पुलिस का महत्व
पुलिस की रात-दिन की चौकसी से देश के बड़े अपराधी अमन-चैन से हैं। कोई उनकी तरफ आंख उठाकर देखने की जुर्रत तो करे! आम नागरिक तो मगन-मस्त है ही। जब अर्थव्यवस्था में ‘डीफ्लेशन’ है तो उसे क्या...
पुलिस की रात-दिन की चौकसी से देश के बड़े अपराधी अमन-चैन से हैं। कोई उनकी तरफ आंख उठाकर देखने की जुर्रत तो करे! आम नागरिक तो मगन-मस्त है ही। जब अर्थव्यवस्था में ‘डीफ्लेशन’ है तो उसे क्या दिक्कत है? कहते हैं कि कीमतें कम हैं। ईंट, सीमेंट, स्टील सस्ते उपलब्ध हैं। अफसोस, ईंट, सीमेंट हम खा क्यों नहीं सकते? कम्बख्त पेट का गुजरा आटा, दाल, सब्जी से ही क्यों होता है? उनकी कीमतें आसमान से हमें मुंह क्यों चिढ़ाती हैं?
पुलिस का हाल भी अपना ऐसा है। पुलिस ने इतने ‘एनकाउन्टर’ किए। किसी को पेड़ से बांधकर गोली मारी, किसी को माफी का वादा कर जंगल ले जकर। वर्दी की सहूलियत कोई मुफ्त में मिलती है क्या? लाखों का चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है, दजर्नों से पैरवी, तब एक सिपहिए का अवतार होता है। ऐसा बहादुर सिपाही जिन्दगी भर अपने चढ़ावे की रकम वसूलने की फिक्र करे कि हथियार चलाने की। इन कम्बख्त बदमुज्जनों को हया-शर्म तक नहीं है।
कल तक सांठ-गांठ, मिसकौट की। आज वाकई बागी हो गए। कोई हिम्मत तो देखे। वर्दी पर गोली चलाता है, वह भी अकेला। वह एक, सिपाहिए पांच सौ। यह तो विशुद्ध ‘रहमदिली’ है। इतनी वर्दियों ने एक को घेरा और पूरे दो दिनों का मौका दिया। गोलियां दागीं, हथगोले फेंके, पर सब बदमुज्जना को बचा कर। अहिंसक देश की अहिंसक पुलिस को हृदय-परिवर्तन में यकीन है। जोर-जबर्दस्ती, अव्वल तो वह करती ही नहीं है, और अगर जरूरत पड़ ही गई तो सिर्फ कमजोरों से।
फिर यह तो केवट था। राम जी की नैया पार लगाने वाला। किसे उम्मीद थी कि पुलिस को डुबोएगा। जब उसे अक्ल ही नहीं आई, तो वर्दी बेचारी के पास चारा ही क्या था? कोई सोचे। बागी ने आत्मसमर्पण तक नहीं किया, उल्टे आईजी, डीआईजी को भी निशाना बना डाला। न लिहाज, न अफसरों का इज्जत-सम्मान। इसे शर्तिया पता होगा कि यह ‘वर्दी-डाकू सहमति करार’ का कतई उल्लंघन है। दिखावे को चलाना दीगर है। पर जान लेने को गोली दागने का तो उसमें उल्लेख तक नहीं है।
पुलिस का सामाजिक क्षेत्र में भी अहम और महत्वपूर्ण योगदान है। शहरों की सड़कें कभी चमचमाएं, तो जरूर, इसके पीछे मुस्तैद भारतीय पुलिस है। मुख्यमंत्री के काफिले-कारवां की राह से, अवांछित गंदगी जसे पैदल-साइकिलों का स्कूटर पर चलते सामान्य लोगों को वह कहीं दूर ठेलते हैं। सड़क साफ हो जाती है। इधर पुलिस जनता को आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ा रही है। उसके पल्ले पड़ गया है कि पुलिस के बस का कुछ नहीं है। तभी वह खुद चोरों को दौड़ा कर पकड़ती और पीटती है। कौन जाने, कल नेता का नम्बर लगे, परसों रिश्वतखोर अफसर का। इस सामाजिक परिवर्तन के जिम्मेदार भी बहादुर वर्दी वाले ही हैं।