पीड़िता की पहचान
पीड़िता का नाम उजागर हो या न हो फिलहाल यह प्राथमिकता नहीं है, ज्यादा जरूरी है कि अपराधियों को जल्द सजा दी...
मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री शशि थरूर ने ट्विटर पर एक विवाद खड़ा कर दिया है। थरूर का कहना है कि 16 दिसंबर को दिल्ली में सामूहिक बलात्कार और हत्या की शिकार युवती के नाम को अब गुप्त न रखा जाए। परिजनों की सहमति हो, तो उसके सम्मान में प्रस्तावित बलात्कार और यौन प्रताड़ना कानून का नाम उसके नाम पर कर दिया जाए। खबर यह भी है कि इस युवती के परिजन भी इस प्रस्ताव से सहमत हैं। बलात्कार या यौन उत्पीड़न के मामले में पीड़ित महिला की पहचान गुप्त रखने की जरूरत इसलिए होती है कि अगर उसका नाम उजागर हो गया, तो प्रचार से उसे ज्यादा तकलीफ पहुंच सकती है। अक्सर अपराधी की बजाय अपराध की शिकार महिला सामाजिक प्रताड़ना का शिकार बनती है। अभी-अभी तक ऐसी खबरें आ रही हैं कि बलात्कार की शिकायत करने पर महिला और उसके परिवार को गांव या समाज से बहिष्कृत कर दिया गया। बलात्कार की शिकार महिला नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरू कर सके, इसलिए भी उसका नाम उजागर न करना अच्छा होता है। लेकिन इस मामले में उस युवती की दुखद मौत हो चुकी है और वह किसी शर्म की नहीं, बल्कि बहादुरी और प्रतिरोध की प्रतीक बन चुकी है। अगर उसके परिवारजन उसकी और अपनी निजता की रक्षा के लिए उसका गुमनाम ही रहना ठीक समझों, तो अलग बात है, वरना यह विचार योग्य है। वैसे भी हमारे समाज में इस धारणा को तोड़ना जरूरी है कि बलात्कार का शिकार होना कोई असम्मान या शर्म की बात है, क्योंकि अगर वह शर्म की बात है, तो अपराधी के लिए है और समाज के उन तबकों के लिए है, जो महिला पर ही शर्म का बोझ लादते हैं। जरूरी तो यह भी है कि उन पंचायतों या जाति समूहों का भी अपराध तय किया जाए, जो ऐसे मामलों में अपराधियों का पक्ष लेते हैं और महिला पर खामोश रहने के लिए दबाव डालते हैं। साथ ही बलात्कार के मामलों में आपसी रजामंदी या समझौते को भी कानूनन अवैध माना जाना चाहिए, क्योंकि ऐसे लगभग सारे मामले दबाव के होते हैं।
इसके बावजूद नाम उजागर होना फिलहाल प्राथमिकता का मुद्दा नहीं है। सबसे पहले बलात्कार और यौन उत्पीड़न रोकने और अपराधियों को सजा दिलवाने के मामले में पहल करना जरूरी है। इस समय ज्यादा जोर बलात्कारियों को मृत्युदंड देने या नपुंसक बनाने के लिए कानून बनाने पर है। इस मामले में कई पेचीदा न्यायिक और नैतिक सवाल खड़े होते हैं, इसलिए काफी विमर्श के बाद ही फैसला हो सकता है। सिर्फ सख्त कानून बना देने से बलात्कारियों को सजा दिलवा पाना संभव नहीं है, ज्यादा जरूरी यह है कि अपराधियों को सचमुच सजा मिल पाए और फैसला जल्दी से जल्दी हो। इसके लिए एफआईआर लिखने से लेकर समूची दंड-प्रक्रिया में काफी परिवर्तनों की जरूरत है। ज्यादातर बलात्कार के मामले एफआईआर के स्तर पर पुलिस ही रफा-दफा कर देती है। पुलिस से एफआईआर लिखवाना अच्छे-खासे रसूखदार लोगों के लिए मुश्किल होता है। ऐसे में गरीब या ग्रामीण महिला के लिए तो यह तकरीबन नामुमकिन हो जाता है। फास्ट ट्रैक अदालतें बनवाना एक अच्छा कदम है और सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर सख्ती से अमल होना चाहिए कि अदालतें बलात्कार के मामलों की सुनवाई में तारीखें न बढ़ाएं। जब तमाम स्तरों पर छोटे-छोटे सुधार होंगे, तभी सख्त कानून की सार्थकता होगी। अच्छा तब भी होगा, अगर राजनीतिक पार्टियां सख्त कानून के मामले में अपनी छवि चमकाने के लिए मीन-मेख न निकालें और कानून बनने दें। अगर ऐसा होता है, तो हम उस बहादुर युवती का सम्मान करने के सच्चे हकदार होंगे।