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हिमालय के पिघलते ग्लेशियरों से होगा प्रवास

जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ग्लेशियर जिस तेजी से पिघल रहे हैं उसकी वजह से भारत में बड़े पैमाने पर मानवीय प्रवास होगा क्योंकि देश की कई नदियों में पानी हिमालयी ग्लेशियरों से आता है। यह...

हिमालय के पिघलते ग्लेशियरों से होगा प्रवास
एजेंसीWed, 10 Jun 2009 12:42 PM
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जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ग्लेशियर जिस तेजी से पिघल रहे हैं उसकी वजह से भारत में बड़े पैमाने पर मानवीय प्रवास होगा क्योंकि देश की कई नदियों में पानी हिमालयी ग्लेशियरों से आता है।

यह जनकारी यहां जारी एक रिपोर्ट में दी गई है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वर्ष 2050 तक ग्लेशियरों के पिघलने से भारत, चीन, पाकिस्तान और अन्य एशियाई देशों में आबादी का वह निर्धन तबका प्रभावित होगा जो प्रमुख एवं सहायक नदियों पर निर्भर है।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है हिन्दुओं के लिए गंगा एक पवित्र नदी है और वह उसे गंगा मां कहते हैं, उसे जीवनदायिनी मानते हैं। नदियों में परिवर्तन और उन पर आजीविका के लिए निर्भरता का असर अर्थव्यवस्था, संस्कृति और भौगोलिक प्रभाव पर पड़ सकता है।

जर्मनी के बान में जारी रिपोर्ट इन सर्च आफ शेल्टर - मैपिंग द इफैक्टस आफ क्लाइमेट चेंज आन हयूमन मिटिगेशन एंड डिस्प्लेसमेंट- में कहा गया है कि ग्लेशियरों का पिघलना जारी है और इसके कारण पहले बाढ़ आएगी और फिर लंबे समय तक पानी की आपूर्ति घट जएगी। निश्चित रूप से इससे एशिया में सिंचित कृषि भूमि का बड़ा हिस्सा तबाह हो जएगा।
   

गंगा, ब्रहमपुत्र, इरावदी, सालवीन, मेकांग, यांगत्जे और पीली नदी के बेसिनों में पानी ग्लेशियरों से ही पहुंचता है। इन नदियों पर भारत, पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश और अन्य पड़ोसी देशों की 1.4 अरब से अधिक आबादी आजीविका के लिए निर्भर है।
  

अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि यह रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन और प्रवास के पहले वैश्विक सर्वे पर आधारित है।  यह रिपोर्ट कोलंबिया विश्वविद्यालय के सेंटर फार इंटरनेशनल अर्थ साइंस इन्फार्मेशन नेटवर्क (सीआईईएसआईएन), यूनाइटेड नेशन्स यूनिवर्सिटी और सीएआरई इंटरनेशनल ने तैयार की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पारिस्थितिकी आधारित अर्थव्यवस्था का चक्र टूटने से कृषि, मत्स्याखेट और पशुओं के चारे की समस्या होगी। इसका नतीज प्रवास के तौर पर सामने आएगा।
   

रिपोर्ट के सह लेखक एलेग्जेंडर डी शेरबिनाइन ने कहा जलवायु से हमारा दैनिक जीवन जुड़ा है। यह रिपोर्ट खतरे की चेतावनी देती है। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं जिसे देखते हुए पानी के संग्रह के लिए सैकड़ों बांध बनाने होंगे क्योंकि हिमालय से पानी की आपूर्ति कम हो जाएगी। लेकिन इन बांधों का नदियों, उसके बहाव और डेल्टाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जिससे इन क्षेत्रों से विस्थापन होगा।
  

गंगा और उसकी सहायक नदियों से 1.79 करोड़ हैक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई होती है। सिंधु और उसकी सहायक नदियां 1.62 करोड़ हैक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई करती हैं और इस क्षेत्र में पाकिस्तान की 90 फीसदी कृषि भूमि आती है।

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