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कहीं आप भी उल्टा तो नहीं सोचते?

नेगेटिव सोच से सब दूर भागते हैं। जाहिर है दूसरों की, क्योंकि अपने भीतर की उल्टी सोच तो हमें दिखती ही नहीं। बड़े लक्ष्य ही नहीं, हमारी छोटी-छोटी खुशियां और रोजमर्रा के काम, हमारी नेगेटिव सोच के कारण...

कहीं आप भी उल्टा तो नहीं सोचते?
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 15 Mar 2017 07:41 PM
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नेगेटिव सोच से सब दूर भागते हैं। जाहिर है दूसरों की, क्योंकि अपने भीतर की उल्टी सोच तो हमें दिखती ही नहीं। बड़े लक्ष्य ही नहीं, हमारी छोटी-छोटी खुशियां और रोजमर्रा के काम, हमारी नेगेटिव सोच के कारण बिगड़ जाते हैं। हम खुद को ठगते रहते हैं और पता भी नहीं चलता कि किन-किन रूपों में ठगे जा रहे हैं।

बड़े दिनों बाद एक दोस्त से बात हो रही थी। दोस्त की नौकरी भी अच्छी है और ठीक-ठाक परिवार भी है। जैसा कि हमेशा होता है, अक्सर हमारी बातें अपने सुख-दुख सुनाने पर केंद्रित हो जाती हैं। यह पूछने पर कि सुबह व्यायाम क्यों नहीं करते?वह बताने लगा, ‘समय कहां है, पहले 10 से 8 तक की कमरतोड़ नौकरी करो, घर पहुंचकर पत्नी और बच्चों को समय दो, फिर मां-बाप का ध्यान भी मुङो ही रखना पड़ता है। तुम्हारी तरह किस्मत नहीं है..अब क्या नया होगा? सुनकर अजीब लगा। मन हुआ पूछूं कि क्या नौकरी पसंद नहीं है? पत्नी या बच्चे अपने नहीं हैं?मां-बाप का ध्यान रखना क्या मजबूरी है? रोजमर्रा की बातें अक्सर हम इसी टोन में करते हैं।

इस बात से अनजान कि खुद से जुड़ी हीनता कितनी गहराई से हमारे भीतर बैठी है। जबकि बाहरी जगत में हम खुद को नेगेटिव कहलाना पसंद नहीं करते। अपनी बातों को पॉजिटिव बनाकर कहने की लाख कोशिशें भी करते हैं। पर, उदासी को खुशी या दुख को सुख कहने मात्र से ही हम पॉजिटिव नहीं हो जाते। सफर में धूप तो होगी ही सवाल है कि नेगेटिव होना क्या है? जवाब है अपनी सहजता से दूर होना ही नेगेटिव होना है। अपनी और दूसरों की बेहतरी में आड़े आने वाले विचार ही नेगेटिव विचार हैं। बात हर समय अच्छा महसूस करने की नहीं है। दुख की घड़ी है तो दुख होगा ही। कुछबुरा हुआ है तो बुरा भी लगेगा ही।

रोने का मन है, तो रोने में बुराई नहीं है। समस्या तब होती है, जब हम विपरीत हालात के इर्द-गिर्द ही अपनी बातों और कामों को समेट लेते हैं। अपने से जुड़े हीन भावों को ही बार-बार दोहराते रहते हैं। टेक्सास यूनिवर्सिटी में प्रो. राज रघुनाथन कहते हैं, ‘हमारा अवचेतन मन, हमारी सोच से कहीं ज्यादा नेगेटिव होता है। खुद को कमतर मानना, प्यार पाने और स्वीकार किए जाने की चाहत और दूसरों पर नियंत्रण ये तीन विचार नेगेटिव विचारों के मूल में होते हैं।’ शोध कहते हैं कि दिनभर में करीब 70 हजार विचार दिमाग में आते हैं और इनमें से 70 } नेगेटिव होते हैं। हम सबका एक अतीत होता है, जो किसी भी काम से पहले हां या ना के रूप में सिर उठाने लगता है।

राज कहते हैं, ‘समस्या नेगेटिव विचारों से नहीं, केवल उन्हें सच मान लेने से है। जब हम खुद को उन विचारों से अलग मानकर, उन्हें फिल्टर करते हुए काम करते हैं, तो अच्छा काम करते हैं।’ ओह, माइंड रिलेक्स प्लीज में स्वामी सुखबोधानंद कहते हैं, ‘हमारे भीतर एक शत्रु है और एक राजा। नेगेटिव विचार शत्रु हैं और क्रिएटिविटी राजा। नेगेटिव विचारों को बार-बार दोहराना हमें शत्रु की कैद में ले जाता है। क्रिएटिविटी ही उस शत्रु को पराजित कर सकती है।’ जो हैं, वही रहें। उससे बेहतर बनें। अपनी सहजता को बनाए रखना ही पॉजिटिव बने रहना है। 
 

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