेगी। देवों के देव महादेव त्रिदेवों में एक देव हैं। महादेव को भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ जैसे कितने ही नाम हैं जिनसे भक्त उन्हें पुकारते हैं।

वह तंत्र साधना में भैरव तो वेद में रुद्र के नाम से जाने जाते हैं। भगवान भोले शंकर व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। उनके जितने रूप हैं, उतने ही रूपों के उनके मंदिर भी हैं। उत्तर प्रदेश में कुछ मंदिर ऐसे हैं जिन्हें आप जानते हैं तो कुछ मंदिर ऐसे भी हैं जो अत्यधिक मान्यता के बाद भी बहुत प्रचारित न होकर लोगों की आस्था और साधना का केंद्र बने हुए हैं।

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काशी विश्‍वनाथ मंदिर, वाराणसी
वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह हजारों वर्षों से हिंदू धर्मावलंबियों  में विशिष्‍ट स्‍थान रखता है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्‍वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्‍वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं।  यहीं पर सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदायका महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया।

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गोला गोकर्णनाथ, लखीमपुर खीरी
लखीमपुर खीरी के गोला गोकर्णनाथ छोटी काशी के नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि त्रेता युग में राम-रावण युद्ध के समय रावण ने अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया ताकि वह युद्ध जीत सके। शिवजी ने शिवलिंग का आकार लेकर रावण को लंका में शिवलिंग स्थापित करने का निर्देश दिया। इसके लिए भगवान शिव ने एक शर्त रखी कि शिवलिंग को बीच में कहीं पर भी नीचे नहीं रखना है। लेकिन रास्ते में रावण ने एक गड़रिये को शिवलिंग पकड़ने को कहा।

कहते हैं कि भगवान शिव ने अपना वजन बढ़ा दिया और गड़रिये को शिवलिंग नीचे रखना पड़ा। रावण को भगवान शिव की चालाकी समझ में आ गयी और वह बहुत क्रोधित हुआ। रावण समझ गया कि शिवजी लंका नहीं जाना चाहते ताकि राम युद्ध जीत सकें। क्रोधित रावण ने अपने अंगूठे से शिवलिंग को दबा दिया जिससे उसमें गाय के कान (गौ-कर्ण) जैसा निशान बन गया। इस मंदिर का उल्लेख वाराह पुराण में भी है।

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भारत-भारी शिव मंदिर, सिद्धार्थनगर
डुमरियागंज तहसील में ग्राम-भारत-भारी में स्थित शिव मन्दिर और उसके सामने स्थित तालाब की मान्यता काफी अधिक है। इस प्राचीन मंदिर का उल्लेख यूनाइटेड प्राविसेंज आफ अवध एण्ड आगरा के वाल्यूम 32 वर्ष 1907 के पृष्ठ-96 और 97 में भी है। इसके मुताबिक  वर्ष 1875 में भारत भारी के कार्तिक पूर्णिमा मेले में 50 हजार दर्शनार्थियों ने भाग लिया था। इस स्थल का ऐतिहासिक महत्व भी है। महाराज दुष्यंत के पुत्र भरत ने भारत-भारी को अपनी राजधानी बनाया था। उस समय भारत भारी का नाम भरत भारी था।  

कहा जाता है कि जब पांडव अपने अज्ञातवास में आर्द्रवन से गुजर रहे थे तो उनसे मिलने भगवान श्रीकृष्ण भारत-भारी गांव से ही गुजरे थे। यहां उन्होंने शिव मन्दिर देखा तो रूक गये और पास के सागर में स्नान करने के बाद मन्दिर में जाकर पूजा अर्चना की। यह भी किवदन्ती है कि जब राम और रावण के बीच युद्ध हुआ तो राम के भाई लक्ष्मण जब मूर्छित हो गये थे तो हनुमान जी संजीवनी बूटी भारत-भारी होकर ले जा रहे थे, जिन्हें देखकर भरत ने उन्हें राम का कोई शत्रु समझकर तीर मारा और हनुमान पर्वत लेकर वहीं गिर पडे, वहां गड्ढा हो गया जो तालाब के रूप में परिवर्तित हो गया।

