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स्वीडन की पुरस्कार ज्यूरी में सहरसा का छोरा

बंधुआ मजदूरी की बेड़ियों से आजाद कराया गया सहरसा जिले का राकेश आज भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए स्वीडन जा रहा है। उम्र महा 13 साल लेकिन वह स्वीडन में आयोजित होने वाले विश्व बाल पुरस्कार वितरण...

 स्वीडन की पुरस्कार ज्यूरी में सहरसा का छोरा
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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बंधुआ मजदूरी की बेड़ियों से आजाद कराया गया सहरसा जिले का राकेश आज भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए स्वीडन जा रहा है। उम्र महा 13 साल लेकिन वह स्वीडन में आयोजित होने वाले विश्व बाल पुरस्कार वितरण समारोह में बतौर ज्यूरी के रूप में हिस्सा लेगा। इस जुझारू बच्चे की दास्तान, हिम्मत और उसकी मेधा को देखते हुए उसे पिछले साल बच्चों के अधिकारों के लिए दिए जाने वाले विश्व बाल पुरस्कार की ज्यूरी का सदस्य बनाया गया था। ज्यूरी सदस्य बच्च का कार्यकाल पांच साल का होता है।ड्ढr ड्ढr वह गुरुवार की रात स्वीडन के लिए रवाना हो जाएगा। राकेश को छह साल की उम्र में एक दलाल ने मिठाई में बेहोशी की दवा खिला दी और उसे पंजाब ले जाकर बेच दिया। वहां इसे सुबह पांच बजे से रात 10 बजे तक काम करना पड़ता था। राकेश को मवेशियों के साथ सुलाया जाता था। सर्द रातों में कम्बल की जगह शराब मिलती थी। राकेश के पिता को हर बार बताया जाता कि राकेश मर चुका है लकिन उसके पिता ने हार नही मानी और छह साल तक उसे ढूंढ़ता रहा । दूसरी तरफ राकेश छह साल तक बंधुआ मजदूरों की तरह हर दुख-दर्द झलकर इसी आस में जिन्दा रहा कि किसी दिन उसका पिता आयेगा और उसे इस नारकीय जीवन से मुक्ित दिलायेगा।ड्ढr ड्ढr अन्त में राकेश का पिता बचपन बचाओ आन्दोलन के पास शिकायत लेकर आया और अप्रैल 2006 को अमृतसर में की गई छापामार कार्रवाई में राकेश को छुड़ाया गया। आज राकेश बचपन बचाओ आन्दोलन की ओर से विराटनगर में संचालित बाल आश्रम में रहता है। वह उच्च विद्यालय सोठाना, विराटनगर की कक्षा 4 का मेधावी छात्र है। वह बच्चों के अधिकारों की रक्षा की एक बुलंद आवाज है। राकेश बाल मित्र ग्राम में जाकर लोगों को शिक्षा का महत्व समझाता है एवं बच्चों को उनके अधिकार दिलवान की लड़ाई लड़ रहा है।ड्ढr पिछले साल आयोजित हुए विश्व बाल पुरस्कार में एक ज्यूरी के रूप में पहली बार शामिल हुए राकेश ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कहा था कि मैं ऐसे बच्चों का प्रतिनिधि हूं जो बंधुआ मजदूर बनकर अपनी जिन्दगी गंवा रहे हैं। ऐसे बच्चों का समाज में कोई अस्तित्व नहीं है।ड्ढr ड्ढr पिछले वर्ष के पुरस्कारों में राकेश स्वीडन की महारानी से मिला था। वहां उसने विभिन्न देशों से आये प्रतिनिधि बच्चों से दोस्ती भी की थी। वह बताता है कि सुकुमाया-नेपाल, ओमार-फिलिस्तीन, हैना टेलर-कनाडा, गबाटश्वाने गुमेडा- दक्षिण अफ्रीका उसके अच्छे दोस्त बन गये हैं। राकेश इन बच्चों को आज भी याद करता है और दोबारा उनसे मिलन को लेकर उत्साहित है। आज राकेश कुमार, भारतीय बच्चों एवं बाल बंधुआ मजदूरों की आवाज बनकर सारी दुनिया से लोहा लेन को तैयार है।

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