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एक अनजन शहर में अपनों से कुछ बातें

रूस की यूराल पहाड़ियों के बीच शानदार शहर है येकेतेरिनबर्ग। रूसी क्रांति के बाद से 1991 तक इसका नाम था, स्वेद्लोवस्क। बोल्शेविक नेता याकोव स्वेद्लोव के नाम पर। रूस अपनी बोल्शेविक क्रांति को याद रखना...

एक अनजन शहर में अपनों से कुछ बातें
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 14 Jun 2009 09:11 PM
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रूस की यूराल पहाड़ियों के बीच शानदार शहर है येकेतेरिनबर्ग। रूसी क्रांति के बाद से 1991 तक इसका नाम था, स्वेद्लोवस्क। बोल्शेविक नेता याकोव स्वेद्लोव के नाम पर। रूस अपनी बोल्शेविक क्रांति को याद रखना नहीं चाहता। बदले नाम और बदली व्यवस्था नए रूस की पहचान हैं।

इस हफ्ते रूस के इस अनजन पर पाचवें सबसे बड़े शहर की कई जगह चर्चा होगी। खासकर भारत और चीन में। पाकिस्तान और अमेरिका में भी। 15 और 16 जून को यहा शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनिोशन का और 16 जून को ब्रिक देशों (ब्राजील, रूस, भारत और चीन) का शिखर सम्मेलन हो रहा है।

दोनों सम्मेलन दुनिया की आर्थिक और भौतिक सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं। शंघाई पहल में भारत और पाकिस्तान ऑब्जर्वर देश हैं। ईरान भी एक ऑब्जर्वर है। मुख्य हैं रूस-चीन और मध्य एशिया के देश। यह इलाका आने वाले वक्त में आर्थिक विकास की धुरी बनेगा। फिलहाल यह आतंकी गतिविधियों का केन्द्र भी है। अलकायदा का असर मध्य एशिया और पूर्वी चीन तक है।

जिस तरह के तालिबानी हमले पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर इलाके में हो रहे हैं, तकरीबन वसे ही उज्बेकिस्तान की फरगाना घाटी और पूर्वी चीन के उईगुर इलाके में भी होने लगे हैं। आर्थिक गतिविधियों के लिए स्थायित्व की जरूरत होती है। इस इलाके में शांति की दरकार है। रूसी अर्थव्यवस्था को हिन्द महासागर के गर्म पानी से जोड़ने के वास्ते मध्य और दक्षिण एशिया में स्थिरता की जरूरत है। चीन की योजना है कि सन् 2020 तक शंघाई इस इलाके में हांगकांग की जगह ले ले। उसके लिए शंघाई पहल महत्वाकांक्षी है।

येकेतेरिनबर्ग में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से मुलाकात होगी। पिछले सात महीने से दोनों देशों के बीच लुकाछिपी के रिश्ते चल रहे हैं। भारत और पाकिस्तान की दो समस्याएं हैं। एक आर्थिक विकास और दूसरी एक-दूसरे से रिश्ते। और दोनों समस्याएं एक-दूसरे से जुड़ी हैं।

रिश्तों को सामान्य बनाए बगैर इस इलाके का विकास आसान नहीं है। और विकास के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है एक-दूसरे के प्रति अविश्वास। 26 नवम्बर को मुम्बई में हुए हमलों के आर्थिक और सामरिक दोनों निहितार्थ थे। तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था लगातार असुरक्षा के माहौल में नहीं रह सकती। पाकिस्तान की राजनीति भी लम्बे समय तक भारत विरोध की ऑक्सीजन के सहारे जीवित नहीं रहेगी। मनमोहन सिंह की नई सरकार के विदेश मंत्रालय को आर्थिक रिश्तों और सुरक्षा माहौल को बेहतर बनाने के दो काम मिले हैं। विदेश मंत्रालय सिर्फ सजवटी नहीं रह गया है। 

येकातेरिम्बर्ग में मनमोहन सिंह की चीनी राष्ट्रपति हू जिन्ताओ, रूस के दिमित्री मेद्वेदेव और ब्राजील के लुइस इनासियो लूला डासिल्वा से मुलाकात होगी। राष्ट्रपति जरदारी से औपचारिक या अनौपचारिक बात सम्भव है। अमेरिकी प्रतिनिधि भी वहां मौजूद हैं। दोनों सम्मेलनों में आर्थिक सहयोग के साथ-साथ सुरक्षा, खासकर अफगानिस्तान के हालात पर भी बातचीत होगी।

