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जादुई खनक थी सुब्बुलक्ष्मी की आवाज में

शास्त्रीय संगीत की दुनिया में अपनी आवाज के दमखम से अलग पहचान बनाने वाली एम एस सुब्बुलक्ष्मी की जादुई प्रतिभा का अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके बारे में गांधी जी ने कहा था, किसी और...

जादुई खनक थी सुब्बुलक्ष्मी की आवाज में
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 14 Dec 2009 12:02 PM
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शास्त्रीय संगीत की दुनिया में अपनी आवाज के दमखम से अलग पहचान बनाने वाली एम एस सुब्बुलक्ष्मी की जादुई प्रतिभा का अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके बारे में गांधी जी ने कहा था, किसी और के गाने सुनने की बजाय सुब्बुलक्ष्मी की आवाज सुनना बेहतर है।

वह उच्च कोटि की गायिका थीं और उनकी गायकी को लोग भाव विभोर होकर सुनते थे। शास्त्रीय संगीत की दोनों विधाओं - हिन्दुस्तानी संगीत और कर्नाटक संगीत में वह निपुण थीं।

सुब्बुलक्ष्मी को कर्नाटक संगीत का पर्याय माना जाता है और भारत की वह ऐसी पहली गायिका थीं जिन्हें सर्वोच्च नागरिक अलंकरण भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनके गाये हुए गाने, खासकर भजन आज भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नहेरू ने उन्हें संगीत की रानी बताया तो वहीं स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने उन्हें तपस्विनी कहा।

सुब्बुलक्ष्मी ने न्यूयार्क और लंदन के रायल अल्बर्ट हाल समेत दुनिया के कई देशों में अपने कार्यक्रम किये, जिसे भारतीयों के साथ साथ विदेशी श्रोताओं ने भी खूब पंसद किया।

सुब्बुलक्ष्मी के बारे में कहा जाता है कि जो लोग उनकी भाषा नहीं समक्षते थे, वे भी उनकी गायकी सुनते थे। उनकी आवाज को परमात्मा की अभिव्यक्ति कहा जाता था और लोग प्रसन्नचित होकर उनका गायन सुनते थे।

उनके प्रशंसकों की फेहरिस्त में महात्मा गांधी और जवाहरलाल नहेरू सरीखे कई प्रख्यात लोग थे। उनके बारे में गांधी जी का कहना था, वह किसी और का गायन सुनने की बजाय सुब्बुलक्ष्मी की आवाज सुनना पसंद करेंगे।

गायन के अलावा उन्होंने फिल्म अदाकारा की भूमिका भी बखूबी निभाई। उनके द्वारा गाए गए मीरा के भजनों की तो बात ही कुछ और है।

सुब्बुलक्ष्मी का जन्म तमिलनाडु के मदुरै में 16 सितंबर, 1916 को हुआ था। संगीत की शिक्षा उन्हें अपने परिवार से मिली। उनका पूरा नाम मदुरै शन्मखवदिवु सुब्बुलक्ष्मी था। उनकी मातृभाषा कन्नड़ थी। उन्हें एम एस या एम एस एस नाम से भी जाना जाता है।

सुब्बुलक्ष्मी बचपन में ही कर्नाटक संगीत से जुड़ गयी थीं और उनका पहला एलबम महज दस साल की उम्र में निकला था। प्रसिद्ध संगीताचार्य सेम्मनगुडी श्रीनिवास अय्यर से संगीत की शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने पंडित नारायण राव से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली।

सुब्बुलक्ष्मी ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर अपने गायन का प्रदर्शन एक समारोह के दौरान किया। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए मद्रास संगीत अकादमी चली गयी, जहां सिर्फ 17 साल की उम्र में भव्य कार्यक्रम आयोजित किये।

उन्होंने कन्नड़ के अलावा तमिल, मलयालम, तेलगू, हिंदी, संस्कृत, बंगाली और गुजराती में भी गीत गाए। उन्होंने 1945 में भक्त मीरा नामक फिल्म में बेहतरीन भूमिका अदा की। उन्होंने मीरा भजन को अपने सुरों में पिरोया, जो आज तक लोगों द्वारा सुने जाते हैं।

1936 में वह स्वतंत्रता सेनानी सदाशिवम से मिलीं और 1940 में उनकी जीवन संगिनी बन गयीं। सदाशिवम के अपनी पहली पत्नी से चार बच्चों थे जिन्हें सुब्बुलक्ष्मी ने अपनी संतान की तरह पाला।

उन्हें 1954 में पद्म भूषण, 1956 में संगीत नाटक अकादमी सम्मान, 1974 में रैमन मैग्सेसे सम्मान, 1975 में पद्म विभूषण, 1988 में कैलाश सम्मान और 1998 में भारत रत्न समेत कई सम्मानों से नवाजा गया। कई विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद उपाधि से सम्मानित किया। 88 साल की उम्र में सुब्बलक्ष्मी 11 दिसंबर, 2004 को दुनिया को अलविदा कह गयीं।

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