बिंदास आर्थिक सव्रेक्षण
वित्तवर्ष 2008-09 का आर्थिक सव्रेक्षण जिस लहजे और तेवर के साथ पेश किया गया है, वह काफी आशाजनक, रोचक और चौंकाने वाला है। हमारे आर्थिक सर्वेक्षणों की इमेज यथास्थिति के आंकड़े दोहराने वाले ऐसे अकादमिक...
वित्तवर्ष 2008-09 का आर्थिक सव्रेक्षण जिस लहजे और तेवर के साथ पेश किया गया है, वह काफी आशाजनक, रोचक और चौंकाने वाला है। हमारे आर्थिक सर्वेक्षणों की इमेज यथास्थिति के आंकड़े दोहराने वाले ऐसे अकादमिक दस्तावेज की रही है, जिसे खुद वित्तमंत्री ही ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते। कैग की तरह एक ऐसी नखदंतविहीन एडवाइजरी कवायद, जिसमें निहायत कालातीत किस्म के आर्थिक विवेक वाले सुझाव दिए जते हैं और जिसकी नियति परिवार के आम बुजुर्गों की तरह अपनी नसीहतों को नजरंदाज होते देखना ही होती है। लेकिन गुरुवार को संसद में रखे गए दस्तावेज के लेखकों ने, न सिर्फ अल्पकालिक संदर्भो वाले नीतिगत मुद्दों पर दो टूक राय दी, बल्कि साफ-साफ चेतावनी भी दे दी कि अगर अर्थतंत्र को वापस आठ फीसदी विकास की राह पर मोड़ना है तो सुधारों को ईमानदारी से लागू कीजिए। कहा जाता है कि आर्थिक सर्वेक्षण में वह होता है जो होना चाहिए जबकि बजट में वह होता है जो हो सकता है। अपनी व्यावहारिकता पर संदेह करती इस धारणा को ध्वस्त करते हुए सर्वेक्षण ने बाकायदा मिसालों और आंकड़ों के साथ बताया है कि सुधारों के दूसरे चरण के कौन-कौन से अवयव किस सीमा तक लागू किए जा सकते हैं।
सर्वे में कह दिया गया है कि श्रम कानूनों की समीक्षा का वक्त आ गया, रिटेल और बीमा में भरपूर विदेशी निवेश को और नहीं टाला जा सकता, रक्षा उत्पादन में 49 फीसदी विदेशी पूंजी आने देनी होगी, कोयला उद्योग का निजीकरण करना होगा, चीनी, उर्वरक और दवा क्षेत्र को नियंत्रणों से मुक्ति दीजिए, सरकारी नवरत्नों-सफेद हाथियों की शेयरपूंजी के विनिवेश से 25 हजर करोड़ जुटाने होंगे और पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, खाद और अनाज की सब्सिडी के बिचौलियों के हाथों दुरुपयोग पर वक्रदृष्टि डालनी होगी! नेगेटिव मुद्रास्फीति पर इतराती यूपीए सरकार को उसने चेतावनी दी है कि सावधान, आने वाले महीनों में महंगाई फिर फन फैला सकती है और एफबीटी, एसटीटी, सेस-सरचार्ज जैसे अजीबो-गरीब टैक्सों पर पुनर्विचार नहीं किया तो बात बिगड़ जएगी। तीन दिन बाद बजट पेश करने जा रहे वित्तमंत्री को इतनी साफ नसीहतें पहले किस सर्वेक्षण में दी गईं, क्या याद आता है? सर्वेक्षण लेखकों का यह आत्मविश्वास, यह साफगोई उतनी ही शुभ है जितनी कि उनकी यह घोषणा कि मंदी का सबसे बुरा दौर बीत चुका है। अब देखना बस यह है कि शुक्रवार के रेल बजट में ममता दी और सोमवार के आम बजट में प्रणब बाबू इन नीतिवचनों का कितना मान रखते हैं।