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लीक से हटकर दो करियर एनीमेशन और क्लीनिकल रिसर्च

यूं तो युवाओं के लिए आकर्षक और उज्ज्वल भविष्य की राह पर बढ़ने के लिहाज से कई क्षेत्र हैं। लेकिन आज हम उनके लिए दो ऐसे क्षेत्रों के बारे में खास जानकारी दे रहे हैं जो लीक से हटकर तो हैं ही, साथ ही...

लीक से हटकर दो करियर एनीमेशन और क्लीनिकल रिसर्च
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 02 Jun 2009 12:40 PM
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यूं तो युवाओं के लिए आकर्षक और उज्ज्वल भविष्य की राह पर बढ़ने के लिहाज से कई क्षेत्र हैं। लेकिन आज हम उनके लिए दो ऐसे क्षेत्रों के बारे में खास जानकारी दे रहे हैं जो लीक से हटकर तो हैं ही, साथ ही उनमें बेहतर रोजगार की संभावनाएं भी कम नहीं हैं।

एनीमेशन

आंकड़ों की जुबानी विशेषज्ञ मानते हैं कि ‘आगामी दस वर्षो में भारत में एनीमेशन का काम करीब 200 गुना बढ़ेगा और आउटसोर्सिग और होम प्रोडक्शन इस इंडस्ट्री को और बढ़ावा देंगी। नास्कॉम का कहना है कि 2010 तक गेमिंग इंडस्ट्री के 424 मिलियन डॉलर के होने का अनुमान है। फिक्की और केपीएमजी की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय एनिमेशन बाजर 1,740 करोड़ रुपए का हो जएगा और 2013 तक 3,900 करोड़ रुपए का कारोबार हो जएगा।

कैसे लोगों की दरकार अगर आप हमेशा कुछ रचनात्मक और नया करना चाहते हैं, तो एनीमेशन इस लक्ष्य के लिए बिल्कुल उचित प्लेटफॉर्म है। इस क्षेत्र में प्रतिदिन नई चुनौतियां मिलती हैं। यह दोहराऊ काम नहीं है। आपको लगातार नवीन सोच रखनी होती है। हालांकि पहले इस क्षेत्र का दायरा काफी सीमित था, लेकिन अब रोज ही नए संस्थान खुल रहे हैं और लोगों के पास कई विकल्प हैं। उनके अनुसार इस क्षेत्र में प्रशिक्षित कर्मियों की तादाद कम है और यह कमी दिनोंदिन बढ़ती ज रही है। इस क्षेत्र में रचनात्मकता और धर्य ही सफलता की पहली शर्त हैं।

कहां है मौके प्रोफेशनल योग्यता वाले एनीमेटर को टीवी चैनलों और एनीमेशन प्रोडक्शन हाउस में मौके मिलते हैं। इसके अतिरिक्त वह फ्रीलांस एनीमेटर के तौर पर कार्य कर सकता है या अपनी एनीमेशन फिल्म भी बना सकता है। एड एजेंसियां, टीवी चैनल और इंडीपेंडेंट फिल्मकार ही उसके प्रमुख क्लाइंट होते हैं। आप इस क्षेत्र में टू डी और थ्री डी मॉडलर, स्पेशल एफएक्स क्रिएटर, एनिमेटर, कैरेक्टर डिजइनर, गेम्स डिजइनर और इंटरएक्शन डिजइनर के तौर पर अपना करियर संवार सकते है।

क्या है जरूरी

एनीमेशन की दुनिया में सफलता के लिए बदलाव पर नजर रखनी चाहिए, धर्य के साथ फिल्म और एनीमेशन के बुनियादी उसूलों को समझने की दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए, कार्य को बेहतरी के लिए कई बार काम को करने की इच्छा, कंप्यूटर के सामने दिनभर बैठने को तैयार होना होगा, कार्य और बाहर डेस्क रिसर्च काबलियत, जनजीवन के बारे में छोटी-बड़ी परिकल्पनाओं और मौलिक कल्पनाशक्ति होनी चाहिए।

सिर्फ डिग्री ही काफी नहीं

इस इंडस्ट्री में प्रवेश के लिए विश्वविद्यालय की डिग्री की आवश्यकता नहीं है, लेकिन आमतौर पर 12वीं कक्षा या उसके समांतर योग्यता काफी होती है। किसी भी विषय के स्नातक हो सकते हैं, लेकिन कला, फोटोग्राफी, फिल्म निर्माण, निर्देशन, ड्रॉइंग, स्केचिंग, वास्तु, कुम्हारी कला या कठपुतली की पृष्ठभूमि वालों को भी कुछ स्टूडियो वाले खोजते हैं। इंदिरा गांधी नेशनल यूनिवíसटी और माया एकेडमी ऑफ एडवांस सिनेमेटिक्स ने साथ मिलकर थ्रीडी एनिमेशन और विजुअल इफेक्ट में फुल टाइम कोर्स शुरू किया है।

प्रशिक्षण

व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल, गोरेगांव (पूर्व), www.whistlingwoods.net
माया एकेडमी ऑफ एडवांस्ड सिनेमेटिक्स, www.maacindia.com
ग्राफिटी स्कूल ऑफ एनीमेशन, माहिम,
नेशनल इंस्टीटच्यूट ऑफ डिजइन,

