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गंभीर समस्या है यूरीन संक्रमण

एक अनुमान के अनुसार 77 प्रतिशत महिलाएं पेशाब संबंधी समस्याओं की शिकार होती हैं। पुरुषों में जहां यूटीआई की समस्या 40 की उम्र के बाद देखने को मिलती है, वहीं लड़कियां कई कारणों की वजह से कम उम्र में ही...

गंभीर समस्या है यूरीन संक्रमण
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 23 Jan 2014 08:11 PM
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एक अनुमान के अनुसार 77 प्रतिशत महिलाएं पेशाब संबंधी समस्याओं की शिकार होती हैं। पुरुषों में जहां यूटीआई की समस्या 40 की उम्र के बाद देखने को मिलती है, वहीं लड़कियां कई कारणों की वजह से कम उम्र में ही इसकी शिकार होने लगती हैं। एक ओर जहां सेहत व स्वच्छता के प्रति जागरूकता इसकी मुख्य वजह है वहीं गांवों में शौचालयों की कमी भी महिलाओं की इस समस्या को गंभीर बना देते हैं। हालांकि यूरीन संक्रमण की कई वजह हो सकती हैं, पर एक बार कारण स्पष्ट हो जाने पर उसका उपचार भी संभव होता है, बता रही हैं निशी भाट

सुचिता की उम्र 29 वर्ष है। वह एक निजी कंपनी में मार्केटिंग विभाग में काम करती हैं। फील्ड जॉब होने के कारण उसे अकसर बाहर ही रहना पड़ता है। सार्वजनिक शौचालयों की संख्या कम होने के कारण वह अकसर पेशाब की जरूरत को नजरअंदाज कर देती हैं। लंबे तक जब ऐसा चला तो उन्हें निचले हिस्से में जलन महसूस हुई, जांच कराई तो पता चला कि उनके यूरीन में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ी हुई है। यहां तक कि इस कारण  सुचिता किडनी में स्टोन होने की पहली अवस्था तक पहुंच चुकी है। दरअसल सुचिता ने पेशाब की जरूरत पर यूरिनरी ब्लेडर खाली नहीं किया, जिसके कारण पेशाब की अतिरिक्त मात्रा दोबारा किडनी तक पहुंची और पेशाब के टॉक्सिक तत्व किडनी में पहुंचने से वह स्टोन का रूप लेने लगे। लघु शंका की छोटी जरूरत इतनी परेशानी पैदा कर देगी यह उसने कभी नहीं सोचा था। पेशाब के रूप में दरअसल किडनी शरीर के अपशिष्ट पद्धार्थों को बाहर निकालती है, एक दिन में साधारण आठ से दस गिलास पानी पीने पर आठ से दस बार यूरिन की जरूरत महसूस होती है। जिसे किडनी की टॉक्सिफिकेशन प्रक्रिया के लिए जरूरी माना गया है।

स्वच्छता का ध्यान रखना है जरूरी
फागसी (फेडरेशन ऑफ ओबेसिटी एंड गाइन्कोलॉजी ऑफ इंडिया) के एक अध्ययन के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं की 79 प्रतिशत बीमारियां मासिक धर्म में स्वच्छता न अपनाएं जाने की वजह से होती हैं, जबकि शहरी क्षेत्र में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां जानने के बाद भी महिलाएं जांच के मामले में गंभीर नहीं है। स्तन और सरवाइल कैंसर की बात छोड़ दे तो 77 प्रतिशत महिलाएं अकेले पेशाब संबंधी कई तकलीफों की शिकार होती हैं। जिसका उन्हें इतनी देर बात पता चलता है कि तब तक संक्रमण बढ़ चुका होता है। हार्मोनल कारणों की वजह से पेशाब संबंधी कोई भी परेशानी महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा अधिक होती है, महिलाओं का यूरीन पास न कर पाना, रुक-रुक कर पेशाब आना, खांसने पर भी यूरीन निकल जाना या फिर यूरीन के रास्ते जलन आदि की समस्या यूटीआई (यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेशन) की वजह से हो सकती है, जबकि एक उम्र के बाद पुरुषों में बार-बार पेशाब आना या फिर रुक-रुक कर पेशाब आने की वजह प्रोस्टेट ग्रन्थि का बढ़ना होता है।