शंघाई पहल में ईरान भी एक ऑब्जर्वर है। उसकी उपस्थिति भी महत्वपूर्ण है। राष्ट्रपति ओबामा के काहिरा आह्वान को मुसलमान देशों में किस अर्थ में लिया गया, इसपर विश्लेषण चल ही रहे हैं, पर इसमें दो राय नहीं कि अमेरिका और ईरान के बीच किसी न किसी स्तर पर संवाद कायम हो गया है। अल कायदा से निपटने और अफगानिस्तान में हालात सुधारने में ईरान की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।

पश्चिमी देशों में दक्षिण एशिया को लेकर दो तरह के कयास हैं। एक, क्या भारत का हाथी नाचेगा और दूसरे, क्या पाकिस्तान फेल्ड स्टेट है? इस हफ्ते के संकेतक बता रहे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है। ऐसा वश्विक व्यवस्था में सुधार की वजह से नहीं, भारत की अंदरूनी ताकत की वजह से है। भारत ही नहीं ब्राजील, रूस और चीन ऐसे देश हैं।

पाकिस्तान एक नजर में फेल्ड स्टेट लगता है, पर वह ऐसा नहीं है। वहा की सिविल सोसायटी हाशिए पर नहीं है, बल्कि मुख्यधारा में है। वर्ना इन दिनों पश्चिमोत्तर में जो फौजी कार्रवाई चल रही है, वह सम्भव नहीं थी। पाकिस्तानी तालिबान भारत के नक्सलियों जसे हैं। दोनों जगह  आधुनिक राजव्यवस्था अनुपस्थित है। लगभग मध्य युग में रह रहे समाज का आधुनिकीकरण राजव्यवस्था नहीं कर पाई। उसके नाम पर जो साधन दिए गए, उन्हें सरकारी अमले का भ्रष्टाचार खा गया। सरहद के दोनों ओर ऐसा हुआ।

भारत ने समस्याओं के समाधान का जो लोकतांत्रिक रास्ता पकड़ा है, वह देर से ही सही, पर परिणाम देगा। और पाकिस्तानी समाज इसी रास्ते पर जएगा। पाकिस्तान के लोग हमसे अलग ढंग से नहीं सोचते। पर पाकिस्तान में एक तबका ऐसा है, जो यह मानता है कि हम भारत जसे नहीं हैं, तभी तो पाकिस्तान हैं। भारत जसा मान लेना उन्हें पाकिस्तान की मूल अवधारणा-विरोधी लगता है। वे हर बात में पाकिस्तान को अलग साबित करना चाहते हैं। पर खेल के मैदान से लेकर खान-पान तक, फिल्मों से लेकर मीडिया की भूमिका तक हर चीज में आपको समानता नजर आएगी। जबान तो हम एक ही बोलते हैं।

बहरहाल, येकेतेरिनबर्ग में भारत-पाकिस्तान बातचीत पर हमारी निगाहें रहेंगी। ब्रिक शिखर सम्मेलन में हम अपनी आर्थिक ताकत को भी देख सकेंगे। ब्रिक मूलत: उदीयमान देश हैं, जो आने वाले वक्त में अपनी भूमिका निभाएंगे। कुछ लोग शीतयुद्ध की तर्ज पर उम्मीद करते हैं कि ब्रिक किसी नए ध्रुव के रूप में उभरेगा। ऐसा नहीं हो पाएगा। जी-7 अमेरिकी-यूरोपीय गठबंधन है।

उसके समांतर एक नया मंच तो यह बन ही गया है। किसी गठबंधन की ताकत इस बात से पता लगती है कि वह स्वतंत्र निर्णय किस तरह ले पाता है। हाल में ब्रिक देशों ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में अपनी जिम्मेदारी को बढ़ाकर अपनी स्वतंत्र हैसियत को साबित किया है। चारों देशों के पास इस वक्त डॉलर का अच्छा भंडार है। अंतरराष्ट्रीय वित्त व्यवस्था को बचाने में ये देश महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहे हैं।

एक दशक पहले हम इसकी कल्पना नहीं करते थे। भारत और ब्राजील के रिश्ते नए ढंग से परिभाषित हुए हैं। दोनों देश आर्थिक सहयोग के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भागीदार की भूमिका निभा रहे हैं। राष्ट्रपति लूला की पृष्ठभूमि कट्टर वामपंथ की थी। उन्होंने समय रहते अपने वचारिक आधार को बदला। वेनेजुएला के ह्यूगो शावेज की राह पर नहीं गए। कुछ साल पहले तक उदीयमान देशों के गठबंधन इतने महत्वपूर्ण नहीं होते थे कि अमेरिका और यूरोप के देश उन्हें आदर देते। येकेतेरिनबर्ग जसा अनजना शहर भी महत्वपूर्ण हो सकता है। बशर्ते वहा दौर की सच्चाइया जमा हों।

pjoshi@ hindustantimes. com

लेखक ‘हिन्दुस्तान’ में दिल्ली संस्करण के वरिष्ठ स्थानीय संपादक हैं

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