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नए नेपाल का पहला राष्ट्रपति कॉमरेड प्रचंड!

इन दिनों नेपाल मंेबदलाव की बयार बहुत तेजी से बह रही है। ताजा खबर है कि देश की सवर्ोच्च वैधानिक कुर्सी पर माआेवादी नेता प्रचंड को बैठाने की मांग उठने लगी है। इस साल 10 अप्रैल को देश में होने वाले...

 नए नेपाल का पहला राष्ट्रपति कॉमरेड प्रचंड!
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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इन दिनों नेपाल मंेबदलाव की बयार बहुत तेजी से बह रही है। ताजा खबर है कि देश की सवर्ोच्च वैधानिक कुर्सी पर माआेवादी नेता प्रचंड को बैठाने की मांग उठने लगी है। इस साल 10 अप्रैल को देश में होने वाले चुनावों के मद्देनजर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माआेवादी) ने ‘नये नेपाल का पहला राष्ट्रपति कॉमरेड प्रचंड’ का नारा दिया है। मतलब साफ है कि हिमालय के अंचल में बसे इस देश की भावी तसवीर चाहे जैसी हो, लेकिन इसमें उसकी पुरानी ‘रुढ़ियां’ निश्चय ही नजर नहीं आएंगी। माआेवादी पार्टी ने अपने एक अन्य नारे में इसका स्पष्ट संकेत दिया है। वह नारा है, ‘आमूल परिवर्तन और स्थायी शांति के लिए माआेवादियों को विजयी बनाएं’। क म्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माआेवादी) अप्रैल के चुनावों में भाग ले रही है। पार्टी के शीर्षस्थ नेताआें की हाल में हुई एक बैठक में ये नारे तय किए गए। यह बैठक गत मंगलवार को समाप्त हुई थी।मौजूदा समय में सत्ता के शिखर पद के दावेदार बन चुके 53 वर्षीय प्रचंड लगभग तीन दशकों में फैले अपने राजनीतिक जीवन में कानून का उल्लंघन करने के आरोपी रहे हैं और बारह साल से अधिक उन्होंने भूमिगत रहते हुए गुजारे हैं। इस ‘खतरनाक’ माआेवादी के सिर पर ईनाम भी घोषित था। लेकिन आज हालात बदल चुके हैं और प्रचंड देश के पहले राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दावेदारी को लेकर शीघ्र ही मैदान में होंगे। माआेवादियों का यह कदम प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला और उनकी नेपाली कांग्रेस पार्टी के लिए झटका साबित होगा। राजा ज्ञानेंद्र की सरकार के अप्रैल 2006 में सत्ताच्युत होने के बाद कोइराला प्रधानमंत्री बने थे। उस समय कोई चुनाव नहीं हुआ था। उन्हें माआेवादियों ने इस रणनीति के तहत समर्थन दिया था कि वह राजतंत्र को समाप्त करने और नेपाल को गणतंत्र घोषित करने का समर्थन करेंगे और माआेवादी उनका राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में समर्थन करेंगे। लेकिन प्रचंड का नाम लेकर माआेवादियों ने कोइराला की राह मुश्किल कर दी है। 84 वर्षीय कोइराला की गिरती सेहत भी उनकी आकांक्षा की राह का रोड़ा बन रहा है। कोइराला की अपनी पार्टी में राजतंत्रवादियों और लोकतंत्रवादियों के बीच खाई बढ़ती जा रही है, जबकि माआेवादियों ने कहा है कि वह चुनाव में बहुमत हासिल करेंगे।

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