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पुरामहादेव, बागपत
बागपत जिले से साढ़े चार किलोमीटर दूर  बालैनी कस्बे के पुरा गांव में स्थित इस अति प्राचीन मंदिर की मान्यता वेस्ट यूपी ही नहीं बल्कि पूरे देश में है।  इसे एक प्राचीन सिध्दपीठ भी माना गया है।  लाखों शिवभक्त श्रावण और फाल्गुन के माह में पैदल ही हरिद्वार से कांवड़ में गंगा का पवित्र जल लाकर परशुरामेश्वर महादेव का अभिषेक करते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव भी प्रसन्न हो कर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं। इस मंदिर को परशुरामेश्वर भी कहते हैं। काफी पहले यहाँ पर कजरी वन हुआ करता था।

इसी वन में जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका सहित अपने आश्रम में रहते थे। रेणुका प्रतिदिन कच्चा घड़ा बनाकर हिंडन नदी से जल भर कर लाती थी। वह जल शिव को अर्पण किया करती थी। हिंडन नदी, जिसे पुराणों में पंचतीर्थी कहा गया है और हरनन्दी नदी के नाम से भी विख्यात है पास से ही निकलती है। 

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वाणेश्वर मंदिर, कानपुर देहात
कानपुर देहात के रूरा नगर से उत्तर पश्चिम दिशा में 7 किलोमीटर दूरी पर रूरा-रसूलाबाद मार्ग पर वाणेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। यह देवालय रोड के द्वारा कहिंझरी होकर कानपुर से जुड़ा हुआ है। कहिंझरी से इस मंदिर की दूरी 8 किलोमीटर है।  पौराणिक वाणेश्वर महादेव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। मान्यताओं के अनुसार सिठऊपुरवा (श्रोणितपुर) दैत्यराज वाणासुर की राजधानी थी।

दैत्यराज बलि के पुत्र वाणासुर ने मंदिर में विशाल शिवलिंग की स्थापना की थी। श्रीकृष्ण वाणासुर युद्ध के बाद स्थल ध्वस्त हो गया था। परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने इसका जीर्णोद्धार कराकर वाणपुरा जन्मेजय नाम रखा था, जो अपभ्रंश रूप में बनीपारा जिनई हो गया। मंदिर के पास शिव तालाब, टीला, ऊषा बुर्ज, विष्णु व रेवंत की मूर्तिया पौराणिकता को प्रमाणित करती हैं। 

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लोधेश्वर महादेव मंदिर, बाराबंकी
लोधेश्वर महादेव मंदिर बाराबंकी में रामनगर तहसील से उत्तर दिशा में बाराबंकी -गोंडा रोड से बायीं ओर लगभग 4 किलोमीटर दूर स्थित है। लोधेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना पांडवो ने अज्ञातवास के दौरान की थी, फाल्गुन का मेला यहां खास अहमियत रखता है, पूरे देश से लाखों श्रद्धालु यहाँ कांवड़ लेकर शिवरात्रि या शिवरात्रि से पूर्व पहुंच कर शिवलिंग पर जल चढाते हैं।

माना जाता है की वेद व्यास मुनि की प्रेरणा से पांडवों ने रूद्र महायज्ञ का आयोजन किया और तत्कालीन गंडक इस समय घाघरा नदी के किनारे कुल्छात्तर नमक जगह पर इस यज्ञ का आयोजन किया गया, महादेवा से २ किलोमीटर उत्तर नदी के पास आज भी कुल्छात्तर में यज्ञ कुंड के प्राचीन निशान मौजूद हैं उसी दौरान इस शिवलिंग की स्थापना पांडवो ने की थी।

