किंगस्टन में रथ यात्रा!
गेलचंद की गाड़ी कुछ दिनों से उसे काफी परेशान कर रही थी। चलते-चलते वो हर थोड़ी दूर पर रुक जाती। इससे परेशान हो उसने सीट कवर बदलवा लिए। वो आश्वस्त था कि अब गाड़ी ठीक चलेगी। गाड़ी चलायी तो फिर वही...
गेलचंद की गाड़ी कुछ दिनों से उसे काफी परेशान कर रही थी। चलते-चलते वो हर थोड़ी दूर पर रुक जाती। इससे परेशान हो उसने सीट कवर बदलवा लिए। वो आश्वस्त था कि अब गाड़ी ठीक चलेगी। गाड़ी चलायी तो फिर वही समस्या। इस बार उसने स्टीरियो चेंज करवाया। वो खुश था कि अब तो गाड़ी सरपट दौड़ेगी। गाड़ी, चूंकि उसके किसी मूर्खतापूर्ण आत्म-विश्वास की गुलाम नहीं थी इसलिए नहीं दौड़ी! इस बार उसने गाड़ी को पेंट करवाया। मगर नतीजा वही।
एक-एक कर उसने परफ्यूम, फुट रेस्ट, सब बदल डाले मगर वो नहीं सुधरी। गेलचंद अब बेहद तनाव में था। इसी तनाव में वो एक मित्र के पास पहुंचा। समस्या सुनते ही मित्र चिल्लाया, अरे मूर्ख! तूने इंजन चेक किया। वो हैरानी से बोला ओफ फो! वो तो मैंने देखा ही नहीं।
मैं ये नहीं कहूंगा कि बीजेपी नेताओं की आई-क्यू गेलचंद से भी गई-गुजरी है। मगर हार पर जिस चिंतनीय किस्म का आत्मचिंतन उसने अब तक किया है, उससे पूरी पार्टी ही गेलचंद लग रही है। फर्क इतना है कि गेलचंद ने इंजन भी चेक नहीं किया और बीजेपी सब जांचने-परखने के बावजूद खराबी को खराबी मानने के लिए तैयार नहीं। वो अब भी इस मासूम आशावाद में जी रही है कि रथ यात्रा जैसे सीट कवर बदलू बंदोबस्त से गाड़ी सरपट दौड़ने लगेगी।
‘हिंदुत्व ही हमारी मूल विचारधारा है और हिंदुत्व के चलते हम नहीं हारे’, अगर यही उसकी डेढ़ हजार आत्मचिंतन बैठकों का हासिल है तो मित्रों, मैं यही कहूंगा कि वो लानत की नहीं, आपकी दुआ कि हकदार है। बीजेपी नेताओं से मैं गुजारिश करता हूं कि वो इस विचारधारा और आत्म-विश्वास को बनाए रखें। हो सकता है कि भारतीय जनता की अक्ल डेढ़ आना अभी बाकी हो, इसलिए जरूरी है कि तब तक इस महान विचार को भारत से बाहर आजमाएं।
पार्टी अगले चुनावों तक नेपाल, मॉरीशस, फिजी और कैरेबियाई देशों में चुनाव लड़े। यहां हिन्दू वोटरों की तादाद काफी है। कुछ-एक देशों में हिन्दू राष्ट्राध्यक्ष भी हैं। जमीन से जुड़े और पार्टी अध्यक्ष बनने के लिए जमीन-आसमान एक कर देने वाले दूसरी पंक्ति के नेताओं को अलग-अलग देशों की कमान सौंपी जाए।
जो चुनाव जिता लाए, उन्हें भारत में पार्टी अध्यक्ष बनाया जाए और जो हरवा दे, उन्हें आगे की राजनीति उसी देश में करने की हिदायत दी जाए। आखिर में आडवाणी साहब से पूछना चाहूंगा कि मन के गहरे अंधेरे कोने में अगर अब भी पीएम बनने की ख्वाहिश कुलांचें मार रही है तो वो भी एक-आध देश में हाथ आजमा सकते हैं। मगर शक ये है कि उन्हें जमैका या किंगस्टन में रथयात्रा की इजाजत मिलेगी या नहीं!