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क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को गुजरात

अहा, क्या सीन है। थोड़ा मीठा, थोड़ा कड़वा, बाकी नमकीन है। गुजरात में लय और ऊंचे पहाड़ों वाले हिमाचल में...

क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को गुजरात
Fri, 21 Dec 2012 08:13 PM
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अहा, क्या सीन है। थोड़ा मीठा, थोड़ा कड़वा, बाकी नमकीन है। गुजरात में लय और ऊंचे पहाड़ों वाले हिमाचल में तुषारापात। धन्य और अधन्य, दोनों गुजरात। जैसे इक्कीस दिसम्बर छोटा दिन वैसे पच्चीस दिसम्बर बड़ा दिन। माया कलेन्डर और मुलायम धूप की संसदीय कहानी एक तरफ। दोनों जगह सवारों की जीत एक तरफ और घोड़ियों की हार एक तरफ। चुनावी क्रिकेट में एक तरफ सेंचुरी तो दूसरी तरफ कैच। बराबरी में छूट गया मैच। कहा भी है कि- दम लगा गुजरात में, दिल्ली की किल्ली हिल गई। लेकिन हिमाचल में सभी चूहों को बिल्ली मिल गई। दोनों जगह उम्मीदवार जीते, पार्टी हारी। एक चपत लगी हलकी, मगर दूसरी करारी।

मतदान के दिनों में मुझे एक फुदकती हुई युवती मिली। उसने हंसकर मुझे उंगली का निशान दिखाया और गाना गाने लगी कि- पिया का घर प्यारा लगे। मैंने पूछा- पहली बार वोट दिया है क्या। वो बोली- हां, पहली बार शादी जो कर रही हूं। मैंने कहा- ये बताओ तुमने पार्टी देखकर वोट दिया या उम्मीदवार देखकर। वो तड़ से बोली- उम्मीदवार देखकर। मैंने पूछा- क्यूं। वो फटाक से बोली- वो मेरा  मंगेतर है।

ये तो तय है कि नरेंद्र मोदी भले ही अब ज्यादातर दिल्ली में मिलें, मगर अपने धूमल तो अब गूगल में भी मिलने से रहे। हनीमून में हिमपात तो भला लगता है पर तुषारापात नहीं सुहाता। सुना है दिल्ली का रास्ता केशूभाई पटेल के घर से होकर जाता है। सुबह-सुबह सपने में मोदी मिले, पूछा- क्या आप अब दिल्ली जाएंगे? चश्मा साफ करते हुए वह बोले- दिल्ली भी अब दूर नहीं है। अब मोदी मजबूर नहीं है। सारे बंदर मौज मनावें। जंगल में लंगूर नहीं है। दिल्ली-फिल्ली है क्या? मैं- रेप की राजधानी। बोले- ये मेरी प्रॉब्लम नहीं है। ये क्या है, नियति की उलटबांसी। पीड़िता को पीड़ा की उम्रकैद, दुराचारी को दो बार फांसी। इतना सुनते ही मेरी नींद खुल गई।

और अब सुनिए एक कांग्रेसी मां-बेटे का संवाद। मां- भाग्य भी इतना क्रूर नहीं है। बेटा- चूल्हा है तंदूर नहीं है। मां- ले आटे का लड्डू खा ले। बेटा- क्यूं अम्मा। मां- घर में मोतीचूर नहीं है।

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