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प्राचीन शिव मंदिर, लखीमपुर खीरी
लखीमपुर खीरी जिले में एक ऐसा शिव मंदिर है जहां पर मान्यता है कि सावन में जलाभिषेक करने से कुंवारों को मनपसंद दुल्हन मिल जाती है। यही नहीं मंदिर के किनारे बह रही गोमती नदी में डुबकी लगाने से कुष्ठ रोगियों के चर्म रोग भी ठीक हो जाते हैं। मान्यता है इस मंदिर में विराजमान भगवान पारसनाथ के दर्शनों से भक्तों की हर मुराद पूरी होती है। इसी कारण से सावन के पहले सोमवार को यहां श्रद्धालुओं की लंबी कतारें देखी जा सकती हैं। लखीमपुर खीरी जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर-24 पर पडऩे वाले मैगलगंज कस्बे से छह किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में मढिया घाट के शिव मंदिर की ख्याति आसपास के जिलों में भी है। 

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औघड़नाथ मंदिर, मेरठ
श्री औघड़नाथ शिव मंदिर की मान्‍यता के बारे में तो देश के कोने-कोने के लोग जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि इसी मंदिर से 1857 की क्रांति का जन्‍म हुआ था। बताया जाता है कि बंदूक की कारतूस में गाय की चर्बी का इस्‍तेमाल होने लगा था। सिपाही उसे मुंह से खोलकर इस्‍तेमाल करने लगे, तब मंदिर के पुजारी ने उन जवानों को मंदिर में पानी पिलाने से मना कर दिया। ऐसे में पुजारी की बात सेना के जवानों को लग गई और उत्तेजित होकर उन्‍होंने 10 मई, 1857 को यहां क्रांति का बिगुल बजा दिया।

जानकार बताते हैं कि इस औघड़नाथ शिव मंदिर में कुएं पर सेना के जवान आकर पानी पीते थे। इस ऐतिहासिक कुएं पर आज भी बांग्लादेश के विजेता तत्कालीन मेजर जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा द्वारा स्थापित शहीद स्मारक क्रांति के गौरवमय अतीत का प्रतीक उल्‍लेखित है।  वीर मराठों के समय में अनेक प्रमुख पेशवा अपनी विजय यात्रा से पहले इस मंदिर में जाकर बड़ी श्रद्धा से भगवान शिव की उपासना और पूजा करते थे। बताया जाता है कि यहां स्थापित शिवलिंग की पूजा-उपासना करने से उनकी मनोकामना पूरी होती थी। यही वजह है कि आज भी इस औघड़नाथ शिव मंदिर में दूर-दूर से लोग पूजा-अर्चना करने आते हैं। श्रावण मास में तो यहां इतनी भीड़ होती है कि लोगों के पैर रखने तक ही जगह नहीं होती।

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मनकामेश्वर मंदिर,  इलाहाबाद
यह मिंटो पार्क के पास यमुना नदी के किनारे किले के पश्चिम में स्थित है । यहाँ एक काले पत्थर की शिवलिंग और गणेश और नंदी की प्रतिमाएं हैं । हनुमान की भव्य प्रतिमा और मंदिर के पास एक प्राचीन पीपल का पेड़ है । यह प्राचीन शिव मंदिर इलाहाबाद के बर्रा तहसील से 40 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित है । शिवलिंग सुरम्य वातावरण के बीच एक 80 फुट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थापित है।  

शिवलिंग साढ़े तीन फिट भूमिगत है और यह भगवान राम द्वारा स्थापित किया गया था । यहाँ कई विशाल बरगद के पेड़ और मूर्तियाँ हैं । इलाहाबाद में तक्षकेश्वर शिव मंदिर यमुना के तट पर दरियाबाद इलाके में स्थित है।  ऐसी कथा प्रचलित है कि तक्षक नागिन भगवान कृष्ण द्वारा पीछा करने पर यहाँ आश्रय लिया था। एक अन्य प्राचीन मंदिर नाग वासुकी मंदिर संगम के उत्तर में गंगा तट पर दारागंज के उत्तरी कोने में स्थित है। पड़ला महादेव फाफामऊ सोरों तहसील के उत्तर पूर्व में स्थित है ।यह पूरी तरह से पत्थर से निर्मित है और यहाँ कई मूर्तियां हैं।

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