रजरप्पा मंदिर: पांचवी महाविद्या हैं मां छिन्नमस्तिका, जानें क्या होती हैं दस महाविद्या
प्रकृति की गोद में बसा झारखंड का महान तीर्थ स्थल रजरप्पा एक जागृत सिद्धपीठ है। यह तंत्र साधना के लिए विख्यात है। यहां मां छिन्नमस्तिका(प्रचंड चंडिका) देवी की प्रतिमा प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं को...
प्रकृति की गोद में बसा झारखंड का महान तीर्थ स्थल रजरप्पा एक जागृत सिद्धपीठ है। यह तंत्र साधना के लिए विख्यात है। यहां मां छिन्नमस्तिका(प्रचंड चंडिका) देवी की प्रतिमा प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं को खींच लाती है और वात्सल्य रस का अमृत पान कराती है। यहां देवी दर्शन, पूजा-अर्चना और पर्यटक पर्यटन के लिए दूरदराज से आते हैं।
मां छिन्नमस्ता देवी के प्रादुर्भाव के संबंध में कहा जाता है कि महाशक्ति की दस महाविद्याएं क्रमश: काली, तारा , षोड्शी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावति, बगलामुख, मांतंगी और कमला है।
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क्या है दस महाविद्या का महत्व
महाभागवत में कथा आती है कि राजा दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में शिव को निमंत्रित नहीं किया। इसलिए अपमानित अनुभव कर शिव ने सती को यज्ञ में जाने से रोक दिया, लेकिन सती ने कहा कि मैं यज्ञ में अवश्य जाऊंगी और वहां मैं अपने प्राणेश्वर के लिए यज्ञभाग प्राप्त करूंगी या यज्ञ को ही नष्ट कर दूंगी। यह कहते हुए सती के नेत्र लाल हो गए। देवी का रूप विकराल हो गया। इस भयानक रूप को देखकर शिव भाग चले। भागते हुए रूद्र को दसों दिशाओं में रोकने के लिए देवी ने अपनी अंगभूता दस देवियों को प्रकट किया। यही शक्तियां दस महाविद्याएं हैं। इनमें से पांचवी महाविद्या में मां छिन्नमस्तिका हैं।
देखें रजरप्पा मंदिर में मां छिन्नमस्तिका की आरती का विडियो