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दबाव में काम कर रहे इंजीनियर, प्रोन्नति बिना काम का जुनून खत्म

विश्वकर्मा और विकास की रीढ़ माने जाने वाले सूबे के इंजीनियर काफी दबाव में हैं। काम का दबाव, समय पर निर्माण पूरा कराने का दबाव, अपने से शक्तिशाली (ठेकेदारों) को दंडित करने का दबाव, जान बचाने का दबाव,...

दबाव में काम कर रहे इंजीनियर, प्रोन्नति बिना काम का जुनून खत्म
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 24 Jun 2009 08:49 PM
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विश्वकर्मा और विकास की रीढ़ माने जाने वाले सूबे के इंजीनियर काफी दबाव में हैं। काम का दबाव, समय पर निर्माण पूरा कराने का दबाव, अपने से शक्तिशाली (ठेकेदारों) को दंडित करने का दबाव, जान बचाने का दबाव, नौकरी खोने का दबाव और न जाने कई अन्य तरह के  दबाव।

तटबंध टूटा तो निलंबित, सड़क में दरार तो निलंबित, पुल धंसा तो बर्खास्त, नहर की नहीं हुई उड़ाही तो नपे, चापाकाल नहीं चला तो कार्रवाई, ग्रामीण सड़कों का काम धीमा तो  जिम्मेवार...आदि,आदि। कहीं भी कमी उजागर होते ही सीधे अभियंताओं पर दोष मढ़ कार्रवाई शुरू हो जाती है।

पर आखिर यह समस्या क्यों आई, काम क्यों नहीं हुआ, कार्यस्थल पर अभियंता क्यों नहीं गये, इसके वास्तविक समाधान का प्रयास नहीं होता है।  सूबे के प्रमुख कार्य विभागों में फिलहाल इंजीनियरों के 5217 पद रिक्त हैं। इंजीनियरों का आरोप है कि 16 वर्षो की सेवा के बाद एक आईएएस सचिव बन जाता है, पर 28 वर्षो से एक ही पद पर काम करने वाले अभियंताओं को प्रोन्नति नहीं मिलती।

नतीजा ऊपर के पद खाली रहते हैं। बेसा के महासचिव राजेश्वर मिश्रा एवं अभियंत्रण सेवा समन्वय समिति के अध्यक्ष आदित्य नारायण झा अनिल ने कहा कि नीतीश सरकार में भी वही तंत्र हावी है। राजद शासन काल में नौकरशाहों ने साजिश कर सभी विभागों के डीपीआर एवं योजना बनाने वाले अग्रिम योजना एवं अन्वेषण प्रभाग को धीरे-धीरे बन्द कर दिया या उन पदों पर अभियंताओं को नियुक्त ही नहीं किया ताकि वे डीपीआर के नाम पर निजी एजेंसियों को नियुक्त कर भारी कमाई कर सके।

अब भी वही हो रहा है। नीतीश सरकार ने विकास योजनाओं की घोषणाओं की झड़ी लगा दी है, पर  विकास किसके भरोसे होगा इस पर चिन्ता नहीं है। चाहे इंजीनियर कार्य स्थल पर प्रताड़ित होते रहे या मारे जाएं, सरकार संवेदनशील नहीं है।

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