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सिर्फ खिलाड़ियों को क्यों मिलती है सजा

श्रीसंत कोर्ट में अपने आजीवन प्रतिबंध को चुनौती दें या न दें, लेकिन यह सवाल तो बना ही रहेगा कि आरोपी खिलाड़ी को अगर सजा मिली, तो फिर आरोपी अधिकारी कैसे बच गए? दरअसल, यह सवाल इसलिए नहीं उठ रहा कि...

सिर्फ खिलाड़ियों को क्यों मिलती है सजा
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 16 Sep 2013 10:01 PM
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श्रीसंत कोर्ट में अपने आजीवन प्रतिबंध को चुनौती दें या न दें, लेकिन यह सवाल तो बना ही रहेगा कि आरोपी खिलाड़ी को अगर सजा मिली, तो फिर आरोपी अधिकारी कैसे बच गए? दरअसल, यह सवाल इसलिए नहीं उठ रहा कि खिलाड़ियों को मिली सजा गलत है, बल्कि इसलिए उठ रहा है कि क्या अधिकारियों को मिली क्लीन चिट गलत है? हर कोई यह मानता है कि क्रिकेट को कलंकित करने वाले शख्स को सजा मिलनी चाहिए। इसीलिए अधिकारियों को मिली क्लीन चिट चौंकाने वाली है। हालांकि, मुंबई हाईकोर्ट उस जांच रिपोर्ट को ही खारिज कर चुकी है, जिसमें गुरुनाथ मयप्पन और राज कुंद्रा को क्लीन चिट दी गई थी। गुरुनाथ मयप्पन इंडिया सीमेंट्स के मालिक और बोर्ड अध्यक्ष एन श्रीनिवासन के दामाद हैं और राज कुंद्रा शिल्पा शेट्टी के पति व राजस्थान रॉयल्स के सह मालिक हैं। इन दोनों पर आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग में शामिल होने के आरोप थे। पुलिस ने यहां तक दावा किया था कि इन दोनों ने सट्टेबाजी से जुड़े होने की बात कबूल की है। लेकिन बीसीसीआई की जांच समिति इसे नहीं मानती।
स्पॉट फिक्सिंग के खुलासे के बाद ऑपरेशन क्लीन अप की जानकारी दी गई थी। बताया गया था कि आने वाले वक्त में आईपीएल जैसे टूर्नामेंट को स्पॉट फिक्सिंग से बचाने के लिए क्या किए जाने की जरूरत है। कहा गया था कि अब खिलाड़ियों के एजेंट के पहचान-पत्र से लेकर खिलाड़ियों के मोबाइल नंबर और बैंक खातों की जानकारी तक बोर्ड के पास रहेगी। बाद में जो प्रस्ताव सामने आया, उसमें कुछ भी ऐसा खास नहीं था, जो बताता हो कि स्पॉट फिक्सिंग जैसी बातों में शामिल अधिकारियों का क्या होगा? लगता है कि अधिकारियों को तो कोई दोषी मानने तक को तैयार नहीं है। बीसीसीआई के आला अधिकारियों ने ये बताने की जहमत नहीं उठाई कि चेन्नई सुपरकिंग्स के साथ बतौर टीम प्रिंसिपल जुड़े रहे गुरुनाथ मयप्पन स्पॉट फिक्सिंग के खुलासे के बाद टीम मैनेजमेंट के एक सदस्य भर कैसे रह गए?

वैसे हमेशा यही होता है, क्रिकेट में जब भी किसी गंदगी का पता चला है, सजा सिर्फ खिलाड़ियों को ही दी गई है। अधिकारी हमेशा बच जाते हैं। उनके बचने के पीछे उनकी ताकत, उनका पैसा और बोर्ड के चुनाव में उनके वोट की राजनीति होती है। लेकिन क्या इस तरह क्रिकेट की गंदगी दूर होगी? बिल्कुल नहीं। मामला अदालतों में जाएगा। खिलाड़ी खुद को बेकसूर बताते रहेंगे। धीरे-धीरे मामला ठंडा हो जाएगा। लोग भूल जाएंगे। फिर आईपीएल आ जाएगा। चौकों-छक्कों के शोर में लोग भूल जाएंगे कि पिछली बार क्या हुआ था। श्रीसंत, चंदीला और चह्वाण जैसे खिलाड़ी छोटे-मोटे फायदे के लिए अपना करियर बर्बाद करते रहेंगे। लेकिन इससे आम प्रशंसकों का क्रिकेट से मोहभंग हो गया तो? एक बार उठ जाने के बाद विश्वास को बहाल करना आसान नहीं होता।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

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