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इस मंदिर में लगता है तांत्रिकों का मेला, शक्ति बढ़ाने आते हैं अघोरी

आपने देश के कई अजब-गजब मंदिरों के बारें में तो ज़रूर सुना होगा लेकिन देश के पूर्वोत्तर का मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम की राजधानी दिसपुर में एक ऐसा भी मंदिर है जहां साल में एक बार दुनिया भर के...

इस मंदिर में लगता है तांत्रिकों का मेला, शक्ति बढ़ाने आते हैं अघोरी
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 27 Jul 2016 03:41 PM
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आपने देश के कई अजब-गजब मंदिरों के बारें में तो ज़रूर सुना होगा लेकिन देश के पूर्वोत्तर का मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम की राजधानी दिसपुर में एक ऐसा भी मंदिर है जहां साल में एक बार दुनिया भर के तांत्रिक और अघोरी पहुंचते हैं। दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद नीलांचल पर्वत पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।

क्या है पौराणिक मान्यता 
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार देवी सती अपने पिता द्वारा किये जा रहे महान यज्ञ में शामिल होने जा रही थी तब उनके पति भगवान शिव ने उन्हें वहां जाने से रोक दिया। इसी बात को लेकर दोनों में झगड़ा हो गया और देवी सती बिना अपने पति शिव की आज्ञा लिए हुए उस यज्ञ में चली गयी। जब देवी सती उस यज्ञ में पहुंची तो वहां उनके पिता दक्ष प्रजापति ने शिव का घोर अपमान किया। इस अपमान को देवी सती सहन नहीं कर पाई और यज्ञ के हवन कुंड में ही कूदकर उन्होंने अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी। जब ये बात भगवान शिव को पता चली तो वो बहुत ज्यादा क्रोधित हुए और उस स्थान पर पहुंचे जहां ये यज्ञ हो रहा था। उन्होंने अपनी पत्नी के मृत शरीर को निकालकर अपने कंधे में रखा और अपना विकराल रूप लेते हुए तांडव शुरू किया। भगवान शिव के गुस्से को देखते हुए भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र छोड़ा जिससे देवी के शरीर के कई टुकड़े हुए जो कई स्थानों पर गिरे जिन्हें शक्ति पीठों के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि देवी सती का गर्भ और योनि यहां आकर गिरे, जिससे इस शक्ति पीठ का निर्माण हुआ है।

 

कैसे पड़ा नाम कामाख्या
एक बार एक श्राप के चलते काम के देव काम देव ने अपना पौरुष खो दिया जिन्हें बाद में देवी शक्ति के जननांगों और गर्भ से ही इस श्राप से मुक्ति मिली। तब से ही यहां कामाख्या देवी की मूर्ति को रखा गया और उसकी पूजा शुरू हुई। कुछ लोगों का ये भी मानना है की ये वही स्थान हैं जहां देवी सती और भगवान शिव के बीच प्रेम की शुरुआत हुई। संस्कृत भाषा में प्रेम को काम कहा जाता है अतः इस मंदिर का नाम कामाख्या देवी रखा गया। देवी जिनसे होता है रक्त का प्रवाह कामाख्या देवी को बहते हुए खून की देवी भी कहा जाता है यहां देवी के गर्भ और योनि को मंदिर के गर्भगृह में रखा गया है जिसमें जून के महीने में रक्त का प्रवाह होता है।

 

लाल हो जाती है ब्रह्मपुत्र नदी 
यहां के लोगों में मान्यता है की जून महीने के दौरान देवी अपने मासिक चक्र में होती है और इस दौरान यहां स्थित ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है। इस दौरान ये मंदिर 3 दिन बंद रहता है और इस लाल पानी को यहां आने वाले भक्तों के बीच बांटा जाता है। इस स्थान कि एक दिलचस्प बात ये भी है कि यहां इस बात का कोई पौराणिक या ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि देवी के रक्त से ही नदी लाल होती है। यहां रक्त के सम्बन्ध में कुछ लोगों का ये भी कहना है कि इस समय नदी में मंदिर के पुजारियों सिन्दूर डाल देते हैं जिससे यहां का पानी लाल हो जाता है।

 

प्रसाद में मिलता है गीला लाल कपड़ा
इस मंदिर में दिया जाने वाला प्रसाद भी दूसरें शक्तिपीठों से बिल्कुल ही अलग है। इस मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है। कहा जाता है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। इस कपड़ें को अम्बुवाची वस्त्र कहते है। इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।

 

जानवरों की होती है बलि
यहां पर कोई भी मूर्ति नहीं स्थापित है। इस जगह पर एक समतल चट्टान के बीच बना विभाजन देवी की योनि का दर्शाता है। एक प्रकृतिक झरने के कारण यह जगह हमेशा गीला रहता है। इस झरने के जल को काफी प्रभावकारी और शक्तिशाली माना जाता है। माना जाता है कि इस जल के नियमित सेवन से आप हर बीमारी से निजात पा सकते है। यहां पर पशुओं की बलि दी जाती ही हैं। भैंस और बकरें की बलि तो आम है, लेकिन यहां पर किसी मादा जानवर की बलि नहीं दी जाती है। इसके साथ ही मान्यता है कि मां को प्रसन्न करने के लिए आप कन्या पूजन और भंडारा करा सकते है। जिससे आपकी हर मोनकामना पूर्ण हो जाएगी।

 

तंत्र साधना के लिए सबसे महत्वपूर्ण जगह है ये मंदिर
इस जगह को तंत्र साधना के लिए सबसे महत्वपूर्ण जगह मानी जाती है। यहां पर साधु और अघोरियों का तांता लगा रहता है। यहां पर अधिक मात्रा में काला जादू भी किया जाता ह। अगर कोई व्यक्ति काला जादू से ग्रसित है तो वह यहां आकर इस समस्या से निजात पा सकता है। कामाख्या के तांत्रिक और साधू चमत्कार करने में सक्षम होते हैं। कई लोग विवाह, बच्चे, धन और दूसरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कामाख्या की तीर्थयात्रा पर जाते हैं। कहते हैं कि यहां के तांत्रिक बुरी शक्तियों को दूर करने में भी समर्थ होते हैं। हालांकि वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल काफी सोच-विचार कर करते हैं।

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