महिलाओं में होती है अधिक समस्या
साकेत सिटी अस्पताल के यूरोलॉजिस्ट डॉ. एन के मोहंती कहते हैं, ‘पुरुषों में 45 की उम्र के बाद पेशाब संबंधी परेशानी बढ़ने की आशंका अधिक रहती है, जबकि महिलाओं में यूटीआई की समस्या 15 से 40 की उम्र तक अधिक देखी जाती है। मेनोपॉज के बाद भी महिलाओं में पेशाब संबंधी समस्याएं और बढ़ जाती है। इसकी प्रमुख वजह एस्ट्रोजन हार्मोन के स्तर का कम होना होता है। डॉ. चढ्ढा कहते हैं कि यूटीआई, ब्लेडर संक्रमण, गर्भावस्था, उम्र, प्रोस्टेट ग्रंथि में बदलाव या पेशाब संबंधी अन्य कई संक्रमण कई वजह से होते हैं। गांव में मासिक धर्म के बाद स्वच्छता न बरतने के कारण लड़कियों में पेशाब संबंधी संक्रमण होते हैं, जो बाद में यूटीआई में बदल जाते हैं। जबकि महिलाओ में प्रसव के बाद 79 फीसदी मामलों में पेशाब पर नियंत्रण खत्म हो जाता है। जिसकी वजह पेलविक (बच्चेदानी के नीचे का हिस्सा) की मांसपेशियों का ढीला होना होता है, ऐसे अधिकांश मामलों में महिलाओं को छींक के साथ पेशाब रिसने की समस्या होती है। महिलाओं में यूरेथ्रा(मूत्रनली) की लंबाई पुरुषों के मुकाबले कम होती है, इससे बैक्टीरिया के लिए वहां पहुंचना आसान होता है। महिलाओं में यूरेथ्रा गूदा मार्ग के ज्यादा करीब स्थित होता है। पुरुषों में यूटीआई का खतरा कम होता है क्योंकि उनका यूरेथ्रा लंबा होता है और प्रोस्टेट में बनने वाला द्रव्य बैक्टीरिया से लड़ने में सक्षम होता है।

जरूरी है जागरुक करना
एफओजीएसआई(फागसी) अध्यक्ष डॉ. हेमा दिवाकर ने बताया गांवों में महिलाओं को स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के लिए जागरुक करने के लिए हेल्पिंग मदर सरवाइव कार्यक्रम शुरू किया गया है। जिसके जरिए एएनएन, स्टॉफ नर्स और डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया जाएगा। यूएन मिलेनियम डवलेपमेंट कार्यक्रम के अनुसार मातृ मृत्यु दर को प्रति वर्ष 5.5 प्रतिशत की दर से कम किया जाना चाहिए, जबकि वर्तमान में यह दर 2.3 प्रतिशत है। विकसित देशों में प्रति एक लाख केवल 16 गर्भवती महिलाओं की मृत्यु होती है। जबकि इन देशों की औसत मातृ मृत्यु दर प्रति एक लाख पर 240 है। यूएन लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें हमारे स्वास्थ्य कार्यक्रमों में सुधार करना होगा। डॉ. हेमा कहती हैं कि स्वास्थ्य कार्यक्रमों में सुधार के साथ ही प्रशिक्षण में पीपीएच और पीईई के इलाज पर भी ध्यान दिया जाएगा, पोस्टपार्टम हैमरेज और प्रीएक्लेम्पिया दो प्रमुख समस्याएं हैं, जिसको मातृ मृत्यु दर की वजह बताया गया है, 30 प्रतिशत मामलों में यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण की वजह से प्रसव और गर्भधारण में भी समस्या होती है, जबकि संक्रमण बच्चेदारी के ब्लेडर तक पहुंच जाता है।

कब-कब खाली करें ब्लेडर
दवाब के बाद भी यदि तीन से चार मिनट भी पेशाब को रोका गया तो यूरिन के टॉक्सिक तत्व किडनी में वापस चले जाते हैं, जिसे रिटेंशन ऑफ यूरिन कहते हैं। सफदरजंग अस्पताल के यूरोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख और वर्तमान में साकेत सिटी अस्पताल में काम कर रहे यूरोलॉजिस्ट डॉ. एनके मोहंती कहते हैं कि यूरीन शरीर की सामान्य प्रक्रिया है, जिसे महसूस होने पर एक से दो मिनट के अंदर निष्कासित कर देना चाहिए। पसीने की तरह पेशाब के माध्यम से गैर जरूरी तत्व भी बाहर निकलते हैं। यदि वह थोड़े समय भी अधिक शरीर में रहते हैं तो संक्रमण की शुरुआत हो सकती है। महिलाओं व कामकाजी युवाओं में यूरीन संबंधी दिक्कतें सामनें आ रही हैं, जिसकी शुरूआत ब्लेडर में दर्द के रूप में होती है। महिलाओं में लघु शंका संबंधी आदत में सामाजिक तत्व अधिक देखा गया है, जो एक से दो घंटे तक यूरीन रोक लेती है। वहीं 8 से 10 घंटे बैठ कर काम करने वाले युवाओं को यूरीन की जरूरत ही तब महसूस होती हैं, जबकि वह कार्य करने की स्थिति बदलते हैं। जबकि इस दौरान किडनी से यूरिनरी ब्लेडर में पेशाब इकठ्ठा होता रहता है। हर एक मिनट में दो एमएल यूरीन ब्लेडर में पहुंचता है, जिसे प्रति एक से दो घंटे के बीच खाली कर देना चाहिए। ब्लेडर खाली करने में तीन से चार मिनट की देरी में पेशाब दोबारा किडनी में वापस जाने लगता है, इस स्थिति के बार-बार होने से पथरी की शुरूआत हो जाती है। क्योंकि पेशाब में यूरिया और अमिनो एसिड जैसे टॉक्सिक तत्व होते हैं।

