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पहचान प्रणाली से बदल जाएगी देश की तस्वीरः नीलकेणी

केबिनेट रैंक के मंत्री के दर्जे के साथ अनूठी पहचान प्राधिकरण (यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथोरिटी) के प्रथम प्रमुख नियुक्त किए गए सुपर कंप्यूटर ब्रेन नंदन नीलकणी का मानना है कि हर नागरिक के अस्तित्व को...

पहचान प्रणाली से बदल जाएगी देश की तस्वीरः नीलकेणी
एजेंसीSun, 28 Jun 2009 03:23 PM
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केबिनेट रैंक के मंत्री के दर्जे के साथ अनूठी पहचान प्राधिकरण (यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथोरिटी) के प्रथम प्रमुख नियुक्त किए गए सुपर कंप्यूटर ब्रेन नंदन नीलकणी का मानना है कि हर नागरिक के अस्तित्व को मान्यता मिलने से सभी क्षेत्रों में देश की तस्वीर बदल जाएगी।

इन्फोसिस को छोड़कर इस महाप्रयास की कमान संभालने वाले नीलकेणी का कहना है कि हर नागरिक को मिलने वाली इस अनूठी पहचान से बैंकिंग प्रणाली के दायरे से बाहर खड़े अस्सी करोड़ से ज्यादा लोग बैंक व्यवस्था से जुड़ जाएंगे और सरकार एवं नागरिक के बीच सीधा वित्तीय सरोकार कायम किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि इसका सीधा असर सर्व समावेशी विकास की गति पर होगा और भारत की बचत दर पर भी इसका व्यापक असर होगा। हर नागरिक या संगठन के पास ऐसा वित्तीय खाता बन जाएगा जिसमें सरकार सीधे धन हस्तांतरित कर पाएगी।

नीलकेणी ने अपनी इस महत्वाकांक्षी परियोजना का खुलासा प्राधिकरण के औपचारिक गठन से पहले ही अपनी पुस्तक (इमेजिंग इंडिया) में कर दिया था। इस पुस्तक में उन्होंने यह भी समझया है कि हर नागरिक को यह अनूठी पहचान कैसे दी जाएगी और इस परियोजना पर किस तरह अमल किया जाएगा। उन्होंने लिखा है कि जनगणना के दौरान हर नागरिक को अनूठी पहचान संख्या देना वाकई बहुत कठिन काम है क्योंकि विभिन्न बस्तियों में गली-गली घूमकर नागरिकों के दरवाजे खटखटाने वाले जनगणना अधिकारियों के माध्यम से यह काम कराने में गलतियों की बहुत गुंजाइश रहेगी। इसके बजाए जब कोई नागरिक सरकार के पास अपने इस काम के लिए आए तो उसे यह अनूठी पहचान देना आसान होगा।

नीलकेणी का कहना है कि अमेररिका में सोशल सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन (एसएसए) ऐसी पहली संघीय नौकरशाही थी जिसने कंप्यूटरों का इस्तेमाल किया और अपने बीस करोड़ से ज्यादा नागरिकों की सामाजिक सुरक्षा संख्याओं की जटिल व्यवस्था को बेहद आसान बना दिया। इससे पहले वहां भी नागरिकों की सूचना के बारे में फर्श से लेकर अर्श तक फाइलों के अम्बार हुआ करते थे और सैकड़ों क्लर्क उनमें उलझे रहते थे लेकिन आईबीएम 705 कंप्यूटर ने इस पूरी व्यवस्था को बदल डाला। इसके बाद साठ और सत्तर के दशक में यूरोपीय नौकरशाही ने इसका अनुसरण किया। नौकरशाही, सामाजिक योजनाएं और उनके लाभार्थियों के खाते एकदम पारदर्शी हो गए।

नीलकेणी का कहना है कि मुङो लगता है कि प्रत्येक नागरिक के अस्तित्व को स्वीकार करने से सरकार खुद ही सेवाओं की गुणवत्ता सुधारने के लिए विवश होगी और नागरिकों को भी तुरंत ही सरकार तक बेहतर पहुंच मिल जाएगी। ऐसे में जो हक आपका है उस पर कोई और दावा नहीं कर पाएगा और आपका आर्थिक दर्जा भी छिपा नहीं रह पाएगा। भले ही आप बेहद निर्धन हों या अत्यधिक अमीर। इस मान्यता से अधिकारों, आपके जायज हकों और दायित्वों के बारे में जागरूकता पैदा होगी। इन मामलों में सरकार आपको या आप सरकार को गच्चा नहीं दे पाएंगे।

आईडी संख्या देने के तौर तरीकों के बारे में उन्होंने कहा कि जब भी कोई नागरिक अपनी पहचान के दस्तावेज जैसे पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस या बीपीएल कार्ड के लिए आएगा या वित्तीय संस्थाओं में आदान-प्रदान करेगा या टैक्स अदा करने जाएगा या कोई खाता खोलने के लिए बैंक जाएगा अथवा म्युचुअल फंड खरीदेगा तो उसे यह अनूठी पहचान दी जा सकती है। सरकार दूरसंचार कम्पनियों और वित्तीय सेवाओं को भी अपने नागरिकों को अनूठी पहचान देने का माध्यम बना सकती है। इन सभी रास्तों से नागरिकों का एक बड़ा तबका अनूठी पहचान के दायरे में आ जाएगा। पैन कार्ड में सभी टैक्स दाता आ जाएंगे, मतदाता पहचान पत्र से 18 साल से ऊपर के लोगों का रिकार्ड मिल जाएगा और जन्म प्रमाण पत्र से नवजात एवं बीपीएल कार्ड से गरीबों का आंकड़ा मिल जाएगा। इस तरह से बहुत जल्दी ही प्रत्येक नागरिक को अनूठी पहचान देने का काम हो सकेगा। उन्होंने कहा कि अगर इसके बाद भी जरूरी हुआ तो जनगणना को पूरक माध्यम के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

नीलकेणी ने कहा कि अनेक प्रकार की पहचान और अनूठी पहचान संख्या के अभाव ने अनेक विसंगतियों को जन्म दिया है। मिसाल के तौर पर एक अध्येता ने मुझे बताया कि कर्नाटक में चल रहे बीपीएल काडरें की संख्या राज्य की कुल आबादी से अधिक है।

उन्होंने कहा कि नागरिकों की राष्ट्रीय ग्रिड तैयार करने के पहले और महत्वपूर्ण कदम के तौर पर प्रत्येक नागरिक को अनूठी और सार्वभौमिक पहचान देने की आवश्यकता है। नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार करने उन्हें अनूठी आईडी देने और उन्हें राष्ट्र्रीय डाटाबेस जैसे पेन और पासपोर्ट आदि से जोड़ने से सार्वजनिक सेवाओं की बेहतरी पर दीर्घकालिक असर होगा और सेवाओं को सभी सही समूहों पर केन्द्रित किया जा सकेगा। नीलकेर्णी ने कहा कि प्रत्येक नागरिक को अनूठी पहचान मिलने से एक मौलिक अधिकार सुनिश्चित होगा और वह है देश में अस्तित्व को स्वीकारने का अधिकार जिसके अभाव में राष्ट्र के गरीब, अनाम और अनदेखे लोग रह जाते हैं और सरकारें भी व्यापक गरीबी और वंचितों पर पर्दा डाल देती है।

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