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महात्मा गांधी सेतु की टॉल टैक्स वसूली की कहानी भी अजीब है। पिछली सरकार के समय निजी स्तर पर वसूली के लिए मारामारी होती थी और अब निजी वसूली करने को कोई तैयार नहीं है। पिछले तीन सालों में दर्जन से अधिक...

लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 11 Jul 2009 10:33 PM
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महात्मा गांधी सेतु की टॉल टैक्स वसूली की कहानी भी अजीब है। पिछली सरकार के समय निजी स्तर पर वसूली के लिए मारामारी होती थी और अब निजी वसूली करने को कोई तैयार नहीं है। पिछले तीन सालों में दर्जन से अधिक बार टेंडर हुआ पर सरकार के मानक पर टैक्स वसूली के लिए कोई तैयार नहीं हो रहा।

स्थिति यह है कि मजबूरी में राज्य सरकार पुल निर्माण निगम के मार्फत टॉल टैक्स वसूल रही है। इस बीच सरकार को दो बार कुछ दिनों के लिए टॉल वसूली स्थगित करनी पड़ी है। निजी एजेंसी से सेटेलमेंट नहीं होने पर विभागीय वसूली होती है जिसमें  राशि के बन्दरबाट में आसानी होती है। सरकारी अधिकारियों की पौ-बारह रहती है। सरकारी राजस्व के साथ ही अधिकारियों के झोले भी बड़े होते जाते हैं। विभागीय वसूली में सरकारी अधिकारी और कर्मचारी मालामाल होते रहे हैं।

नीतीश सरकार ने इसी खेल को बन्द करने के लिए नीतिगत निर्णय किया है कि टॉल टैक्स की विभागीय वसूली नहीं होगी। दूसरी तरफ जब तक निजी एजेंसी से टैक्स वसूलने के लिए 8.60 करोड़ रुपए से ऊपर पर सेटलमेंट नहीं हो जाता है, निजी हाथों में भी टैक्स वसूली नहीं सौंपी जाएगी। यही कारण है कि पिछले तीन साल से पुल निर्माण निगम टैक्स वसूल रहा है। हालांकि राज्य पुल निर्माण निगम के  पास इतने कार्य हैं कि वो भी टैक्स वसूलने से आनाकानी करता रहा है। अब तक पुल के  टैक्स से सरकार को 100 करोड़ की राशि मिल चुकी है।

 

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