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कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं महिलाएं

गाजियाबाद। ट्रांस हिंडन दिल्ली में बस में हुई वारदात को लेकर सभी सकते में हैं। महिलाओं के साथ हो रही इस प्रकार की घटनाओं से सभी आहत हैं। इस तरह की आए दिन होने वाली घटनाओं से दहशत इस कदर है कि...

कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं महिलाएं
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 19 Dec 2012 11:45 PM
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गाजियाबाद। ट्रांस हिंडन

दिल्ली में बस में हुई वारदात को लेकर सभी सकते में हैं। महिलाओं के साथ हो रही इस प्रकार की घटनाओं से सभी आहत हैं। इस तरह की आए दिन होने वाली घटनाओं से दहशत इस कदर है कि महिलाएं अपने को रात ही नहीं दिन भी सुरक्षित महसूस नहीं करती। कामकाजी महिलाओं के साथ छात्राओं के साथ छेड़ाखानी आम बात हो चली है।

घर से बाहर निकलना अभशिाप बन गया है-महिलाएं अब कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं।

अपने घर से निकलने के बाद कौन क्या कहता है कई बार तो सुनने के बाद भी नजरअंदाज करना पड़ता है। सुनसान क्षेत्र में तो महिलाओं व लड़कियों का निकलना भी दुश्वार है। घर से बाहर निकलना मानो महिलाओं के लिए अभशिाप बन गया है। प्रशासन को इतना कड़ा कदम उठाना चाहिए कि कोई भी गलत हरकत करने वाले दोबारा ऐसे करने के लिए सोच भी न सके। सविता त्यागी (शिक्षिका)-------छेड़खानी होता देखने वालों को आना होगा आगे दिल्ली से गाजियाबाद आने में प्राइवेट वाहनों का इस्तेमाल करना सबसे बड़ा खतरा है।

अपने वाहन के बावजूद भी लोग गंदे कमेंट करने से नहीं कतराते। महिलाओं के लिए बसें बिल्कुल सुरिक्षत नहीं हैं। बसों में सरेआम महिलाओं व लड़कियों से छेड़ाखानी हो जाती है, लेकिन कोई विरोध नहीं करता। इसके लिए लोगों को जागरूक करने की जरूरत हैं। डा. सुनैना त्रिसल (शिक्षिका, सरकारी कॉलेज)-----कड़ा कानून बने तो कुछ राहत मिले हमारा कानून इतना लचीला है कि महिलाओं से छेड़ाखानी करने वाले गिरफ्त में नहीं आ पाते। इसके लिए कड़े कानून बनने चाहिए, ताकि महिलाओं के साथ छेड़खानी करने वालों की सजा देख दूसरा कोई ऐसा करने की हिम्मत न उठा सके।

घर से बाहर निकलो तो रिक्शा, ऑटो कोई सुरक्षित नहीं है। बाजार में जाओ तो वहां भी आवारा लोगों की कमी नहीं है। समाज के माहौल को देख घरवाले शाम के समय तो घर से बाहर जाने की इजाजत तक नहीं देते। इस प्रकार की घटनाओं से महिलाओं के कैरियर पर भी प्रभाव पडेम्गा। ललिता (विधि छात्रा)-----छेड़छाड़ व फब्तियां तो रोज की बातमेट्रो हो, बस स्टैंड या फिर मुख्य सड़कों पर लड़कियां कहीं भी सुरक्षित नहीं रह गई हैं। दफ्तर से घर के बीच कब और कहां कौन सी घटना घट जाए कोई नहीं जानता।

ईव टीजिंग और कमेंट तो रोज की बात है। नौकरीपेशा लड़कियों के साथ आए दिन होने वाली इस तरह की घटनाएं शर्मनाक हैं। नेहा मेहता (जनरल मैनेजर, टूर एंड ट्रेवल्स कंपनी)-----विरोध करने पर अकेली पड़ जाती हैं लड़कियांबसों, मेट्रो ऑटो हर जगह असामाजिक तत्वों से दो-चार होना पड़ता है। बात बढ़ने पर अगर कोई लड़की विरोध करने की कोशशि भी करे तो कोई भी साथ देता नहीं देता। लड़कियों के आसपास सभी लोग तमाशबीन बने रहते हैं। यही इस तरह के अपराधों के बढ़ने की मुख्य वजह है।

वैशाली (शिक्षिका, प्राइवेट इंस्टीट्यूट)-----रोजाना बढ़ रहे अपराधियों के हौसलेआए दिन अपराधियों के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं। लड़कियां इस तरह की घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाएं, यह बेहद जरूरी है, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है, सार्वजनिक स्थानों पर लड़कियों की सुरक्षा। दिल्ली की घटना से पता चलता है कि किसी के मामले में कोई पड़ना ही नहीं चाहता। इसी के चलते अपराधियों को शह मिलती है। स्निग्धा उपाध्याय (डीयू की छात्रा )।

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