कमी नहीं अवसरों की

यदि आप में कौशल है, तो आपको दुनिया में कहीं भी नौकरी मिल सकती है। भारतीय एनीमेटर्स को हॉलीवुड के एनीमेशन स्टूडियो, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में हाथों-हाथ लिया गया है। उदाहरण के तौर पर, हाल तक हॉलीवुड के पिक्सार स्टूडियो के तकनीकी निदेशक एक भारतीय थे। रोजगार के अवसर नेटवर्किग के जरिए, एनीमेशन समारोहों और वेबसाइट्स पर खोजे ज सकते हैं।

इंडस्ट्री के फायदे

आप कुछ ही वर्षो में प्रतिमाह एक लाख रुपए से अधिक कमा सकते हैं। इसके अलावा यह एक ऐसा करियर है जिसे आप ताउम्र थामे रह सकते हैं। लोगों को उनके रचनात्मक पक्ष को दिखाने का पूरा मौका इस क्षेत्र में है।

क्लीनिकल रिसर्च में भी मौके

क्लीनिकल रिसर्च में किसी मेडिकल उत्पाद के फायदे, नुकसान, जोखिम, किस सीमा तक प्रभावशीलता का वज्ञानिक अध्ययन किया जता है। मोटे तौर पर कहा जए, तो किसी दवाई को बाजर में लांच करने से पहले उसका वज्ञानिक अध्ययन क्लीनिकल रिसर्च के अंतर्गत ही आता है। क्लीनिकल शोधकर्ताओं रोग के कारण और रोग के बढ़ने की प्रक्रिया, रोगी का बेहतर इलाज कैसे हो सकता है, इसका आकलन करना के बारे में भी जनकारी दी जती है।  सामान्यतः क्लनिकल रिसर्च की प्रक्रिया चार चरणों में पूरी होती है।

क्या कहते हैं आंकड़े : मैकेंजी एंड कापरेरेशन की रिपोर्ट के अनुसार 2013 में भारत में प्रोफेशनल्स की मांग 10,000 से बढ़कर 50,000 हो जएगी। इससे बायोसाइंस स्नातकों और लाइफ साइंस स्नातकों के लिए अपार अवसर पैदा होंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि 2010 तक इंडस्ट्री का टर्नओवर 1 बिलियन डॉलर से बढ़कर 5 बिलियन डॉलर हो जएगा।

संभावनाओं की कमी नहीं  कई फॉर्मा और बायोटेक कंपनियां रिसर्च और डेवलपमेंट के क्षेत्र में तेजी से प्रवेश कर रही हैं। ऐसे में क्लीनिकल रिसर्च में प्रशिक्षित लोगों के लिए संभावनाओं की कमी नहीं है। इंडस्ट्री को क्वालिटी एश्यूरेंस, क्वालिटी कंट्रोल, बिजनेस डेवलपमेंट, क्‍लीनिकल ऑपरेशन, मेडिकल राइटिंग, बॉयोस्टेस्टिक्स, डाटा मैनेजमेंट और रेगुलेटरी अफेयर्स से जुड़े प्रशिक्षित लोगों की काफी दरकार है। चूंकि फॉर्मा उद्योग तेजी से बढ़ता हुआ क्षेत्र है, इसलिए इसमें प्रशिक्षित मैनेजर स्किल प्रोफेशनल की काफी जरूरत है। एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने के लिए कंपनियां वाजिब कीमतों में अपने उत्पाद बाजर में उतार रही है। इसके लिए क्लीनिकल रिसर्च, रेगुलेटरी अफेयर्स, बायोमैट्रिक्स, मेडिकल अफेयर्स, क्वालिटी एश्यूरेंस और फॉर्मेकोविजिलेंस में विशेषज्ञता की जरूरत पड़ती है। इस इंडस्ट्री में आपके पास मौकों की कमी नहीं है।

कई कंपनियां हैं बाजर में : शिपला, रैनबेक्सी, फाइजर, जोनसन एंड जोनसन, असेंचर, एक्सेल लाइफ इंश्योरेंस, पैनेसिया बायोटेक, जुबलिएंट, परसिस्टेंट जसी बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में मौजूद हैं। एमबीए फॉर्मा उद्योग विशेष आधारित कोर्स है। इसमें फॉर्मास्यूटिकल मैनेजमेंट प्रोफेशनल शामिल हैं।

कोर्स इस इंडस्ट्री में प्रवेश के लिए आपके पास बीएससी डिग्री होनी चाहिए। मुख्यतः कोर्स में दाखिले के लिए स्नातक स्तर पर आपके पास फॉर्मेसी, मेडिसन, लाइफ साइंस और बायोसाइंस विषय होने चाहिए। क्लीनिकल रिसर्च से जुड़े कई डिप्लोमा कोर्स विभिन्न संस्थानों द्वारा कराए जते हैं। इनमें पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन क्लीनिकल रिसर्च, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन क्लीनिकल डाटा मैनेजमेंट, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन फॉर्मेकोविजिलेंस कर सकते हैं। सामान्यत: इन कोर्सो की अवधि एक वर्ष की होती है। कोर्स को करने के बाद आपकी  क्‍लीनिकल रिसर्च एसोसिएट, ड्रग डेवलपमेंट एसोसिएट, क्वालिटी एश्योरेंस, क्‍लनिकल डाटा मैनेजर जसे पदों पर नियुक्ति होती है।

संस्थान

इंस्टीटच्यूट ऑफ क्लीनिकल रिसर्च, नई दिल्ली
क्लीनिकल रिसर्च एंड क्लीनिकल डाटा मैनेजमेंट, पूणो
इंस्टीटच्यूट ऑफ क्लीनिकल रिसर्च इंडिया, देहरादून
मनिपाल विश्वविद्यालय, बैंगलुरू
अनुराग मिश्र

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