महिलाओं के लिए कम हैं सुविधाएं
महिला और पुरुष के लिए एक किलोमीटर के दायरे में एक सुलभ शौचालय जरूर होना चाहिए। यूरोलॉजिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया की अगर मानें तो महिलाओं के यूरिनरी सुविधाएं पुरुषों की अपेक्षा कम हैं, जिन्हें बढ़ाया जाना चाहिए। देर तक पेशाब रोकने के कारण महिलाओं में गर्भाशय संबंधी परेशानियां भी हो सकती हैं। इस संदर्भ में मधुमेह रोगियों की परेशानी अधिक गंभीर हैं, जिन्हें ब्लेडर भरने के बाद भी पेशाब की जरूरत नहीं होती। इसलिए उन्हें प्रत्येक एक घंटे बिना दवाब के भी यूरीन करने जाना चाहिए।

डाइट से बन सकती है बात
यूटीआई की वजह हालांकि संक्रमण को बताया गया है, बावजूद इसके डाइट के जरिए संक्रमण को रोका जा सकता है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एक अध्ययन में पाया गया कि डाइट में मौजूद पोषक तत्व और फाइबर का सीधा असर यूटीओ संक्रमण से हैं। 186 महिलाओं पर पांच साल तक किए अध्ययन में देखा गया कि जो महिलाएं नियमित रूप से चेरी, कैरबरी, फल और दूध को अपने खाने में शामिल करती हैं, उनमें संक्रमण स्तर ऐसे महिलाओं की अपेक्षा कम देखा गया, जो खाने में पौष्टिक चीजों को शामिल नहीं करती। लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल की डायटिशियन डॉ. किरन दीवान कहती हैं, दरअसल यूटीआई का कारक ई कोलाई बैक्टीरिया के संक्रमण बढ़ने का असर है, जिसका कारण  शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आना है। इसलिए अधिक फाइबर और प्रोटीन युक्त भोजन केवल बैक्टीरियल संक्रमण ही नहीं अन्य बीमारियों के खतरे से भी बचाते हैं।

क्या है यूटीआई
ई-कोलाई बैक्टीरिया को यूटीआई कारण माना जाता है जो पेशाब के रास्ते से ही यूरीनर ब्लेडर तक पहुंचता है। पेशाब की थैली तक संक्रमण पहुंचने की स्थिति को सिस्टिस कहते हैं जबकि संक्रमण किडनी तक पहुंचने पर फिलोनेफिराइटिस कहा जाता है, इसका मतलब है कि बैक्टीरिया का संक्रमण अपर यूरिनरी ट्रैक्ट तक पहुंच चुका है। यूटीआई के लक्षण पेशाब करते हुए जलन का अनुभव होना, कम पेशाब होना, पेल्विक क्षेत्र में दर्द या चुभन, कभी कभी पेशाब में हल्का खून आना और दरुगध युक्त पेशाब यूटीआई के लक्षण हो सकते हैं। इस स्थिति में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए शुरूआत की स्थिति में यूटीआई का यूरीन की कल्चर और रूटीन जांच से पता चल जाता है, बावजूद इसके नीचले हिस्से से सफेद पानी आदि की समस्या भी देखी जाती है तो पेप्स स्मीयर कराना सही कहा गया है। जांच के बाद सात दिन तक एंटीबायोटिक दवाओं के जरिए संक्रमण दूर करने की कोशिश की जाती है, सात दिन के बाद यूरीन का दोबारा कल्चर टेस्ट किया जाता है, यदि रिपोर्ट नेगेटिव हो तो दवाएं बंद कर दी जाती हैं। बावजूद  इसके यदि कल्चर रिपोर्ट पॉजिटिव हो तो थेरेपी की सलाह देते हैं। 

जरूरी हैं यह जानें
- लघु शंका किडनी की स्वाभाविक प्रक्रिया हैं, प्रत्येक एक मिनट में 2 एमएल यूरीन किडनी से यूरिनरी ब्लेडर में पहुंचता है।
- यूरिनरी ब्लेडर में 250 एमएल यूरीन एकत्र होने पर लघु शंका का अनुभव होता है।
- ब्लेडर भरने के बाद यदि उसे रोका गया तो इसका रिटेंशन शुरू होता है, यानि यूरीन वापस किडनी में जाने लगता है।
- सामान्य व्यक्ति को दिन की अपेक्षा रात में लघु शंका की कम शिकायत होती हैं, क्योंकि इस समय शरीर गतिशील नहीं होता।
- यूरीन बार-बार रोकने से ब्लेडर की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, यह पेशाब की करने की क्षमता को भी कम करता है।

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