मौत की डगर पर यात्रियों का सफर
टेशन हो या आउटर सिग्नल। दिन हो या रात। सुबह हो या शाम। पटरी पार करना मतलब खतरों से खेलना है। दानापुर स्टेशन पर हुई घटना कोई पहली नहीं है। फिर भी मौत की डगर बनी रल पटरी पर यात्रियों के दौड़ने का...
टेशन हो या आउटर सिग्नल। दिन हो या रात। सुबह हो या शाम। पटरी पार करना मतलब खतरों से खेलना है। दानापुर स्टेशन पर हुई घटना कोई पहली नहीं है। फिर भी मौत की डगर बनी रल पटरी पर यात्रियों के दौड़ने का सिलसिला जारी है। असलियत यह है कि दानापुर मंडल के विभिन्न रल खंडों पर हर महीने औसतन 50 लोगों की मौत ट्रन से कट कर हो रही है। इसके लिए सबसे अधिक कसूरवार खुद लोग हैं तो सुरक्षा बलों की सुस्ती भी चौंकाती है।ड्ढr सिर्फ दानापुर ही नहीं। सूबे का शायद ही कोई ऐसा स्टेशन, जंक्शन, हॉल्ट होगा जहां यात्री अवैध तरीके से जान जोखिम में डाल कर पटरी नहीं पार करते हों। दूसरी तरफ अनधिकृत तरीके से रलवे लाइन पार करना रलवे एक्ट के तहत दंडनीय अपराध है।ड्ढr ड्ढr ऐसी हरकतों पर रोक लगाने के लिए कार्रवाई का स्पष्ट प्रावधान है फिर भी स्थिति सामने है। पटरी को गंदा करने वाले या महिला बोगी में सफर करने वालों पर तो आरपीएफ की निगाह रखती है लेकिन सीधे मौत के मुंह में चक्कर काट रहे इन मुसाफिरों पर स्टेशन परिसर में भी नजर नहीं पड़ता। इधर सोमवार की शाम दानापुर स्टेशन पर हुए हादसे के बाद पूर्व मध्य रल प्रशासन ने यात्रियों से कहा है कि पटरी पार करने के लिए स्टेशनों पर बने पैदल उपरी पुल का प्रयोग करें ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृति नहीं हो सके।