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कालसर्प योग से बचने के उपाय

राहु एवं केतु सदा वक्री (उल्टी चाल) रहते हैं। किसी भी व्यक्तिकी जन्मपत्री में जब सभी ग्रह राहु एवं केतु के बीच आ जाते हैं तो व्यक्ति कालसर्प योग से पीडि़तहो जाता है। दुर्घटना, बीमारी अपमान यह एक...

कालसर्प योग से बचने के उपाय
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 28 Jun 2009 03:13 PM
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राहु एवं केतु सदा वक्री (उल्टी चाल) रहते हैं। किसी भी व्यक्तिकी जन्मपत्री में जब सभी ग्रह राहु एवं केतु के बीच आ जाते हैं तो व्यक्ति कालसर्प योग से पीडि़तहो जाता है।

दुर्घटना, बीमारी अपमान
यह एक ऐसा योग है, जो व्यक्ति को तरह-तरह का दु:ख, आर्थिक कष्ट, परिवार के कलह, दुर्घटना, बीमारी, पति-पत्नी में अनबन, झगड़ा, तलाक एवं अपमान प्रदान करने वाला होता है। कालसर्प योग अनेक प्रकार के होते हैं, जिनका वर्णन यहां सम्भव नहीं है। यह योग जिस भाव में बनता है उस भाव को बुरी तरह खराब कर देता है। साथ ही कुण्डली के अन्य भावों ( घरों) को भी अपने कुप्रभाव में लेकर विभिन्न परेशानियों को प्रदान करता है।

लग्न, पंचम, नवम एवं तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में यदि राहु कन्या लग्न में होकर कालसर्प योग बनाता है तो व्यक्ति को सुख सुविधा प्रदान करता है।
यहां हम कालसर्प योग के दुष्प्रभाव से राहत पाने के उपाय एवं पूजा पाठ की चर्चा कर रहे हैं। इस योग से पीडि़त व्यक्ति जीवन पर्यन्त विभिन्न कष्टों को पाता है और जब राहु या केतु की कोई भी दशा या गोचर प्रभाव में रहता है तो व्यक्ित की बाधाएं एवं परेशानियां बढ़ जाती हैं।

तंत्रोक्त सात्विक पूजा से इस योग के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। ‘महानिर्वाण तंत्र’ में भगवान शंकर ने मां पार्वती से कहा है कि अगमोक्त विधि विधान (तंत्र) द्वारा ही दु:ख कष्ट से राहत एवं वांछित फल की प्राप्ति संभव एवं सरल है, श्रुति स्मृति इत्यादि से वांछित फल की प्राप्ति कठिन है। कालसर्प योग से पीडि़त व्यक्तियों के कष्ट निवारण एवं लाभ के के लिए निम्नलिखित उपाय बताए जा रहे हैं जिनके करने से किसी तरह का कोई नुकसान नहीं है और थोड़े समय में ही कुछ अनुकूलता परिलाक्षित होने लगती हैं :

उपाय
अपने दु:ख कष्ट से मुक्ति की प्रार्थना, संकल्प करते हुए मां दुर्गा की मूर्ति के सामने 108 लाल गुडम्हल का फूल एक-एक करके अर्पित करें एवं हर बार ‘ऊं ऐं ह्री क्लीं चामुण्डाये विच्चे’ बोलें एवं अंत में दुर्गा सप्तशती में वर्णित ‘अभ तंत्रोक्त देवी सूक्तम’ का पाठ करें और अन्त में गुलाब जामुन या चना एवं हलुवा का भोग लगाकर एक लाल चुनरी अर्पित करके मां की आरती कपूर से एवं घी की बत्ती बना कर करें।

यदि सम्भव हो तो 108 बहुत छोटे-छोटे चांदी के सर्प या फिर जितनी सामथ्र्य हो उतने सर्प मंदिर में शिवलिंग पर चढाएं उसके बाद दूध, शहद, भांग चढ़ाकर 108 बार ‘ऊं नम: शिवाय’ का जप करें फिर पंचामृत अर्पित करके आरती करें।

बटुक भैरव मंदिर में जाकर चमेली का तेल सिन्दूर, चांदी का तबक भैरव जी को अर्पित करें, इमरती का भोग लगाएं एवं थोड़ी सी मदिरा भगवान बटुक भैरव को अर्पित करें एवं निम्नलिखित ध्यान मंत्र को बोलकर ध्यान करें :-
ऊं कर कलित कपाल: कुण्डली दण्डपाणि
स्तुत तिमिर नीलो व्याल यज्ञोपवीती
क्रतु समय सपर्या विघ्नविच्छेद हेतु
र्जयति बटुकनाथ सिद्धि: साधकानाम।

इसके बाद 108 बार ‘ऊं बम बटुकाय नम:’ का जप करें, अन्त में आरती कर लें

ध्यान रखें
यह ध्यान रहे कि हर महीने में एक बार यह करना है और पहली बार जब उपरोक्त पूजा करें तो उपाय नं.1 किसी दुर्गाष्टमी या सर्वार्थ सिद्धि योग वाले दिन दूसरे उपाय एवं तीसरा उपाय महीने के किसी शिवरात्रि या भैरवाष्टमी के दिन करें। उपरोक्त उपायों में से कोई एक अपने सामथ्र्य एवं सुविधानुसार कर सकते हैं।


कालसर्प योग से पीडि़त व्यक्ति जीवन पर्यन्त विभिन्न कष्टों को पाता है और जब राहु या केतु की कोई भी दशा या गोचर प्रभाव में रहता है तो व्यक्ति की बाधाएं एवं परेशानियां बढ़ जाती हैं। तंत्रोक्त सात्विक पूजा से इस योग के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है कालसर्प योग से बचने के उपाय हैं।

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