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तेलंगाना की हद

इस दावे में कोई संदेह नहीं है कि आंध्र प्रदेश का तेलंगाना क्षेत्र बाकी दोनों हिस्सों आंध्र और रायलसीमा के मुकाबले सामाजिक और आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है, लेकिन झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे छोटे...

तेलंगाना की हद
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 09 Dec 2009 11:30 PM
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इस दावे में कोई संदेह नहीं है कि आंध्र प्रदेश का तेलंगाना क्षेत्र बाकी दोनों हिस्सों आंध्र और रायलसीमा के मुकाबले सामाजिक और आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है, लेकिन झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्यों के उदाहरण के बाद यह बात दावे के साथ नहीं कही जा सकती कि तेलंगाना को अलग राज्य बना देने से उसका समुचित विकास हो ही जाएगा।

इसलिए तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता के. चंद्रशेखर राव का इस बात के लिए सम्मान किया जाना चाहिए कि उन्होंने अपने आमरण अनशन के कठिन व्रत से पूरे देश का ध्यान तेलंगाना की उपेक्षा और उसके साथ होने वाली राजनीतिक धोखाधड़ी की तरफ खींच लिया है। पर राव को भी यह समझना चाहिए कि हाल में वहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री वाईएसआर की विमान हादसे में हुई मौत के बाद एक अस्थिर राजनीति के दौर से गुजर रहे राज्य को अराजकता में झोंक देने से उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा।

संवैधानिक रूप से नए राज्य के गठन के लिए पहले राज्य विधानसभा से प्रस्ताव पास होता है,  फिर उस पर संसद की मुहर लगती है, लेकिन कांग्रेस पार्टी के बहुमत वाली आंध्र प्रदेश की विधानसभा ऐसा प्रस्ताव पास करने को तैयार नहीं है। कांग्रेस ही क्यों ऐसा प्रस्ताव अगर वहां तेलुगू देशम की सरकार भी होती तो वह भी नहीं पास करती। इस स्थिति में तेलंगाना राज्य का जनांदोलन बड़ी राजनीतिक शक्तियों से टकरा रहा है और उसका आक्रोश घटने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है।

चंद्रशेखर राव की हालत बिगड़ने के साथ ही हैदराबाद के उस्मानिया और काकातिया विश्वविद्यालयों सहित इस इलाके के अन्य हिस्सों में बेरोजगार युवा सड़कों पर उतर आए हैं। इसमें पिछड़ी जाति की राजनीति के साथ अति वामपंथ का तत्व भी शामिल होता बताया जा रहा है। इससे आशंका यह भी बन रही है कि कहीं इस आंदोलन को काबू करने के दौरान 1969 जैसी हिंसक कार्रवाई न घटित हो जाए। दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी अलग तेलंगाना राज्य के परिणामों को लेकर पसोपेश में है, क्योंकि उस आधार पर आंध्र और रायलसीमा अलग राज्य की मांग कर सकते हैं। 

तब हैदराबाद को केंद्र शासित प्रदेश बनाना होगा। इतनी बड़ी उथल-पुथल के लिए न तो वहां की राज्य सरकार तैयार है न ही केद्र सरकार। फिर छोटे राज्यों के विकास का अनुभव अच्छा होने के बजाय अस्थिरता, अविकास और हिंसा की तमाम चुनौतियों से भरा रहा है। इसलिए स्वायत्त तेलंगाना परिषद के गठन के माध्यम से विकास से साथ-साथ क्षेत्रीय स्वाभिमान को भी संतुष्ट करने का प्रयास होना चाहिए।

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